Menu
blogid : 53 postid : 115

मैं बिहार हूं

फंटूश
फंटूश
  • 248 Posts
  • 399 Comments

बिहार गौरव पर्व के जलसा के बाद भी मोबाइल के इन-बाक्स में मैसेज टपक रहे हैं। एक मैसेज है-बि फार ब्रिलिएंट, आई-इनोसेंट, एच-हाई थिंकर, ए-एचीवर एंड आर फार रोमांटिक। जय बिहार, जय बिहारी।
आज सुबह और दो-तीन मैसेज आये। ये कुछ इस प्रकार हैं-विरासत हमारी अमूल्य धरोहर है। बिहार शताब्दी वर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं; प्राउड टू बी ए बिहारी; सौ वर्ष आगमन के अवसर पर बिहार को पुन: अतीत की तरह बनाने का संकल्प लिया जाये।
मैं अभिभूत हूं। नये तरह का रोमांच है। पहले ऐसा नहीं था। अब इस बात की गारंटी लगती है कि शताब्दी वर्ष में प्रवेश का गौरव समारोह वाकई सालों भर चलेगा। बिहार, बिहारीपन और इसके गौरव का अहसास लोगों के खून में समा रहा है।
इस क्रम की बातचीत में तो कई भाई लोग अहम् ब्रह्मास्मि (मैं ब्रह्म ही हूं) जैसे अंदाज में चरम पर पहुंच जाते हैं। मैं इसे निपट गर्वोक्ति नहीं मानता हूं। खुद बिहार की जुबानी उसकी सुनिये …
मैं बिहार हूं। मैं अपनी हैसियत के चलते भारी द्वंद्व में हूं। मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि आखिर कहां से शुरू करूं? मैंने समुंदर पार कई देश गढ़े हैं। मेरा इतिहास, देश और कुछ हद तक दुनिया का इतिहास रहा है।
मैं कुछ टिप्स दे रहा हूं। देखिये और मुझे जानिये …
* मखदूम शुरफुद्दीन अहमद याहिया मनेरी ने 12-13 वीं शताब्दी में सुदूर शिक्षा (डिस्टेंस एजुकेशन) की शुरूआत की। जनाब, मनेर (पटना) के थे।
* शेरशाह के पुत्र इस्लाम शाह के राजपाट में शेख अलाई को मौत का फतवा सुनाया गया था। इसकी तसदीक की जिम्मेदारी बिहार के शेख बड्ढ तय्यब दानिशमंद बिहारी सौंपी गई थी। यानी, उनके कहने पर ही इसे अमल में लाने की बात थी।
* औरंगजेब की किताब ‘फतावा आलमगीरीÓ को तैयार करने वाली खंडपीठ में सबसे ज्यादा आलिम बिहार के थे। कहते हैं इस किताब पर ताजमहल से भी ज्यादा खर्च हुआ था।
* अजीमुश्शान, पटना का जीर्णोद्धार करने वाला, जिसके नाम पर पटना का नाम अजीमाबाद पड़ा, को पढ़ाने की बात आयी तो मुल्ला मीतन को बुलाया गया।
* सुल्लमुल उलूम-जुरिसपुडेंस आफ लॉजिक है। इसकी रचना मुल्ला मुहिब्बुल्लाह बिहारी ने की। 20-25 पृष्ठ की इस किताब को आधार बना दुनिया भर में सैंकड़ों पृष्ठों की टीकाएं लिखी गईं। इसे दुनिया भर में पढ़ाया गया। यह कोर्सेज आफ स्टडीज में है।
मैं बिहार, माता सीता की प्राकट्य स्थली हूं। चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, चाणक्य, आर्यभट्ट, आचार्य पाणिनी, तीर्थंकर महावीर, गौतम, कपिलमुनी, कनाद, बाल्मीकि, महर्षि अष्टïावक्र, विश्वामित्र, विष्णु शर्मा, मंडन मिश्र, महामहोपाध्याय वाचस्यति मिश्र, च्यवन ऋषि, महाकवि बाणभट्ट, राजा कर्ण, जरासंघ, गुरु गोविंद सिंह, शेरशाह सूरी, बाबू कुंवर सिंह, राहुल सांस्कृत्यायन, स्वामी सहजानंद, देशरत्न डा.राजेंद्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण, फणीश्वरनाथ रेणु, बाबा नागार्जुन, रामधारी सिंह दिनकर …, अरे, मेरी ही धरती पर बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ है। मंदार पर्वत, पतंजलि योग, पंचतंत्र, जातक कथाएं, नालंदा, विक्रमशिला विश्वविद्यालय, उदंतपुरी विश्वविद्यालय …, मैं सब में हूं। मैं, चाहे गदर हो, चंपारण सत्याग्रह हो, बयालीस या फिर चौहत्तर का आंदोलन-हर बड़े बदलाव का वाहक हूं। मेरी ही जमीन पर गांधी को महात्मा की उपाधि मिली। मेरे बारे में कुछ और जानना हो, तो मेगास्थनीज, फाहियान, ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत को भी पढिय़े।
मैं, कितना गिनाऊं? मेरी माटी से एशिया महादेश का औद्योगिक पुनर्जागरण प्रारंभ हुआ। मुंगेर की आईटीसी कंपनी 1907 में स्थापित हुई। डालमियानगर, एशिया में चौथा बड़ा औद्योगिक नगर था। यहां सीमेंट कारखाना का शिलान्यास मार्च 1938 में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने किया। पेपर मिल का उद्घाटन डा.राजेन्द्र प्रसाद ने 4 अप्रैल 1939 को किया। 1933 में चीनी मिल शुरू हुई।
खैर, आजादी के बाद मुझे आंतरिक उपनिवेश बना दिया गया। मेरी कंगाली की कीमत पर दूसरे राज्य अमीर होते गये। मैं हमेशा से बस दूसरों को तुष्टï करने को अभिशप्त रहा हूं।
मगर मैं बिल्कुल मायूस नहीं हूं। क्यों रहूं? मेरे पास क्या नहीं है? अठारह करोड़ हाथ हैं। मैंने मुक्ति के सपने देखने शुरू कर दिये हैं। मेरे सपनों को पंख लगे हैं।
बहरहाल, बिहारी उपराष्ट्रीयता के मुतल्लिक नाज, फख्र और गर्व के अरमानों, अपेक्षाओं के साथ एक बार फिर जय बिहार, जय बिहारी!

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh