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मधुरेश.
यह गरीब जनता के अमीर नेताओं की कहानी है। ज्यादातर राजनीति में आने के बाद रईसों को मात करने वाले बने। क्या राजनीति इतनी फायदेमंद है? आखिर नेताओं के पास आता कहां से है रुपया?
कुछ नेता अपनी रईसी का प्रदर्शन करने से नहीं चूकते। चौबीस घंटे पहले राजद और लोजपा ने बिहार बंद किया था। मसला, महंगाई का विरोध। लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान अपनों का उत्साह बढ़ाने गोरखपुर से चार्टर्ड प्लेन से पटना पहुंचे। हवाई अड्डे से चमचमाती कार की सवारी। डाकबंगला चौराहे पर सबका अभिवादन। गरीब और गरीबी पर और लंबा बोलते मगर वक्ताओं की कतार बड़ी लंबी थी। उनका बयान लेने को, फोटो खींचने को मीडिया कर्मियों में मार फंसी रही। अंतत: प्रतीकात्मक गिरफ्तारी। यह कहते हुए बस में बैठना कि ‘मैं तो भई, गरीब घर में पैदा हुआ हूं; बस में खूब बैठा हूं।’ कैम्प जेल में लालू- राबड़ी संग मजे का नाश्ता। भजन-कीर्तन और नेताओं के क्रिकेट मैच का आनंद। फिर हवाई जहाज से दिल्ली की वापसी। पब्लिक खुश है। यह बस एक नमूना है।
यह नेताओं की कौन सी अदा है? वे किसको भरमा रहे हैं? लोग भ्रमित भी क्यों हो रहे हैं? जनता कब तक रा मैटेरियल रहेगी? नेताओं को गरीब और गरीबी पर बोलने का हक है? प्रतीकात्मक कार्यकलाप या औपचारिकता की परिपाटी कब बंद होगी?
देश यूं ही आजाद नहीं हो गया? महात्मा गांधी बस धोती-चादर से काम चलाते रहे, तो इसके पीछे की महान् समझ यही थी कि जब तब आम भारतीयों के शरीर पर वस्त्र नहीं होंगे, मुझे कोट-पैंट पहनने का क्या अधिकार है? गांधी के संसर्ग वाले ढेरों रईसों ने अपनी रईसी दरकिनार की? तो फिर जनप्रतिनिधि या नेता के रूप में ऐसे चेहरों के लिए कौन सी शब्दावली गढ़ी जाये?
कुछ दिन पहले नेता लोग हवाई जहाज के ‘एक्जीक्यूटिव क्लास बनाम इकोनामी क्लास’ के राष्ट्रीय बवाल में उलझे थे। अजीब तरह की बहस थी। लगा ही नहीं कि ये उस देश के नेता हैं, जिसकी बहुत बड़ी आबादी 21 वीं सदी की दौर में भी रोटी और छत को मोहताज है। हवाईजहाज के दर्जे पर राष्ट्रीय बहस का निष्कर्ष ट्रेन में सफर के स्तर तक तो नहीं उतरता न! आखिर ये नेता जमीन पर कब उतरेंगे; कब जमीनी हकीकतों को समझेंगे?
कुछ उदाहरण नेताओं की जनता के पैसे से मलाई चाभते रहने वाली नीयत खुलेआम करती है।
यह राजनीति में सादगी और जनता की कमाई को खुद पर न लुटाने का शायद चरम है। आजादी के बाद बिहार के पहले मंत्रिमंडल में अनुग्रह नारायण सिंह ‘नंबर टू’ की हैसियत में थे। उनकी बैठकी में दरी (कालीन नहीं) बिछी थी। ऊपर टेलीफोन का तार था। अक्सर लोगों का पैर इसमें उलझता था। अनुग्रह बाबू के पुत्र सत्येंद्र नारायण सिंह ने तार को दरी के नीचे करने की बात कही। दरी में छेद करना पड़ता। अनुग्रह बाबू ने मना कर दिया। बोले-‘यह सरकारी दरी है। इसको खराब करना मुनासिब नहीं है।’ संयोग देखिये। एक दिन खुद अनुग्रह बाबू का पैर तार में फंस गया। गिरने से बहुत चोट लगी और कुछ दिन बाद उनकी मौत हो गयी। (यह प्रसंग, बहस की किस कैटोगरी में आयेगा-‘क्लास’ वाले बतायेंगे?)।
* कर्पूरी ठाकुर के पास 1972 तक कार या जीप नहीं थी। इससे पहले वे मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री तथा कई महत्वपूर्ण विभागों का मंत्री पद संभाल चुके थे। विधायक तो वे शुरू से रहे। इस दौरान की उनकी सबसे बड़ी पीड़ा-‘काश, एक गाड़ी होती, तो मैं जनता की अधिकाधिक सेवा कर सकता था।’ वे अदद घर भी न बना सके। अपनी मां को अक्सर समझा देते थे-‘जब सबका घर बनेगा, तो हमारा भी बन जायेगा।’
* अनुग्रह नारायण सिंह सेवा विमान से दिल्ली गये। वित्त मंत्रियों की मीटिंग थी। सारंगधर सिंह (सांसद) के घर पहुंचते खाना मांगा। श्री सिंह-‘जहाज में नाश्ता कर लेते!’ अनुग्रह बाबू-‘बड़ा पैसा लेता है।’
* जवाहर लाल नेहरू के पीए एमओ मथाई ने पंडित जी की सादगी का खासा जिक्र किया है। वे प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अपने पिता का दिया कोट पहनते थे। यह पुराना हो गया था। उनको इंग्लैंड जाना था। सलाह आयी-लंदन में कोट खरीद लीजियेगा। पर नेहरू जी ने खादी भंडार से मोटा ऊलेन कपड़ा मंगाया। इससे बने कोट को पहन वे इंग्लैंड गये। वे बहुत दिनों तक छोटे से सरकारी आवास में रहे। गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल बड़ी जद्दोजहद के बाद उन्हें तीन मूर्ति भवन लाये। इस क्रम में पटेल साहब को इस्तीफे तक की पेशकश करनी पड़ी। वे नेहरू जी की सुरक्षा के लिए कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे। तीन मूर्ति भवन में लिफ्ट नहीं थी। नेहरू जी इसमें लगने वाले खर्च को व्यर्थ मानते थे। उनके विदेश दौरे के दौरान डा.विधानचंद्र राय ने दबाव बनाकर लिफ्ट लगवा दी।
* गोविंद बल्लभ पंत केंद्र में मंत्री थे। जब भी पटना आये, अनुग्रह नारायण सिंह के यहां ठहरे। तब पटना का सबसे बड़ा होटल ‘रिपब्लिक’ था। पंत जी इसमें टिकना फिजूल का खर्च मानते थे।
* सुंदर सिंह भंडारी बिहार के राज्यपाल थे। एक अटैची में बस एक जोड़ी कुर्ता- धोती। अपना कपड़ा खुद धोते थे।
* भोला पासवान शास्त्री कई बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनके परिजनों में कुछ मुर्गा बेचते हैं; खेतिहर मजदूर हैं।
* ये बासुदेव प्रसाद सिंह हैं। विधान पार्षद। अक्सर सचिवालय का नया सुरक्षा गार्ड उनको रोक देता है। दरअसल विधायक के स्वरूप की परिभाषा ही बदल गयी है।
* अमरनाथ यादव, रामदेव राय भी विधायक हैं। रामदेव बाबू मंत्री भी थे। दोनों के पैर में कायदे का हवाई चप्पल भी नहीं।
और आज ..! (इनके हवाले पाठक सब कुछ तय करने में खुद सक्षम हैं.)।
वैसे सुविधा के लिए कुछ टिप्स भी दे रहा हूं :-
* मुखिया स्कोर्पियो में घूमता है। (कैसे?).
* तब सिर्फ रामगढ़ के राजा कामाख्या नारायण सिंह के पास हेलिकाप्टर था। वे इससे चुनाव प्रचार करते थे। आज चुनाव में हेलिकाप्टर, टेम्पो की तरह चलता है। (कहां से आता है पैसा?).
* बिहार के एक बड़े नेता ने बेटी की शादी में इतना खर्च किया कि आयकर विभाग ने नोटिस भेज दी। बड़ा रोचक जवाब गया। (ये समाज के पथ प्रदर्शक हैं?).
* जनता के पैसे से माडयूलर चैंबर- किचेन-बाथरूम, फाल्स सीलिंग, मार्बल- टाइल्स, पीओपी, लक्जरी गाड़ी। (और मालिक जनता की इंदिरा आवास की राशि में भी लूट; डेढ़ हजार में शौचालय बनता है?).
* पेट्रोल बचाने की नौटंकी (साइकिल यात्रा)। लालबत्ती गाडि़यों में लदकर स्कूल जाते सर जी के बच्चे और मार्केट जातीं मैडम जी।
* फर्जी यात्रा विपत्र, रेल कूपन घोटाला .., खून में समायी आदत। (जनप्रतिनिधियों का भ्रमण कार्यक्रम क्यों होता है?).
* भाई लोग सरकारी आवास का सोफा -पंखा क्या, पानी टंकी भी ले जाते हैं।
कितना गिनाऊं? कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रामविलास पासवान को ‘पांच सितारा नेता’ कहा। उन्होंने तत्काल होटल छोड़ घर थाम लिया। एक भाई ने केंद्रीय मंत्रियों को रेल में सफर की सलाह दी, तो अगला यह गिनाने लगा कि सलाहदाता के राजपाट में सरकारी वायुयान का कितना दुरुपयोग हुआ? वाकई, हमने आजादी के बाद बहुत ‘प्रगति’ की है। एक ही देश में तीन देश (इंडिया, भारत, हिन्दुस्तनवा) का इकट्ठा सीन। भाई लोगों के लिए मलाई और पब्लिक के लिए लेमनचूस। विटामिन वाला ‘लेमनचूस’ याद है न! आजकल यह भी बंद है।
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