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मैं देख रहा हूं-बहुत कुछ बहुत ठीक नहीं हो रहा है। अभी नंदू भैया (नंदकिशोर यादव, पथ निर्माण मंत्री) दिल्ली गये थे। टाइम लेकर गये थे। उनको केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री सीपी जोशी से मिलना था। सड़क पर ढेर सारी बात करनी थी। जोशी साहब ने बोल दिया-टाइम नहीं है। बाद में आइये। उस दिन मोदी जी (सुशील कुमार मोदी) को सुन रहा था। जनाब, बिफरे हुए थे। दिल्ली में बैठ देश चलाने वालों ने बिहार का कोल ब्लाक रद कर दिया है। मोदी जी बता रहे थे-पांच साल पहले जो कोल ब्लाक मिला था, वह थर्मल पावर के लिए था ही नहीं। यहां माइनिंग के लिए आस्ट्रेलियाई तकनीक चाहिये था। तो क्या बिहार को आस्ट्रेलिया से तकनीक लाने की जिम्मेदारी दी गई थी? यह संभव था? मैं देख रहा हूं-बात बस दिल्ली-पटना की नहीं है। व्यवस्था की है। मानसिकता की है। व्यवस्था के ढेर सारे रंग हैं। तरह-तरह की मानसिकता है। यह एक ईमानदार आइएएस अफसर की मानसिकता है। झक्की। देखिये-जानिये। सर जी को एक निगम की जिम्मेदारी मिली। उन्होंने साढ़े तीन वर्ष सौ-पचास रुपये की गड़बडिय़ां पकडऩे में गुजार दीं। टायर से लेकर फूल वालों तक से बारगेनिंग की-ये चार रुपये क्यों हैं, वह तो साढ़े तीन रुपये में ही दे रहा है? वे निगम की बेहतरी में एक भी ईट जोड़े बिना निकल लिये। इनसे कुछ कदम आगे बढ़े हुए क्या किये होंगे, अंदाज कीजिये। इन जनाब ने तो बुलेटप्रूफ जैकेट का इतना भारी मानक तय कर दिया, जो अमेरिका में ही उपलब्ध था। आज तक जैकेट की खरीद नहीं हो पायी है। देखिये, क्या होता है? खैर, मैं देख रहा हूं-पटना हाईकोर्ट ने कुलाधिपति कार्यालय (राजभवन) को कठघरे में खड़ा किया है। कोर्ट ने यह कहते हुए मगध एवं वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के कुलपतियों की नियुक्ति रद कर दी है कि इसके लिए राज्य सरकार से मशविरा नहीं किया गया है। राजभवन में महीने भर से 14 विधेयक मंजूरी के लिए पड़े हुए हैं। इनको विधानमंडल ने पारित किया है। मैं, जातीयता का नया फंडा देख रहा हूं। नेता लोग अपना जमाना रखने वाली शख्सियतों को जातीय नायक का मुलम्मा दे उनको खूब याद कर रहे हैं। चाहे बाबा चौहरमल, कर्पूरी ठाकुर, बाबू जगजीवन राम हों या फिर बाबू कुंवर सिंह हों-किसी की भी जयंती या पुण्यतिथि का मौका नहीं छोड़ा जा रहा है। बात, सामाजिक समरसता की हो रही है मगर काम समाज को तोडऩे जैसा है। अपने-अपने वोटरों को जातीय आधार पर तुष्ट करने की कोशिश में पार्टियां, उनके पदधारक महान शख्सियतों की जाति बता रहीं हैं। कौन दलित है और कौन राजपूत है- आयोजक मंडल बखूबी गवाही देता है। बाबू कुंवर सिंह की जयंती में बाबू साहब (राजपूत) लोग ही ज्यादा सक्रिय होते हैं। मैं आम आदमी की बिसात भी देख रहा हूं। आम आदमी बीमा योजना बंद हो रही है। मोदी जी कह रहे हैं-इसका परफारमेंस बड़ा खराब है।Ó क्यों है? कौन जिम्मेदार है? क्या इसके लिए कोई, किसी तरह की सजा पायेगा? राजकीय लोक उपक्रमों के कर्मचारी पिछले 625 दिन से धरना पर हैं। यह आंदोलन का नया रिकार्ड है। उनको कोई नहीं पूछ रहा है। क्या ये आदमी नहीं हैं? लोक लेखा समिति पर इतनी राजनीतिक छीछालेदर हुई है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक को कहना पड़ा है-ऐसी नौबत की कल्पना भी नहीं थी। सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों में सभी विषयों के लिए स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति का मामला फिर फंस गया है। सरकार, नियुक्ति को नयी नियमावली तैयार बना रही है। कब होगी नियुक्ति? मानव संसाधन विभाग विभाग के सीएमडी व काल सेंटर को ग्रहण लग गया है। कौन जवाबदेह होगा? पटना हाईकोर्ट शपथपत्र को विश्वसनीय नहीं मान रहा है। अतिक्रमण हटा कि नहीं, इसकी वह वीडियोग्राफी चाहता है। आखिर कोर्ट से झूठ बोलने की हिम्मत कौन करता है? उसे कहां से इसकी ताकत मिलती है? कोर्ट ने आइएएस एसएस वर्मा की सम्पत्ति की जब्ती पर रोक लगा दी है। भई, कितना गिनायें; बड़ी लंबी दास्तान है। एक-एक मसला, कई-कई दास्तान। और अंत में … अदालत की रफ्तार यह अदालत और उसमें दर्ज मुकदमों की रफ्तार है। मैंने देखा है। आप भी देखिये। पटना हाईकोर्ट ने इसी हफ्ते भागलपुर आंखफोड़वा कांड के दो आरोपियों को बरी किया। यह बहुचर्चित कांड तीस वर्ष पहले हुआ था। भागलपुर की जेल में कैदियों की आंख फोड़ दी गई थी। निचली अदालत ने छह पुलिसकर्मियों को सजा दी। इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी। हाईकोर्ट ने एक पुलिस अफसर की सजा बहाल रखी और दो को मुक्त कर दिया। लेकिन इसमें इतना समय …? आरोपियों द्वारा काटी गई सजा, इसके दिन लौटेंगे? कोई जिम्मेदार माना जायेगा या यह सब यूं ही चलता रहेगा?
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