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कमाई का ‘सैंथिल माडल’

फंटूश
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मधुरेश.
यह ऐसे घोटाला की टिप्स (दास्तान) है, जो नहीं हुआ। दूसरे, ट्राई कर सकते हैं। यह बेजोड़ है। लज्जतदार है। और सबसे बड़ी बात कि इसमें कोई रिस्क नहीं है।
के.सैंथिल कुमार (पटना नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त) ने तहां-तहां थूकने वालों पर जुर्माना तय किया था। बिल्कुल ठीक किया था। क्या तरीका है? जहां मन आया ..! हर काम का लक्ष्य, स्थान, उद्देश्य तो तय होना ही चाहिये। समाज-देश यूं ही आगे नहीं बढ़ता। सैंथिल साहब थूक जैसे आवश्यक शारीरिक उत्सर्जन को प्रबंधन से जोड़ अनुशासित जीवन की महान अवधारणा विकसित करने के अभियान में लगे थे। बुरा हो विजिलेंस वालों का, जनाब को बीच में रोक दिया। (कई तरह के घोटालों के आरोप में सैंथिल साहब फरार हैं। यह भी अजीब संयोग कि जिस दिन से उनका थूक प्रबंधन लागू होने वाला था, उसी दिन से वे गायब हैं.)।
दरअसल, अपना इंडिया (खासकर बिहार) यहीं मार खा जाता है। उससे कोई भी नये टाइप का इनोवेशन बर्दाश्त नहीं होता है। हमें सैंथिल साहब की ‘कुर्बानी’ व्यर्थ नहीं जाने देनी है। यह देश-समाज के हित में नहीं है। उन्होंने खाका तैयार किया हुआ है। मुझे उम्मीद है कि कोई न कोई महारथी इसे जरूर अंजाम देगा।
सैंथिल साहब को देखने-सुनने के बाद अब मैं भी मान चुका हूं कि चरना एक कला है। लहर गिन पैसा कमाने की बेसिक पर चरने की ‘हाई-प्रोफाइल’ तकनीक है। पचाना, नहीं डकारना या सीधे घोंट जाना-इसके चरण हैं। जुगाली, बस नौसिखिये करते हैं। सैंथिल साहब आखिर किस श्रेणी में आयेंगे? विजिलेंस ब्यूरो तय कर रहा है। करते रहे।
जहां तक मुझे लगता है-प्रपोज्ड ‘थूक घोटाला’ में वह सब कुछ है, जो एक घोटाला में चाहिये। ध्यान से सुनिये-इसमें इमोशन है। ड्रामा है। ट्रेजडी है। सस्पेंश है। बहुत कुछ, बहुत सहज है। आरोपी के लिए ढेर सारी गुंजाइश है; सुविधाएं हैं। आरोपी का टेलीग्राम पहले पहुंचेगा, चिट्ठी बाद में आयेगी। जांच एजेंसी आरोपी के इंतजार में तब तक बैठी रहेगी, जब तक कि वह (आरोपी) लिफ्ट न दे। कायदे-कानून आरोपी के पक्ष के हैं। आरोपी अपनी सुविधा से अपनी पूछताछ करायेगा। अपने खिलाफ के सबूतों को नष्ट करने का मौका पायेगा। उसे मूड आयेगा तो जांच एजेंसी को टेलीग्राम भेजेगा, चिट्ठी लिखेगा; फैक्स भी कर सकता है। सब कुछ ठीकठाक रहा तो आगे के दिनों में उसके लिए वीडियो क्रांफ्रेंसिंग की सुविधाएं भी मुहैया कराने की योजना है। है न बड़ा लजीज!
इसमें आरोपी के खिलाफ शायद ही कोई दस्तावेजी सबूत होगा। थूक का लेखा-जोखा रखा जा सकता है? फाइल भी नहीं बनेगी। ऐसे में विजिलेंस क्या, दुनिया की कोई भी एजेंसी कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। हां, कुछ मामले कोर्ट पहुंच सकते हैं। याचिकाकर्ता, आरोप कर सकता है कि ‘मैंने सिर्फ एक बार थूका और मुझसे तीन बार का जुर्माना लिया गया। मेरा थूक मीठा पान वाला था और वसूली गुटखा वाले थूक की हुई है।’ भई, मैं नहीं जानता कि आखिर ये विवाद कैसे निपटेंगे; जांच कैसे होगी? इस मोर्चे पर ब्रेन मैपिंग की लेटेस्ट तकनीक को भी फेल होना है।
मेरी राय में थूक का व्यापक संदर्भ है। अभी तक इस पर ठीक से काम नहीं हुआ है। भाई लोग थूक से बचाव के लिए भगवान का उपयोग कर रहे हैं। बस। यह परंपरागत तरीका है। बेकार है। भगवान की तस्वीर वाली टाइल्स पर भी लोग थूक देते हैं। है न पुरजोर गुंजाइश!
जरा थूक के इस पक्ष को देखिये। दो वर्ष पहले छठ में बाबा ने गंगा में थूक दिया। बवाल। राजद ने मुद्दा बना लिया। धरना दिया गया। यह थूक का राजनीतिकरण है। लालू प्रसाद विदेश से लौटकर संस्मरण सुना रहे थे- ‘सबसे ज्यादा दिक्कत थूक फेंकने में हुई। पान, गुटखा, खैनी खाने वालों के लिए आफत है।’ लेकिन अपना बिहार इस मामले में उदारीकरण के चरम को मजे में जी रहा है। महान् भारत के महान् नागरिक की हैसियत से अब मैं भी मान चुका हूं कि हम आजाद हैं, मुकम्मल आजाद। हम कहीं भी थूक सकते हैं। कोई रोक-टोक नहीं। बिल्कुल उन्मुक्त, बंधन-मुक्त। हम सिर्फ अपने अधिकार को याद रखने को स्वतंत्र हैं। कर्तव्य की देखरेख का जिम्मा सरकार को दे दिया है। यानी, थूकना हमारा कर्तव्य है और साफ कराना सरकार का। यह पृष्ठभूमि भी थूक घोटाले की मजबूत गुंजाइश है।
गांव-गांव थूक से जुड़े मुहावरे उसके संदर्भ का खुलासा हैं। थूक फेंककर चाटना, दरवाजे पर थूकना, आसमान में थूकना, थूक से प्यास बुझाना .., अब तो कुछ भाई पाउडर भी टेस्ट करके खरीदते हैं। थूक, ‘डिंपल चिक, रोजी लीप’ से आगे बढ़ ‘चिक टू चिक, चिक टू लीप एंड लीप टू लीप (लीप लाकिंग)’ के ग्रीटिंग, अफेक्शन और न्यूसेंस के बाडी स्टेप तक जा पहुंचा है। कहा न, गुंजाइश की कमी नहीं है।
सिंगापुर से लौटने के बाद लालू प्रसाद (तत्कालीन मुख्यमंत्री) ने पब्लिक के थूक, पेशाब को अनुशासनबद्ध करने की कोशिश की थी। किसी ने भी उनके मर्म को नहीं समझा। और यही समाज आज सैंथिल साहब को भी नहीं समझ पा रहा है।
बड़ा कंट्रास्ट है भाई! किसको, क्या समझा -कहा जाये? बाबा के आश्रम में बालाएं पकड़ी जाती हैं। बेटा को परीक्षा में चोरी कराने बाप जाता है। बाप-बेटा एकसाथ पुलिस पर पत्थर फेंकते हैं। नेता बोलता कुछ है, करता कुछ है। बापू के बर्थडे (अहिंसा दिवस) पर मुर्गे हलाल होते हैं। सार्वजनिक स्थल पर सिगरेट न पीने का कानून बना हुआ है। स्कूल, खिचड़ी वितरण केंद्र हैं। हम गंगा में कचड़ा फेंकने के तत्काल बाद उसे पूजते भी हैं। मजिस्ट्रेटों की बस्ती में एक किलोमीटर नाला साढ़े छह वर्ष से बन रहा है। साइकिल चोर या जेबकतरा पकड़ाने पर हम अचानक मर्द बन जाते हैं। ऐसे तमाम कंट्रास्ट थूक घोटाला की ताकत हैं, प्रेरणा हैं।
खैर, थूकने वाले खूब खुश हैं। बिंदास थूक रहे हैं। कौन, किस पर थूक रहा है-तय करना मुश्किल है। आप कर सकते हैं? हां, ध्यान से थूकिये, छींटे आप पर ही न पड़ जायें? कुछ थूक के दाग न रिन से साफ होते हैं, न टाइड से।

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