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दांपत्य का लोचा

फंटूश
फंटूश
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मैं पति होने का धर्म निभाने के नाते बहुत नर्वस हूं। प्लीज, कोई मेरी मदद करे। करेगा? ध्यान रहे, यह हर पति का कर्तव्य बनता है। दरअसल, मुझे इस गिनती पर भरोसा नहीं है कि पति-पत्नी एक साल में 2455 बार लड़ते हैं। यानी, एक दिन में सात बार। ब्रिटेन की इंश्योरेंस कंपनी ने तीन हजार दंपतियों पर सर्वे के बाद यह हिसाब समझाया है। सर्वे में कई तरह की लड़ाई और उसके कारणों की चर्चा है। मसलन, एक- दूसरे की बात ठीक ढंग से न सुनने के चलते 112 बार कहासुनी होती है। झगड़े की बड़ी वजह फालतू खर्च है। इसमें पत्नियां आगे हैं। इससे होने वाली तंगी के चलते 108 बार लड़ाई होती है। फिर, पति-पत्नी एक-दूसरे के आलस्य से तंग आकर एक साल में 105 मर्तबा एक-दूसरे को भला-बुरा कहते हैं। मैं इसे नहीं मानता हूं। बेशक, मैं गणित में कमजोर हूं। मगर मेरी गिनती बिल्कुल दुरुस्त है और यह इस अंग्रेजीदां शोध को चुनौती देने का भरपूर माद्दा रखती है। मेरी राय में लड़ाई का मोड चौबीसों घंटे रहता है। अपने यहां यही सीन है। इंग्लैंड की तरह नहीं कि लड़कर गिनती गिन ली या गिनकर लड़ाई की। यहां लड़ाई का मोर्चा हरदम खुला है। लडऩे के ढेर सारे आप्शन हैं, कारण हैं। अगल- बगल सोये हैं। मजे में अपने-अपने सपने देख रहे हैं और सपनों में भी लड़-भिड़ रहे हैं। इस सिचुएशन का बिहारी संदर्भ और विस्तारित है। अनुभवी लोग और ज्यादा ज्ञानवद्र्धन कर सकते हैं। जहां तक मैं जानता हूं भारतीय गृहस्थ जीवन के सिद्धांतकारों ने दांपत्य जीवन को विशेषकर तीन भाग में विभाजित किया है। इसके केंद्र में पत्नी जी हैं। मैडम जी शादी के दो- ढाई साल तक चंद्रमुखी, इसके बाद बाद सूर्यमुखी और फिर ज्वालामुखी का स्टेज आ जाता है। यह जीवन भर चलता है। कमोबेश इसी समयसीमा के हिसाब से पतियों ने अपनी खातिर भी विशेषण तय किये हैं-प्राणनाथ, नाथ, फिर अनाथ। ऐसी ढेर सारी बातें हैं। अब थोड़ा डिफरेंट एंगल। ये भी अंग्रेजों की शोध को खारिज करने की हैसियत में हैं। हैप्पी सिंह को सुनिये। जनाब, अपनी पत्नी को प्यार और प्रेम का फर्क समझा रहे हैं-प्यार मैं अपनी बहन के साथ करता हूं और प्रेम तुम्हारी बहन के साथ। मुझे इस बात पर आश्चर्य है कि आखिर हैप्पी सिंह को ऐसे बोलने की हिम्मत कहां से आयी? वे अभी तक जिंदा कैसे हैं? इंग्लैंड के सर्वेयर कभी मटुक भाई से मिले हैं? मिलना चाहिये था। मेरी गारंटी है उनका दिमाग खुल जाता। खैर, मैं यह भी देख रहा हूं कि अपने यहां दांपत्य के मोर्चे पर महारथियों की कमी नहीं है। लालू प्रसाद जी को ही देखिये। वे ब्रिटेन के इस शोध को नया एंगल देने की ताकत रखते हैं। उनकी स्पष्ट धारणा है-हर पति अपनी पत्नी का पीए होता है। कोई लोचा नहीं। सबकुछ मस्त-मस्त। हम पतियों की यह समझ भी पाश्चात्य शोध को सिरे से खारिज करती है कि सासु तीरथ, ससुरा तीरथ, तीरथ साला-साली है, दुनिया के सब तीरथ छूटे चारो धाम घर वाली है। यह भारतीय पतियों की दूसरी प्रजाति है, जो आज्ञाकारिता की पराकाष्ठा हैं। किंतु इन पतियों की पत्नी जी …! अब मैंने भी मान लिया है कि एसएमएस से बड़ी ताकत मिलती है। यह बड़े काम की चीज है। कभी- कभी तो मुझे लगता है कि अगर यह सब न होता, तो बेचारा पति जमात क्या करता? वैलेंटाइन डे पर ढेर सारे प्रपोजल आते हैं। मैं इलेक्ट्रानिक चैनल का भी शुक्रगुजार हूं। प्यार के तरीके बताने में इनका कोई जोड़ नहीं है। पश्चिम के शोध पर बेजोड़ मार्केटिंग हो सकती है। दांपत्य की महादशा पर बात हो सकती है। बाबा लोग बता सकते हैं कि शांति के लिए पति सोमवार को ब्लू रंग की शर्ट पहनें और पत्नी जी लाल रंग की साड़ी। इस तकरार से गुलाब और उसकी किस्म व रंगों को जोड़ा सकता है। अलग-अलग गुलाब देने के अलग-अलग दिन तो बहुत पहले से घोषित हैं। इसमें नया यह हो सकता है कि इसे पति-पत्नी संबंधों से जोड़ दिया जाये। चैनल घर में शांति का तरीका बता सकते हैं-कैसे किया जाता है प्यार का इकरार! सुबह-सुबह कैसे करें मैडम जी से बात, जानिये डा.रिया से। आनलाइन व्यवस्था हो सकती है। जीवन को बेहतर बनाने के लिए मंत्र डेडीकेट किये जा सकते हैं। मंत्र सुनाने के लिए टोल फ्री नम्बर का इस्तेमाल हो सकता है। मुझे बिहार में यह सब कुछ बहुत असरदार नहीं लगता है। मेरी राय में नारी सशक्तीकरण के बाद से यहां पतियों के लिए स्थिति और विकट हुई है। पतियों के कई प्रकार सामने आये हैं-एमपी (मुखिया पति), एसपी (सरपंच पति), पीपी (पंच पति) …, और अब तो होमगार्ड के आधे पद (ग्रामीण) महिलाओं के जिम्मे आने हैं। बाप रे बाप! उस बेचारे पति की कल्पना कीजिये, जिसकी पत्नी कांधे पर बंदूक टांगकर घूमेगी? और अंत में … यह एसएमएस आज ही टपका है। देखिये और शोधिये-इंडिया नाऊ रूल्ड बाई अम्मा इन साउथ, दीदी इन द ईस्ट, बहन जी इन द नार्थ, आंटी इन कैपिटल, मैडम इन सेंटर एंड वाइफ एैट होम। ऐसे में किसकी हिम्मत है कि …! मगर मैं एक बात जरूर कहूंगा-यह तकरार, प्यार का ही पार्ट है; उसकी ताकत है। बड़ा मजेदार व रसीला है यह तकरार। इसके बिना जीवन नीरस है।

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