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सबसे पहले चौधरी साहब को बधाई। उन्होंने वर्मा जी को री-प्लेस किया है। कुछ दिन पहले तक वर्मा जी पहले नंबर पर थे। भई, माफ करेंगे! मैं यह गारंटी नहीं दे सकता कि चौधरी साहब ही नम्बर वन रहेंगे।
फिलहाल, यह गारंटी कोई नहीं दे सकता है। सरकार इन लोगों की संपत्ति जब्त कर रही है। अब इनकी रैंकिंग सी तय हो रही है। हां, कुछ दिन बाद हम यह जानने की स्थिति में हो सकते हैं कि बिहार का सबसे बड़ा रिश्वतखोर कौन है? मेरे अलावा बिहार के लिए यह नया ज्ञान होगा।
मैं, लोकसेवकों की कमाई पर शुरू से कंफ्यूजन में हूं। इधर, यह कुछ ज्यादा बढ़ा है। दरअसल, हम सब जमाना नहीं, रेट खराब है, की दौर में जीते रहे हैं। घूस का हिसाब बिल्कुल गड़बड़ा हुआ रहा है। तभी तो डीजी, जमीन का दो-तीन प्लाट से ज्यादा नहीं खरीद पाता लेकिन डीएफओ, शहरी इलाके में 47 क_ïा जमीन का मालिक बन जाता है। हेडक्लर्क पांच हजार से कम पर नहीं बिकता मगर सीओ की कीमत बमुश्किल 500 रुपए रही है।
राजग-2, बिहार विशेष न्यायालय विधेयक 09 की राष्टरपति से स्वीकृति के बाद भ्रष्टïाचारियों की संपत्ति जब्त करने का अधिकारी बना है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का ऐलान कर चुके हैं। भ्रष्टों की चर्बी उतारने की बात कह रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में लगभग सब कुछ लगातार खुले में आ रहा है। रिश्वतखोरों के बारे में मेरा ज्ञान लगातार बढ़ रहा है। आप भी लाभान्वित होईये।
मैं, आज तक तय नहीं कर पाया था ये जनाब (लोकसेवक) आखिर वेतन की एवज में काम कब करते हैं? घूस लेने और उसे सेट करने से समय बचता है? अब पता चल रहा है कि वे बेजोड़ फंड मैनेजर हैं। घूस के रुपये का बेहतरीन नियोजन करते हैं। इंदिरा आवास के लिए रुपये लेते हैं। इससे शेयर खरीदते हैं, फिक्स डिपाजिट करते हैं। और आखिर में करोड़पति बनते हैं।
मैं आज तक यह भी नहीं जान पाया कि आखिर एक लोकसेवक खुद को बेचकर कितना कमा सकता है? इसका मुनासिब हिसाब गड़बड़ा हुआ रहा है। जांच एजेंसियां बड़ी संकट में रहीं। वे चाहकर भी भ्रष्टïाचारियों की रैंकिंग नहीं कर पाईं। कई तरह की कठिनाई है। वर्मा जी या सिन्हा जी की फाइल क्लोज होने वाली ही होती है कि पता चलता है कि अमुक शहर में भी उनकी बीस लाख की संपत्ति है।
कौन, कितना जिम्मेदार है? व्यवस्था के सिर ठीकरा फोड़ समाज-परिवार अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो सकता है? किसने नियोजित तरीके से इस आम मानसिकता को मार डाला, जो मौका मिलते ही किसी को भी लूट को उद्यत कर देती है; जिसकी बाकायदा सामाजिक मान्यता है और जो ईमानदारी को अजीबोगरीब तरीके से परिभाषित किये हुए है-ईमानदार वही है, जिसे बेईमानी का मौका नहीं मिला।
भई, मैं तो देख रहा हूं। खून में समाई रिश्वतखोरी की सामाजिक-पारिवारिक स्वीकृति हर स्तर पर परिलक्षित है। शादियों के मौसम में यह शान-शौकत के रूप में साफ दिखती। टूटी साइकिल पर घूमने वाला व्यक्ति मुखिया बनते ही कैसे स्कोर्पियो सवार बन जाता है?
स्पेशल विजिलेंस यूनिट के एक बड़े अफसर बता रहे थे-भ्रष्टïाचारी को दबोचना पानी पीती मछली को पकडऩे जैसा मुश्किल काम है। भ्रष्टïाचारी को पनाह देने, मनोबल बढ़ाने के नमूनों या तरीकों की कमी रही है? चारा, दवा, अलकतरा घोटाला …, बेशक, घोटालों का प्रदेश के रूप में बदनामी पाये इस प्रदेश में चुनौतियों के मोर्चों की कमी नहीं है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, सत्ता संभालने के बाद से काली कमाई करने वालों का पानी उतारने में लगे है। दूसरी मर्तबा शासन संभालने के बाद वे और तल्ख हैं। उनके तेवर, कामयाबी के आगाज हैं और यही हर बिहारी की कामना है। देश, भी बिहार की तरफ देख रहा है।
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