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दम मार के जिंदाबाद

फंटूश
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(मधुरेश).
जिंदाबाद में बड़ी ताकत होती है। बहुत जोर होता है। बहुत जोर लगाना भी पड़ता है। दम मारने से भी ज्यादा जोर। दम मारने की फुर्सत नहीं होती है। लेकिन जब कोई दम मारकर जिंदाबाद बुलंद करे तब ..!
उस दिन पटना के डाकबंगला चौराहा पर यही जोर था। दम का जोर। ये भारत बंद कराने वालों की एक दमदार टोली थी। पहले दम मारती थी। फिर जिंदाबाद का नारा लगाती थी। जिंदाबाद के बाद फिर दम मारती थी। बारी- बारी से। रोटेशन में। अद्भुत दृश्य था। सभी पूरे मनोयोग से दम मारने और जिंदाबाद के नारे लगाने में मशगूल थे। मुझे लग गया कि अब इस देश से महंगाई, कालाबाजारी, भ्रष्टाचार भागकर ही दम लेगा। मुए, दम ही नहीं लेने देते थे।
दम के कई-कई विश्लेषण हैं। दम के कई -कई प्रकार हैं। एक दमदार सीरियल रहा है- ‘दस का दम।’ लेकिन राजनीति में दम को संख्या में नहीं बांधा जा सकता। बंद के दिन ही मनेर में नये तरह का दम था। बियर और दारू का दम। ‘दम पे दम मारे जा’ की तर्ज पर यहां कुछ और गाया जा रहा था। यहां दम की परिभाषा बदली हुई थी। मुझे दम के बारे में नया ज्ञान हुआ है। यह मौके और स्थान के आधार पर लगातार बदलती है।
मैं हतप्रभ हूं। बेशक, आजकल राजनीति की परिभाषा बहुत अंशों में मौज+अराजकता =राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती है। पर इस कदर खुलेआम दमदार दम पहली बार देखा। पता नहीं आगे के दिनों में बंद के दौरान दम का स्वरूप कैसा रहेगा?
मैं नहीं जानता कि बार बालाओं के साथ डांस करने वाले जदयू के विधायक जी का क्या हुआ? लेकिन इधर ऐसी ही एक और जानकारी हुई है। एक और दमदार विधायक जी से उनकी पार्टी (राजद) ने मौज-मस्ती के दम के मुतल्लिक एक्सप्लानेशन पूछा गया है। जनाब, महंगाई की गम में अपने सहयोगी- समर्थकों के साथ गम भुलाने का उपाय कर रहे थे। बंद के दौरान सड़क पर बियर व दारू पीने का सीन क्रियेट कर रहे थे। एक्सप्लानेशन से क्या हो गया? क्या हो जायेगा? एक्सप्लानेशन, आने वाले दिनों में ऐसी नौबत को रोक देगा? है किसी में इस दम को रोकने का दम? शायद नहीं।
यह दम कई रूपों में परिलक्षित है। यही दम है, जो भगोड़े अपराधी रीतलाल यादव को किसान महापंचायत का तोरणद्वार बनाने की दम देता है। इसी दम पर स्वामी नित्यानंद व्यवस्था को बेहिचक चुनौती देता है कि ‘मैं तो मर्द ही नहीं हूं। मैं यौन अपराध का आरोपी कैसे हो सकता हूं?’ जरा, इस दम को देखिये। थोड़ी पुरानी बात है। एक बुजुर्ग विधायक सुना रहे थे-‘एसपी मेरे पीछे पड़ा था। पता चला मुझे बलात्कार के झूठे मुकदमे में फंसाने के चक्कर में है। मैं भी पैर में प्लास्टर लगवा लेट गया अस्पताल में।’ एसपी की दूसरी रणनीति सुनने को मिली-‘पैर टूट गया, तो क्या हुआ, हाथ तो ठीक है न!’ यानी, दुरुस्त हाथ वाले भी बलात्कार के आरोपी बन सकते हैं। (नित्यानंद के मामले की जांच करने वालों को इस आईपीएस अधिकारी की मदद लेनी चाहिये)। यह पुलिसिया दम है।
माफ कीजिये, मैं थोड़ा भटक गया था। बात, दम और उससे जुड़े बहके मिजाज की हो रही थी। राजनीति में यह कई रूपों में हैं। दम का एक पार्ट बाबी हत्याकांड, शिल्पी-गौतम हत्याकांड, चंपा विश्वास बलात्कार कांड, पापरी बोस अपहरण कांड, सुभाष-सुशान हत्याकांड, दीपा मुर्मू कांड .., लंबी फेहरिस्त दिखाता है। किसी भी मामले में नसीहत वाली कार्रवाई हुई?
दम के क्रम में ही एकाध और पुरानी बात याद आ रही है। लालू प्रसाद को अपने एक विधायक योगेंद्र सरदार को पार्टी से निकाल दिया। श्री सरदार एक लड़की के साथ बलात्कार कर रहे थे। लड़की ने उनका लिंग काट लिया था। आयकर विभाग वालों की छापामारी में एक मंत्री के चैंबर से बहकी मिजाज वाली चीजें मिलीं थीं। राजनीतिक रैलियों के दौरान दम अलग अंदाज में दिखता है। पाश इलाकों में अपसंस्कृति की पराकाष्ठा। भद्दे-अश्लील गाने, नर्तकियों के नाच .., मंत्री -विधायक जी खुद को दमदार दिखाने में नहीं चूकते। गंवई संस्कृति के नाम पर लौंडा या हिजड़ा नाच दम का ही हिस्सा है। जाहिर तौर पर इन सबका सीधा असर महिलाओं या लड़कियों के खिलाफ बढ़ते आम अपराध (खासकर बलात्कार) के रूप में पड़ा है। इसकी लंबी समाजशास्त्रीय-मनोवैज्ञानिक व्याख्या हो सकती है।
एक नेताजी से पटना के सबसे बड़े होटल में झूमते हुए ‘ठोंक दूंगा’ बोलते हुए सबको धमकाते हैं। उनका अपना दम है। विधानसभा में अक्सर दो विधायकों से भाई लोग पूछते हैं-‘भोर में ही मार लिये हैं क्या?’ विधायक जी दम मारने में महारथी हैं। एक नेता, जेल से हाथी पर बैठकर लौटता है। दूसरा, जेल से विजय जुलूस के घर आता है। नये तरह का दम।
नेताओं के दम ने जनता को बहुत कुछ सिखाया है। यह कि परीक्षा में चोरी नहीं करने का गुस्सा ट्रेन पर निकालो। मुफ्तखोरी, अराजकता तक के दम। नेता, जाति के आधार पर टिकट बांटता है। जनता, जाति के आधार पर वोट देती है। दोनों दमदार हैं।
बहरहाल, राहत की बात है कि तमाम तरह का दम या उसको मारने के बावजूद हमारे नेता विधानसभा या लोकसभा में यूके्रन की संसद जैसा सीन पैदा नहीं करते हैं। सूट पहनने वाला नेता, दूसरे सूट वाले की खुले तौर पर मूंछ नहीं उखाड़ता है। हमारे सदन में अंडा नहीं फेंका जाता है। स्मोक बम का यूज। अभी हमारे नेता इतने दमदार नहीं हैं।

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