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नेता, पथप्रदर्शक होता है!

फंटूश
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मधुरेश.
जनाब, दिल्ली से पटना लौटे थे। हवाई अड्डे पर खूब जयकारा हुआ। फूलमाला पहनाने की आपाधापी। उन्होंने अपना जोरदार स्वागत प्रायोजित कराया था। कोशिश थी कि यह कायदे से फ्लैश भी हो। बेचारे बहुत दिन तक सीन से लापता रहे। अब सीन में हैं। नई सुर्खी। लोगों की जुबान पर आये। गलियारा में उनका राजनीतिक विश्लेषण हो रहा है।
दरअसल भाई जी यह दिखाना, जताना चाहते थे कि वे दिल्ली में ‘ऐतिहासिक काम’ कर घर लौटे हैं। वाकई, इतिहास तो बन ही गया। राज्यसभा में आज तक जो नहीं हुआ था, कर दिया। अगर नाम कमाने, सीन में आने की इस स्टाइल का इतिहास लेखन होगा, तो भाई जी का नाम ‘स्वर्णाक्षरों’ में होगा। पीढि़यां, भाई जी की खूबियां पढ़ती रहेंगी। जानेंगी कि भाई जी ने कैसे संसद के ‘बिहारी माडल’ को संपूर्ण भारत में ‘प्रतिष्ठापित’ किया; दुनिया को गणतंत्र की अवधारणा परोसने वाला बिहार मार्च 2010 में लोकतंत्र के किस माडल को अख्तियार किया हुआ था? ढेर सारी बातें हैं। तरह-तरह की बातें हैं।
अपने बिहार में नेता, हाथी पर बैठकर जेल से घर लौटता है। भाव-भंगिमा ऐसी, मानों किला फतह कर आये हों। बिल्कुल सही है। जो जमात (नेता), जेल को ‘राजा का किला’ समझता है, वह जमानत मिलने पर ‘जंग’ जीतने का भाव प्रदर्शित करेगा ही। नेताजी की जेल से रिहाई, विजय जुलूस का मौका बनती है। खुशी में गोलियां दागी जाती हैं। एक नेताजी बालाओं के साथ डांस करते हैं। तरह-तरह के नेताजी हैं। तरह-तरह की लीला है।
यह सब क्या है? क्यों है? कब तक चलेगा? कभी रुकेगा? बचपन से पढ़ता- सुनता आ रहा हूं-‘नेता, समाज का पथ प्रदर्शक होता है।’ भाई लोग कौन सा रास्ता दिखा रहे हैं? कैसी प्रेरणा दे रहे हैं? कौन सा समाज बना रहे हैं? इनके बाल-बच्चों की शाही शादियां, ‘मालिक जनता’ अपनी गरीबी पर शर्मसार होती है। राजनीति में शुचिता-सभ्यता .., नई पीढ़ी क्या सीख रही है? यह हर स्तर से जुड़ी लोक-लाज को धो डालने की कोशिश नहीं तो और क्या है?
माफ कीजियेगा, थोड़ा भटक गया था। बात, सदन के बिहारी माडल की हो रही थी। संसद के अध्यक्ष पद के आसन के आसपास के पेपरवेट, पेन सेट या सिर फोड़ने वाली तमाम चीजें आज हटायी गयीं हैं, बिहार विधानसभा में यह काम बहुत पहले हो चुका है। रिपोटर्स टेबुल के पास लकड़ी की बजाय प्लास्टिक की कुर्सियां बहुत पहले रखी जा चुकीं हैं। पर जरा इस भाई का कमाल देखिये। एक विधायक को दांत काट लिया। अब कोई क्या कर लेगा?
अपने बिहार में सदन चलने-चलाने की अपनी-अपनी स्टाइल रही है। विधानसभा के मुतल्लिक अक्सर सवाल उठता है कि जनता के इस सर्वोच्च जनप्रतिनिधि सदन में जनता कहां है? क्या वाकई यह जनता के अरमानों की वाहक है? बहुमत की जोर पर सदन चलाने की संसदीय परंपरा घोषित सी है। लेकिन नेताजी और भी बहुत कुछ सीखा रहे हैं। नई पीढ़ी सीख रही है कि नेता (विधायक) अपने फायदे में पार्टी लाईन तक को तोड़ डालते हैं मगर जनता के सवाल पर ..!
नेता, पथप्रदर्शक की भूमिका में हैं। नई पीढ़ी सीख रही है-‘कैसे हंगामा की गुंजाइश व विवशता बनायी जाती है और फिर बड़ी सहूलियत से कह दिया जाता है-न्यूज बनाने के लिए ऐसा हो रहा है।’ नेता, सदन में नई लाइनें सुना-सीखा रहे हैं-‘सरकार गंभीरता व प्राथमिकता से इस मसले पर विचार करे,’ ‘गंभीरता से देखवा लीजिये’; ‘जी देखवा लेंगे।’ (और गंभीरता का अंदाज इसी से कि कई-कई वर्ष बाद फिर ये सवाल गूंजते हैं)। नेता, पथप्रदर्शन कर रहे हैं-‘अध्यक्ष महोदय मैंने स्पष्ट कहा’, ‘अध्यक्ष महोदय, समय चाहिये।’ (अब तो समयसीमा का भी समय पूछा जाने लगा है)। नेता बोलते हैं-‘अगले वित्तीय वर्ष में निधि की उपलब्धता के आधार पर प्राथमिकता से गंभीरतापूर्वक विचार करेंगे।’ नई पीढ़ी सीख रही है कैसे सदन में शांति के लिए बच्चों का वास्ता भी कोई मायने नहीं रखता।
नेता, नई पीढ़ी का पथ प्रदर्शित कर रहे हैं- कैसे गंभीर मसलों की भी नोटिस नहीं ली जानी चाहिये। अगर शून्यकाल में विधायक बोलते रहें और आप मंत्री हैं तो चुपचाप बैठे रहिये। चमचमाती गाडि़यों से लकदक कपड़ों में उतरिये और तत्काल खुद पर घोर गरीबी को सवार करा नारा लगाइये-‘बीपीएल सूची लागू करो।’ नेता नई पीढ़ी को सीखा रहें हैं-जोरदार नारेबाजी के दौरान भी कैसे खुलकर हंसा जा सकता है; कैसे सामने वाले से भिड़ंत के बाद दो मिनट के भीतर उससे गलबहियां की जाती है? गंभीर सवालों को हंसी में उड़ाना। आफ दि रिकार्ड-आन दि रिकार्ड। सदन में कुछ, लाबी में कुछ। नेता के सामने कुछ, जनता के सामने कुछ और। भाषण कुछ, काम कुछ और।
नेता, रास्ता दिखा रहे हैं-झूठ शब्द असंसदीय है। लेकिन यहां तो पूरा सीन ही ..! भाषा की मर्यादा नहीं। कार्यवाही से बाहर की गयीं बातें सार्वजनिक होती हैं। सदस्यों को संतुष्ट करने का बड़ा आसान सा तरीका है। बोल दीजिये-जांच में माननीय सदस्य भी रहेंगे। सदन की कमेटी की जांच का शायद ही कोई मतलब है।
नेता बता रहे हैं-होम वर्क, बस बच्चों का काम है। जवाब, पूरक प्रश्न-दोनों दमदार नहीं। नेता समझा रहे हैं-बजट पर बहस के मौके का दूसरा इस्तेमाल हो सकता है। समस्याग्रस्त बिहार में सवालों का टोटा हो सकता है। तो क्या वाकई नेता, पथप्रदर्शक होता है। अगर हां, तो क्या-क्या सीखा रहा है?

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