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नेता का दिल

फंटूश
फंटूश
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मेरा भ्रम दूर हुआ है। मैंने मान लिया है कि नेता के पास दिल होता है। इधर नेताओं के दिल टूटने,जुड़ने की घटनाएं लगातार हो रहीं हैं। दिल है, तभी तो टूट-जुड़ रहा है। दो दिन पहले एक टूटे दिल नेताजी मिले। दिल जोड़ने के उपाय में हैं। मूड में स्टार्ट हो गये-‘दिमाग में तीन तरह का कैसेट फिट है। कांग्रेस- लोजपा में जाने के लिए ये बोलूंगा, भाजपा के लिए ये और जदयू के लिए ये-ये!’ मैंने, उनका कैसेट सुना। इतना ही धांसू उनका दिल टूटने का वृतांत भी था। मेरी गारंटी है कि अगले हफ्ते तक उनका दिल फुदकने लगेगा। मैंने कई मर्तबा उनके दिल को टूटते और फिर फुदकते हुए देखा है। बहुत मौज में हैं। रहेंगे। खैर, इधर नये तरह का डेवलप हुआ कुछ दिल देख रहा हूं। आपसे शेयर करता हूं। एक है-रेड़ी का तेल लगा दिल। दूसरा-ब्रह्म बाबा का लस्सा वाला दिल। तेल लगा दिल कभी भी फिसल सकता है। फिसलेगा, तो टूटेगा ही। हां, दूसरा वाला फेविकोल जैसी गारंटी रखता है। मौसम विज्ञानियों को मात दिये कुछ दिल वालों के अनुसार यह दिल अभी के मार्केट में नहीं चलेगा। मैं उनसे सहमत हूं। मार्केट को आप भी देखिये। मार्केट में ‘सत्ता ही सत्य है’ गूंज रहा है। मार्केट बौराया हुआ है। मौकापरस्ती शब्द शरमा रहा है। सुबह की दोस्ती, दोपहर की दुश्मनी में बदल रही है। कुछ दिल वालों का शाम या रात का ठिकाना बताना मुश्किल है। उनके दिल का एंटेना एकसाथ कई जगह पर भिड़ा हुआ है। अपना-अपना दिल थामे एक जमात नये नारे रट रही है। घर के लोगों का भी दिल बदल रही है। दिल के मार्केट में डेड दिल, रीजेक्टेड दिल, भूतपूर्व दिल जैसे प्रोडक्ट (दिल) हैं। मेढक तो नहीं तौले जा सकते। किंतु मार्केट दिल वालों को तौल रहा है। राजनीति में सिद्धांत, प्रतिबद्धता, दर्शन की रोज पतली होती लकीर और चमक खोती लीडरशिप मार्केट में नीलाम है। खुद पर भरोसा, अपनों पर कमांड, जनाधार संबंधी दावे, उम्मीदवार चयन प्रक्रिया .., संसदीय राजनीति के आदर्श कराह रहे हैं। मार्केट में ‘मालिक जनता’ बेमतलब की है। वह दिल वालों को कबूल भी लेती है। वाकई, भारत महान है और यहां के लोग बड़े दिल वाले हैं।

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