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मैं डा.सी.पी.ठाकुर (प्रदेश भाजपा अध्यक्ष) को बहुत दिन से जानता हूं। कई मर्तबा यह तय करने में मुश्किल हुई कि वे गलती से राजनीति में हैं या नेता रहते हुए डाक्टरी की गलती कर रहे हैं? मगर मैं, पिछले ढाई दिन से उन्हें थैंक्स बोलने को ढूंढ़ रहा हूं। मिल ही नहीं रहे हैं।
मैं, महान भारत की महान जनता के नाते डाक्क साब पर फिदा हूं। उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में मेरा गजब का ज्ञानवद्र्धन किया है। अब मुझे भी समझ में आने लगा है आखिर बिहार को लोकतंत्र की जन्मभूमि या क्रांति का प्रदेश क्यों कहा जाता है? मेरी राय में डाक्क साब का इस्तीफा, वस्तुत: क्रांतिकारी कदम रहा। इससे कई-कई ‘क्रांतियोंÓ होतीं। लेकिन यथास्थितिवादियों ने …! हर प्रगतिशील कदम रोक ही लिये जाते हैं।
डाक्क साब राजनीतिशास्त्री हैं। उन्होंने राजनीति में इस्तीफा के प्रकार को परिभाषित किया है। यह दो प्रकार का होता है-टेम्पोररी और परमानेंट। डाक्क साहब पहले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने यह कहने की हिम्मत जुटाई कि ‘मेरा इस्तीफा परमानेंट थोड़े था।Ó आज तक किसी ने ऐसा किया? कितनों में है यह हिम्मत?
डाक्क साब ने इस्तीफे को नया अंदाज दिया है। राजनीति में आने वाली पीढ़ी उन्हें प्रणाम करती रहेगी। अभी तक इस्तीफा का बड़ा ही घिसा- पिटा और परंपरागत स्वरूप था। एक इस्तीफा नैतिकता के आधार पर हुआ करता था और दूसरा, नैतिकता को जिंदा रखने के लिए दबाव बनवा कर। बाद में थोड़ा चेंज हुआ। इस्तीफे की मांग होने लगी। इस्तीफा नहीं देने के नपे-तुले तर्क या जवाब भी आने लगे। यह सब कबूला भी गया। असल में इस्तीफा मांगने और नहीं देने की बात पर कायम रहने की नैतिकता किसी में शायद ही रही। सभी ने इस्तीफे के मोर्चे पर अपनी खातिर पुरजोर गुंजाइश मजे में रखी। अब ऐसा नहीं होगा। इस्तीफा मांगने वाले और जिनसे मांगा जा रहा है, दोनों डाक्क साब द्वारा प्रतिपादित किये गये इस्तीफा के प्रकार को अपनी जेहन में रखेंगे।
मेरी राय में डाक्क साब ने कोई गलती नहीं की है? यह उनका महान कदम रहा है। उन्होंने अपने कदम से राजनीतिक क्षरण को बिल्कुल खुले में ला दिया है। चौधरी चरण सिंह कहा करते थे-‘मैंने किसी भी दागी या आपराधिक छवि के व्यक्ति को टिकट न देने की पूरी कोशिश की है। लेकिन गलती से ऐसा हो भी गया है, तो जनता से मैं आग्रह करता हूं कि वह ऐसे लोगों को वोट न दे।Ó आज …! अपनों के बचाव में अपराध के ‘क्राइम, वाइस, सीनÓ जैसे प्रकार पर बहस होती है। कहा जाता है कि जब तक अंतिम अदालत से सजा न मिल जाये, किसी को आरोपी कहना और इस आधार पर उससे इस्तीफा मांगना मुनासिब नहीं है। बताइये, यह अराजक पृष्ठभूमि डाक्क साब के लिए थैंक्स की गुंजाइश नहीं बनाती है?
आखिर उनका शुक्रिया क्यों नहीं अदा किया जाये? अब कितने नेता दूसरों को अपना ‘राजनीतिक पुत्रÓ बनाने-बताने का माद्दा रखते हैं? कितनों की जुबान से अपने बेटे के खिलाफ यह बात निकलती है कि ‘यह तो व्यापारी है और मेरा राजनीतिक वारिस फलां है?Ó और निकलेगा भी क्यों? इसी चुनावी धमक में महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण नहीं भुला दिये? कहां गये उनके वारिस? महात्मा गांधी के जन्मदिन का आभास तो दारू और मुर्गा-मीट की दुकानों की बंदी से होता है। इस दिन भी महान जनता की जीभ, लीवर से मुर्गे की टांग को पचाने की डिमांड करती है। तो डाक्क साब कैसे गलत हुए?
मैं, कुछ दिन पहले तारिक अनवर को सुन रहा था। वे अपने एक बड़े नेता की घर वापसी के मौके पर बोल रहे थे-‘इनका शरीर … पार्टी में गया था लेकिन इनकी आत्मा यहीं पुराने घर में ही थी।Ó चलिये, इस भाषण में भी थोड़ी-बहुत नैतिकता झलकती है लेकिन इस बार तो भाई लोग शरीर- आत्मा क्या, अपने सब कुछ के साथ जहां-तहां टहल लिये। तो डाक्क साब कैसे कसूरवार हैं? बताइये?
मेरी राय में डाक्क साब ने बिल्कुल गलत नहीं किया। कई दलों में क्रास कनेक्शन है। बाप एक पार्टी में, बेटा दूसरी में। टिकट के लिए क्या नहीं हो गया? टिकट की एवज में लखपति बने लोगों की कमी है? मेढ़क तराजू पर नहीं तौले जा सकते हैं। नेता ने खुद अपना तराजू बना लिया। खैर, ‘अगेन थैंक्स टू डाक्क साब!Ó
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