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मुझे लगता है कि गांधी का देश, यानी कि अपना देश बहुत आगे बढ़ गया है। हमने बापू जैसी विभूतियों को याद करने की तारीख तय कर ली है। हम बाकी दिन उन्हें पूरी तरह भूले रहते हैं। याद करने वाले दिन का जुमला सुनिये-गांधी के रास्ते चलकर ही हमारी समस्याओं का निदान होगा। सभी इसी मार्ग पर चलें। यह बस उपदेश या फिर आह्वान की शक्ल में होता है। तर्ज यही है कि महात्मा गांधी पैदा तो हों, मगर पड़ोसी के घर में।
बहरहाल, शहीद दिवस के मौके पर देखिये गांधी के देश को; अपने को …
* स्वतंत्रता का मतलब स्वच्छंदता है।
* अपनी-अपनी स्वतंत्रता है। सबको अपने अधिकार खूब याद हैं। मगर कर्तव्य …!
* हां, हम सरकार को खूब कोसते हैं।
* भाई लोग जेल से हाथी पर बैठकर घर आते हैं।
* चुनावी टिकट की एडवांस बुकिंग होती है।
* इलेक्ट्रानिक चैनल बड़ा ही तेज हैं। टीआरपी की होड़, एक ही देश में तीन देश (भारत, इंडिया, हिन्दुस्तनवा) बनाये हुए है।
* चैनल सीखाते हैं-के फार किस। और ये भी कि ये वाला मुंडा कितना टोइंग है?
* मोबाइल के इन-बाक्स में दिन भर प्यार व रिश्तों के ऑफर टपकते रहते हैं।
* कुलपति जेल जा रहे हैं। न्यायाधीश आरोपी बन रहे हैं।
* नेता का बेटा नेता ही होता है। नेता की बेटी, पतोहू, पत्नी, बहन …, यानी तमाम रिश्तेदार नेता बनने का जन्मसिद्ध अधिकार रखते हैं।
* बदजुबानी, राजनीति की जरूरी योग्यता है।
* नेता, सबसे बड़ा फंड मैनेजर होता है।
* चार्जशीटेड व्यक्ति, संवैधानिक पद पर रह सकता है।
* समरथ को नहीं दोष गोंसाई, कोई नृप होय हमें का हानि, बेहद प्रचलित है।
* मध्याह्न भोजन में नानवेज खिचड़ी मिलती है। कहीं चावल-दाल के साथ के पौष्टिक कीड़े खौलाये जाते हैं, तो कहीं देश की एकता-अखंडता और बच्चों के स्वास्थ्य के लिये छिपकली खुद को शहीद कर लेती है।
* अपना-अपना राज्यपाल है।
* पालिटिक्स का सूत्रवाक्य है-मलाई मारिये, लेमनचूस बांटिये। नेता के लिए मलाई, पब्लिक के लिए लेमनचूस।
* गरीबी बड़ी लजीज होती है। चरने के हाई-प्रोफाइल हैं।
* स्टार सुंदरियां ताज हासिल करने के बाद झोपड़पट्टïी में आती हैं, बच्चों की नाक पोंछती हैं। बुलंदी के सर्टिफिकेट पर झोपड़पट्टïी अंतिम मुहर मारती है। यह सब आदमी कहलाने का जरूरी पार्ट है।
* तरह-तरह के दानी हैं।
* बैन चाइल्ड लेबर अभियान की असलियत छुपी है?
* हवाई जहाज के एक्जीक्यूटिव क्लास तथा इकोनामिक क्लास पर राष्ट्रव्यापी बहस होती है।
* धान-गेहूं खरीद से लेकर बाढ़-सूखा राहत तक पर राजनीति होती है
* भूखे-नंगों को जाति-संप्रदाय में बांटा जाता है।
* घोषणा व शिलान्यास के बूते विकास पुरुष कहलाने की होड़ मचती है।
* गरीबी उन्मूलन व कल्याणकारी योजनाएं लूटखसोट का माध्यम हैं।
* घोटाला पर घोटाला हो रहा है।
* अहिंसा दिवस पर मुर्गे हलाल होते हैं। ड्राई-डे तामिल कराने के लिए पुलिस को दारू के कई अड्डïों पर पहुंचना पड़ता है।
* भीड़ का कानून है।
* अचानक मर्द बनने की स्वतंत्रता है।
* जाति के आधार पर अपराध को माफी दी जाती है।
* राजनीति का अपराधीकरण है।
* जेल में बंद व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है मगर वोट नहीं दे सकता है।
* एसपी मारा जाता है। पुलिसकर्मियों की गवाही न देने से हत्यारे बरी हो जाते हैं।
* दरोगा, कपड़ा कारोबारी को अपराधी बनाकर मार डालता है।
* मां, डायन बताकर मारी जा रही है।
* मुफ्तखोरी, लंगड़ीमारी खून में है।
* बिहारी, दिल्ली के लिए सिण्ड्रोम हैं; मुंबई में राज ठाकरे का एजेंडा है; पूर्वोत्तर में उल्फा का साफ्ट टारगेट है।
* अब नई नौटंकी के रूप में शिक्षा का अधिकार सामने है।
* राहुल बाबा आजादी के 64 वें साल में व्यवस्था परिवर्तन को संकल्पित हैं।
* देश की अब तक राजनीतिक यात्रा कुछ लोगों के व्यक्तिगत स्वार्थ, उनकी पदलोलुपता और इससे जुड़ी सरकार बनाने-गिराने की कहानी भर से ज्यादा है?
भई, कितना गिनाएं! मैंने मान लिया है कि भारत महान्ï है। महान् भारत के महान् नागरिक की हैसियत से अब मैं भी मान चुका हूं कि हम आजाद हैं, मुकम्मल आजाद। बिल्कुल उन्मुक्त, बंधन-मुक्त। हमने अपने कर्तव्य की देखरेख का जिम्मा सरकार को दे दिया है। मैं देख रहा हूं-गांधी का देश मजे में चल रहा है। बाप रे बापऽऽ, कितना आगे बढ़ गया है! पत्नी कह रही है-सेंटीमेंट बचा है जी। देश यूं ही नहीं चल रहा है! मेरा बेटा बोल रहा है-ऐ राम …, छी-छी। दरअसल, वह बचपन में अपनी गलतियों पर राम-राम, छी-छी बहुत सुन चुका है। मैंने भी सुना है। आपने भी सुनी होंगी।
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