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वाह रे आदमी …

फंटूश
फंटूश
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एक विधायक के बाडीगार्ड ने गया के अस्पताल में झड़प के दौरान गोली चला दी। दो जूनियर डाक्टर घायल हुए। विरोध में राज्य भर के जूनियर डाक्टर पांच दिन तक हड़ताल पर रहे। अभी विधायक जी जेल में हैं। डाक्टर काम पर हैं और साठ से अधिक लोग परलोक में हैं। कोई बतायेगा-आखिर हड़ताल के दौरान हुई मौतों का जिम्मेदार कौन है? यह वाजिब सवाल है। मगर क्या, यह कभी उठता है? क्यों नहीं उभरता है? आदमी के इस स्वाभाविक सवाल का ईमानदार जवाब कोई आदमी दे सकता है? कूबत है?
दरअसल, सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आदमी, वाकई आदमी है? मेरी राय में इधर आदमी और उसका कैरेक्टर बहुत गड़बड़ाया है। आदमी के ढेर सारे प्रकार सामने आये हैं। उसका लाइन-लेंथ गड़बड़ा गया है। वह गलती किसी की होती है और सजा किसी और को देता है। खैर, इधर आदमी के बारे में कुछ नया ज्ञान हुआ है। आपसे शेयर करता हूं। जो आदमी होगा मुझे माफ कर देगा। प्लीज।
हां, तो बात डाक्टर नामधारी आदमी की हो रही थी। मुझे याद नहीं है कि कभी इस बुनियादी संकट को शमित करने के लिए आंदोलन हुआ है, जो डाक्टर एवं मरीजों के परिजनों की टकराहट को बिल्कुल स्वाभाविक बनाये हुए है। सरकार नामधारी आदमी भी कभी इस लाइन पर सुधार के बारे में कुछ सोचा-किया, ताकि यह गुंजाइश मर सके।
देखिये, बात आदमी की है। सिर्फ डाक्टर या सरकार की नहीं है। अब जरा इस आदमी को देखिये। इसे  परीक्षा में चोरी का मौका नहीं मिला है। यह अपना गुस्सा ट्रेन पर उतार रहा है। इन आदमियों के घर में पानी नहीं आता है। वे सीधे सड़क पर जाम लगा देते हैं, राहगीर रूपी आदमियों को पीटते हैं। ऐसे, मानो राहगीर ही वाटर सप्लाई के जिम्मेदार हैं। और देखिये, आदमियों की ये वाली टोली सड़क से गुजरते सभी बेकसूर आदमियों को हत्यारा मान सलूक कर रही है। जबकि टोली बखूबी जानती है कि हत्या किसने की है?
सड़क पर धक्का मारने वाला भाग गया है। मुहल्ले की पब्लिक का गुस्सा बाकी पब्लिक झेल रही है। यह आदमी एक सिनेमा हाल प्रबंधन का शिकार बना है। वहां तो गीदड़ बना हुआ था मगर सड़क पर आते ही अचानक मर्द बन गया है। जरा गाडिय़ों के शीशों को तोडऩे में उसकी फुर्ती तो देखिये। ये नेता टाइप आदमी है। अपनों जैसों के साथ सड़क पर महंगाई व भ्रष्टाचार का विरोध करने निकला है। चलते-फिरते लोगों को केंद्र सरकार मान चुका है। बिहार में यह कहावत कुछ ज्यादा प्रचलित है कि ‘लोभी के देश में ठग भूखा नहीं मरता है।Ó अक्सर फ्राड का मसला भीषण हादसों की गुंजाइश बना दी जाती है। कुछ आदमी भीड़ और उसका कानून का पक्षधर है।
मैं देख रहा हूं कि यहां का आदमी कुछ ज्यादा ही आजाद है, मुकम्मल आजाद। बिल्कुल उन्मुक्त, बंधन- मुक्त। वह बापू के जन्मदिन पर मुर्गा चाभता है। ड्राई-डे तामिल कराने के लिए पुलिस को दारू के कई अड्डïों पर पहुंचना पड़ता है। आदमी, अपनी जाति के अपराधी को छुड़ाने के लिए थाना पर हमला बोलता है। थोड़ी देर गंगा किनारे खड़े हो जाइये। एकसाथ आदमी का ढेर सारे कैरेक्टर जान जायेंगे। एक आदमी, कई-कई कैरेक्टर। आदमी, गंगा को बाकायदा पूज कर उसे प्रदूषित करता है।
मैं वैसे मुहल्ले में रहता हूं, जहां बड़े- बड़े आदमी रहते हैं। यहां एक नाला करीब छह वर्ष से बन रहा है। लंबाई बमुश्किल आधा किलोमीटर। साढ़े चार साल से पानी का पाईपलाईन बिछ रहा है। मुहल्ले में गार्जियन टाइप आदमी इक_े सुबह-शाम टहलते हैं। बैठकी में पूरी दुनिया बतिया लेते हैं। सिर्फ अपने मुहल्ले की विसंगतियों को छोड़कर।
आदमी, अपना घर बनाने पर तीस-चालीस लाख मुस्कुराते हुए फंूक डालता है पर पांच हाथ की लंबाई वाला पाइप बिछा घर के नाले को बड़े नाले से कनेक्ट नहीं करता है। एक आदमी टेम्पो चलाता है। बाकी आदमी इस दौरान भगवान का नाम लेते हैं। कोई भी टेम्पो वाले को नहीं टोकता है। आदमी के कई मुहल्लों का स्ट्रीट लाइट दिन में भी जलता रहता है। पर आदमी अपने घर में जीरो वाट बल्ब को भी फिजूल में जलते नहीं देख सकता है। बाप रे कितना गिनायें? तरह-तरह के आदमी हैं। सबकी तरह-तरह की स्वतंत्रता है।

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