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बच्चे देख रहे थे, हंस रहे थे

फंटूश
फंटूश
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मधुरेश.
यह उन बड़ों (नेताओं) के लिए बच्चों की चेतावनी है, जो हंगामा करते हैं। बच्चे ‘अपने राज’ में उन्हें खारिज कर देंगे। बच्चों को हंगामा पसंद नहीं है। वे हर स्तर पर बेहद अनुशासन चाहते हैं।
विधानसभा की दर्शक दीर्घा में मंगलवार को ‘समानांतर लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था’ के किरदार भी बैठे थे। विधानसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, मंत्री से लेकर नेता प्रतिपक्ष तक। नीचे वेल में बड़ों के हंगामे, उसकी वजह-यानी सभी सब कुछ देख रहे थे। बच्चे जोरदार नारे की हर नई आवाज पर बुरी तरह चौंकते थे। चेहरे पर इकट्ठे ऐसे भाव,मानों कह रहे हों-‘राम-राम, ये बड़े लोग कर क्या रहे हैं; क्यों ऐसी नौबत आने दी गयी?’ बच्चे, बड़ों के मुतल्लिक बड़ी ही खराब धारणा लेकर लौटे। कहने को ये ‘बाल संसद’ के चुनींदे प्रतिभागी थे मगर उनकी बातें ..!
खुद सुनिये। ‘मुख्यमंत्री आर्या मिश्रा’ बोल रही हैं-‘मैं ऐसी स्थिति ही नहीं आने दूंगी। जब ऐसे किसी मसले की गुंजाइश न रहेगी, तो फिर किसी को कुछ बोलने का मौका नहीं मिलेगा।’ आर्या, मिलर हाईस्कूल में 9 वीं कक्षा की छात्रा है मगर उसे व्यवस्था, तंत्र की बखूबी जानकारी है। बोली-‘कानून व व्यवस्थाओं की कमी नहीं है, संकट उनके अनुपालन का है। मैं डिलीवरी सिस्टम पर पूरा ध्यान दूंगी।’
‘मुख्यमंत्री जी’ विपक्ष के हंगामे पर बिफर पड़ीं। उनको तो पता भी न चला कि आज आखिर मुद्दा क्या है? कहा-‘ये कोई तरीका है? समय की बर्बादी है। जनता की गाढ़ी कमाई को बेकार करने की बात है। विपक्ष सरकार का अभिन्न अंग है। उसे अपनी यह भूमिका नहीं भूलनी चाहिये। सदन का मूल मकसद है-जनता के अरमानों का वाहक बनना। इस कदर हंगामे में यह उद्देश्य पूरा होगा?’
संयोग से आर्या जी को बड़ा ही सकारात्मक ‘नेता प्रतिपक्ष’ मिला है। जनाब का नाम कासिफ नजीर है। बोले-”मैं अपने लोगों (विपक्षी सदस्यों) को कभी भी इस भूमिका में आने न दूंगा। ऐसे समस्या का समाधान थोड़े ही होगा? बातचीत हर मसले का हल है। तथ्य या सबूत के आगे किसी का भी जोर नहीं चल सकता है। हम तथ्यपरक मसले उठायेंगे। इसी के बूते ‘सरकार’ को घेरेंगे। सरकार कैसे अपने कारनामे छुपा लेगी? हंगामा तो एक मायने में गड़बडि़यों का संरक्षण है। क्रिया-प्रतिक्रिया में आरोपी के संरक्षित रहने का भी खतरा होता है।” पीएन एंग्लो हाईस्कूल के 11 वीं का यह छात्र विरोध के गांधीवादी तरीके में ज्यादा भरोसा रखता है।
फिर हम ‘अध्यक्ष जी के पास थे।’ ये हैं उज्जवल कुमार। उनका दावा है-‘मैं गार्जियन की भूमिका में रहूंगा। जब दोनों पक्षों का समान उद्देश्य है, तो फिर तकरार की बात कहां से आती है?’ ‘मंत्रियों’ तथा विपक्ष के अन्य सदस्यों की भी कमोवेश यही राय।
.. तो क्या बच्चे गलत हैं? बड़े नहीं सुधरेंगे? ऐसे बड़ों के साथ क्या सलूक होना चाहिये?

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