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नेता की कविता

फंटूश
फंटूश
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नेताओं ने अपना नया गुण दिखाया है। वे कविता लिख सकते हैं। कविता पढ़ सकते हैं।
मैं तो यह कहता हूं कि नेता कुछ भी कर सकते हैं। उनके लिए सबकुछ बड़ा आसान है। मैं, राजनीति में लिखा-पढ़ी के मामले में अभी तक नेताओं के पत्र और डायरी लेखन कला को ही जानता था। कुछेक कवि जी और उनकी कुटिया भर से वाकिफ था। अभी तो राजनीति में कविता- विस्फोट का काल है। बाप रे बाप, इतने सारे कवि, कविताएं …! मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि नेताजी गलती से राजनीति में हैं या राजनीति में रहते कविता लिखने की गलती कर रहे हैं?
कोई भी चकरा जायेगा। भाई लोगों की कलम से हिन्दी कविता को नई विधा मिली है-उन्मुक्तवाद। यह नेताओं के आचरण के अनुकूल है। कहीं-कोई बंधन नहीं, बिल्कुल स्वतंत्र-स्वछंद। बिल्कुल राजनीति की आरी-तिरछी चालों के मुताबिक। रोज नई तरह की कविताएं उपज रही हैं। शह-मात की कविताएं। कलम जय-जय बोल रही है।
मैंने बहुत दिन पहले विधानसभा में रामलषण राम रमण की कविता सुनी थी। तब वे शिक्षा मंत्री थे। कविता की शुरूआती दो पंक्तियां-‘रम पी यूं या ह्विस्की-बात करूं मैं किसकी-किसकी …!Ó इससे भी बहुत पहले वृषिण पटेल ने विधानसभा में लालू प्रसाद के लिए कविता पढ़ी थी-‘चांदी जैसे बाल हैं तेरे, सेव जैसे गाल; एक ही तू ही धनवान लालू, बाकी सब कंगाल।Ó ‘चारा चोर-खजाना चोरÓ (पुस्तिका- कैसेट) में ऐसी ही कुछ कविताएं थीं।
मेरी राय में बिहारी राजनीति में कविता की भरपूर गुंजाइश रही है। लालू प्रसाद ने ‘मच्छर चालीसाÓ और ‘लालू चालीसाÓ लिखने वाले ब्रह्मदेव आनंद पासवान को राज्यसभा भेज दिया। बाद में इन्हीं अरमानों के साथ कुछ लोगों ने ‘नीतीश चालीसाÓ लिखी। नीतीश जी ने ऐसे लोगों को लिफ्ट नहीं दी। वे राजनीति में कविता संस्कृति की ‘हत्याÓ के आरोपी हो सकते थे मगर खुशी की बात है कि उन्होंने कविता संस्कृति को अब नया आयाम दिया है।
अभी तक कविता के शब्द ठीकठाक हैं। कवियों की जुबान या कलम बहकी नहीं है। यह बड़ा खतरा है। असल में बिहार की राजनीति में बदजुबानी की बड़ी लंबी दास्तान है। पिछले कई चुनावों ने राजनीति में गाली की हद वाली आलोचना की मजबूत गुंजाइश दिखायी है। यह बिहारी राजनीति में उछाल की आवश्यक शर्त तो थी ही, अब पब्लिक को सहूलियत से चार्ज करने की तकनीक भी मान ली गयी है। जनता भी उकसावे या भड़काने वाली बातों से तृप्त हो जाती है। पांच वर्षों के दौरान नेताओं के प्रति पाला गया उसका गुस्सा काफूर हो जाता है और वह तालियां बजाती हुई बूथ पर पहुंच जाती है।
शुक्र है कि अभी तक बाबा (शिवानंद तिवारी) का कविता पाठ शुरू नहीं हुआ है। यहां कवि हृदय सम्राट नेताओं की अपनी-अपनी शब्दावली है। यह ‘भूतÓ, ‘विकास पुरुषÓ, ‘शिलापट्टï एक्सप्रेसÓ, ‘घोषणा मंत्रीÓ, ‘सपनों के सौदागरÓ, ‘हिटलर- गोएबल्सÓ जैसे प्रतीकात्मक बिंबों से शुरू होकर ‘पका कटहलÓ, ‘सड़ा आमÓ ‘राजनीतिक गिरगिटÓ, पेट में दांत, बताह (पागल), रंगुआ सियार, छछूंदर, बंदर, कुत्ता, सांढ़, राक्षस, सूर्पनखा आदि पर खत्म होता है। अब पता नहीं यह सब कविता म

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