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बचपन में खूब पढ़ा हूं-भारत, सोने की चिडिय़ा था। बहुत दूर-दूर से लोग यहां सोना लूटने आये। खूब लूटे। अब मुझे यह पता नहीं है कि इन लुटेरों के खानदानी खजाने में भारत का कितना सोना बचा है? कुछ बचा भी है या वे सब खा-पी गये?
इधर, सोना (चांदी भी) के बारे में कुछ नया ज्ञान हुआ है। आपसे शेयर करता हूं। एक ज्ञान नालको के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक एके श्रीवास्तव का है। उनके अनुसार घूस में सोना लेना चाहिये। इसका बड़ा फायदा है। मुद्रा (नोट) में अवमूल्यन का खतरा रहता है। सोना का दाम बढ़ता रहता है। जनाब, अपने पद के हिसाब से घूस में सोने की ईंट लेते थे। दूसरा ज्ञान-घूस में मिले सोना को दूसरे के लाकर में रखिये।
श्रीवास्तव साहब ने भारत के बारे में मेरी बचपन की धारणा बदली है। मेरी नई धारणा यही है कि भारत अब भी एक जमात के लिए सोने की चिडिय़ा है। सोना (चांदी भी) के मामले में भारत की अपनी हैसियत रही है। खुशी की बात है कि यह श्रीवास्तव जी जैसे लोगों के चलते बखूबी बरकरार है। आज सुबह अखबार में पढ़ रहा था-पुरी में जगन्नाथ मंदिर के सामने एक मठ में 18 टन चांदी मिली है। यह 95 करोड़ की है। शायद इसलिए बच गई, चूंकि यह मठ नालको के दायरे में नहीं था।
सोना के बारे में मेरी व्यक्तिगत धारणा शून्य सी है। सोना उछला, चांदी लुढ़की जैसी खबरें मुझे तनिक भी अपील नहीं करती हैं। पहले मेरी बीबी को करती थीं। अब बेचारी वह भी मेरी तरह बेहद शांत रहती है। खैर, कुछ पुराने अखबार पलट रहा था। श्रीवास्तव जी का बिहारी संस्करण तलाश रहा था। नहीं मिला। वाकई, उनका अपना रिकार्ड है। हां, कुछ सोना पसंद बिहारी अफसर जरूर मिले हैं। एक हैं-एसएस वर्मा। लघु सिंचाई सचिव थे। उनके लाकर में सवा नौ किलो सोना था। एक किलो की एक ईंट थी। 1.276 किलो चांदी थी। ओ …, वेरी पुअर! मेरी जुबान फुदक कर दिल को यह बात सुना गई।
जहां तक मैं समझता हूं चारा घोटाला फूटने के बाद रिश्वत की राशि में बड़ा अवमूल्यन हुआ। घूस का रेट गड़बड़ा गया। क्लर्क दस हजार में बिका, तो सीओ की कीमत दो-तीन हजार रह गई। हां, चारा घोटालेबाजों ने खूब सोना जमा किया। खबर तो यह भी है कि अब भी उनके पास 88 किलो सोना है। कोलकाता के सोना व्यापारी सुरेंद्र कुमार ने सीबीआई विशेष अदालत में गवाही दी थी कि चारा घोटालेबाजों ने उससे 100 किलो सोना खरीदा। सुरेंद्र, चारा घोटाले के मामले का गवाह रहा है। आयकर व सीबीआई छापामारी के दौरान घोटालेबाजों के पास से करीब 12 किलो सोना जब्त हुआ था। सुरेंद्र के बयानों पर भरोसा करें तो …! हां तो सोना, काली कमाई छुपाने का बड़ा माध्यम है। चाहे वाईके जायसवाल (ड्रग कंट्रोलर) हों, मनोज मानकर (परीक्षा नियंत्रक, आईटीआई) …, सभी के यहां छापामारी में सोना मिला है। दूसरी बात है ये जेवर की शक्ल में थे। डीएन चौधरी (राजभाषा निदेशक) ने सोना की तरफ बहुत ध्यान नहीं दिया। इसीलिए उनके बेटे के लाकर से एक करोड़ 54 लाख रुपये नकद मिला। नंदकिशोर वर्मा (सीओ, भगवानपुर बेगूसराय) भले सोना न रखें हों मगर वृद्धावस्था पेंशन व इंदिरा आवास के घूस के रुपये से लाखों का शेयर खरीदने की फंड मैनेजरी जरूर समझाते हैं। मेरी राय में आजाद भारत में सोना लूटने की बाकायदा छूट रही है। बिहार इसे साबित करता है। 1967 से 2005 तक के कालखंड में ऐसे कंट्रास्ट थोक भाव में हैं, जिसने इस प्रदेश में भ्रष्टाचार की पिरामिड आधारित स्थापित परिभाषा को विस्तार देते हुए इसे बाकायदा पारिवारिक-सामाजिक स्वीकृति दिला दी और जिसका भयावह स्वरूप ईमानदारी की सहूलियत से गढ़ी गई इस परिभाषा में दृष्टिगोचर है कि ईमानदार वही है, जिसे बेईमानी का मौका नहीं मिला।
मगर अब बहुत कुछ बदलता दिख रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ राजग दो का एलान-ए-जंग अंतिम पायदान पर खड़े आदमी के लिए बड़ी आस है। यह उन लोगों की बेहतरी की कवायद है, जो इंदिरा आवास से लेकर वृद्धावस्था पेंशन तक के लिए घूस चुकाता रहा है; मनरेगा की मजदूरी पाने के लिए रुपये देता रहा है …, बाप रे बापऽऽ कितना गिनायें, भ्रष्टïाचार तो यहां खून में समाया रहा है। अब सबकी चर्बी उतर रही है। बिहार, किसी को श्रीवास्तव बनने की अनुमति नहीं देगा।
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