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शीर्षक : नोटों की माला

फंटूश
फंटूश
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मधुरेश.
मैंने भी मान लिया है कि फूल बहुत नाजुक होते हैं। बड़ी जल्दी मुरझा जाते हैं। राजनीति में टिकाऊ चीजें चलती हैं। अब नोटों की माला लांच हुई है।
इसके कई फायदे हैं। नोट नहीं मुरझाते हैं। नेता को भी मुरझाने नहीं देते हैं। चेहरे पर कांति बनाये रखते हैं। नेताओं के लिए यह बहुत जरूरी था। बेचारों पर बड़ा बोझ होता है। अहा, देश-समाज के लिए बेचारे कितनी पीड़ा झेलते रहते हैं! नोटों की माला नेताओं के लिए बड़ी राहत है। नोट बड़े हल्के होते हैं। मगर कीमत के स्तर पर ..! बड़ा सीधा सा हिसाब है- बमुश्किल तीन सौ रुपये की पांच किलो गेंदा फूल की माला ढोने वाली गर्दन इतनी ही मशक्कत में कई लाख-करोड़ रुपये ढो सकती है। नेता को बोझ तले दबने से बचाना इस देश के हर नागरिक का परम कर्तव्य है। इस दिशा में ‘नोटों की माला’ का आविष्कार बड़ा ही सामयिक एवं ऐतिहासिक है। मेरी राय में वे तमाम इस देश के दुश्मन हैं, जो राजनीति की इस नवीन विधा के पीछे पड़े हैं, इसे समाप्त करने पर उतारू हैं।
उस दिन पटना एयरपोर्ट पर एजाज भाई (डा.एजाज अली, राज्यसभा सदस्य) को देखते हुए हालांकि नोटों की माला के ढेर सारे खतरे भी दिखे। सीन कुछ इस तरह था। भाई लोगों ने डाक्क साब के चेहरे पर गेंदा फूल की परंपरागत माला लपेट दी और नोटों की माला लूट ली। गनीमत थी। इस दौरान सिक्कों का कोई रोल नहीं था। वरना ..! एजाज भाई सर्जन हैं। जान सकते हैं कि तब कहां-कहां आपरेशन की दरकार होती?
नेता का नोट प्रेम बड़ा पुराना है। नोट प्रेमी नेताओं की सूची बड़ी लंबी है। कई के बारे में प्रचलित रहा है-‘जब तक .. रुपये न आ जायें, जनाब मुंह नहीं धोते थे।’ वोट और नोट का अब जो संबंध है, यह तय करना मुश्किल है कि दोनों में धरती पर पहले कौन आया? ‘एक नोट-एक वोट’, चुनावी जीतने की पवित्र एवं असरदार तकनीक रही है। नोट लेकर नेताजी जनता के दिलों में उतरते रहे हैं। पिछले ही लोकसभा चुनाव में एक नेता ने असली वोट के लिए नकली नोट बांट दिये। वोट देने के एकाध दिन बाद जब कुछ भाई लोग अपने लोकतंत्र की कीमत के साथ बाजार में हाजिर हुए, तो दुकानदार ने उसे नकली बता दिया। ‘नकली नोट रखना जुर्म है’, बड़ी संख्या में ‘मालिक जनता’, नेता के धोखा के इस नये अनुभव के साथ चुपचाप घर बैठ गयी। धोखा पी लिया गया।
खैर, राजनीति में नोट का जो भी खेला हो- अभी तक इस बारे में लोक-लाज का पूरा ख्याल रखा जाता था। अव्वल तो किसी को जानकारी नहीं होती थी या फिर यह सब स्टिंग आपरेशन की गुंजाइश बनाता था। लेकिन नोटों की माला ने तो यह गुंजाइश भी खत्म कर दी है। भाई लोग डंके की चोट पर खुलेआम नेता जी की गर्दन तक पहुंच गये हैं।
अभी तक नेता सिक्कों से तौलाते रहे हैं। इतनी बड़ी मालाएं कि पूरा मंच समा जाये। पार्टी के तमाम गुट इकट्ठे गुंथे दिखते हैं। नेता को मुकुट दिया जाता रहा है। सरोपा, तलवार भेंट करना, पाग पहनाना, साफा बांधना, केसरिया बाना लपेटना, सम्मान पत्र देना, प्रतीक चिह्न समर्पित करना .., नोटों की माला सब पर भारी है। इसका कोई जोड़ नहीं है। इसके बाई-प्रोडक्ट्स आने बाकी हैं। बहुत कुछ हो सकता है। लेकिन केंद्र में नोट ही रहेगा।
अभी कुछ दिन पहले एक आदमी (इंजीनियर) ने डाइरेक्ट नोट खा लिया। पांच -पांच सौ कुल तेरह नोट थे। लीवर परेशान रहा। असल में उसे नोट पचाने की कला नहीं आती है। आदमी से अटैच रहते लीवर ने अलकतरा, दवा, चारा, बांध, पुल, सड़क, इंदिरा आवास, किरासन आदि पचाने के गुर सीख लिये हैं। बेशक, ये सब नोट के बाई- प्रोडक्ट हैं लेकिन सीधा नोट हाजमा को चुनौती दे सकता है। कई-कई खतरे हैं। लीवर का क्या होगा; किडनी भी प्रभावित होगी? डकार आयेगी भी कि नहीं? शोध इस बात पर भी हो सकता है कि लीवर के संपर्क में आने के बाद पांच सौ का नोट कैसा लगता है? नोटों की माला, इन तमाम खतरों से मुक्त है। बड़ा ही सुविधाजनक व स्वास्थ्यव‌र्द्धक है। इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। कोई सबूत भी नहीं।
देश में पहली बार किसी नेता के माला की जांच हो रही है। आयकर विभाग जुटा है। वह नेता के बाल-बच्चों की शादियों में उड़े नोट भी गिन चुका है। भई, अपुन तो यही जानते हैं। नेता, सबसे बड़ा फंड मैनेजर होता है। मैनेज कर ही लेता है। शाबास! लगे रहो इंडिया!

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