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योग …, पल्स रेट बनाम टीआरपी

फंटूश
फंटूश
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योग के बारे में मेरी राय बदली है। ढेर सारा ज्ञान हुआ है। ये लेटेस्ट हैं। नये-नये आसन देखा हूं। यह सब बड़ा दिलचस्प है। आपसे शेयर करता हूं। देखिये, जानिये …
यह टीआरपी आसन है। अनुलोम-विलोम टाइप। इसे साकार रूप में देखिये। रामदेव बाबा का पल्स रेट डाउन हुआ मगर उनके अलावा बहुत सारे लोगों की टीआरपी बहुत ऊपर भाग गयी है। इलेक्ट्रानिक चैनल दिन में तीन-चार बार बाबा का ब्लडप्रेशर, पल्स रेट, वजन, सुगर नाप रहे थे। चारों तरफ बस बाबा, बाबा, बाबा …! यह मुद्रा प्रचार आसन की है। अपना योग दुनिया भर कभी इतना नहीं फैला था। हाईप आसन। पतंजलि कितनों को याद हैं?
मुझे थोड़ी पुरानी बात याद आ रही है। गांधी मैदान में रामदेव बाबा का योग शिविर लगा था। भारी जुटान। ढेर सारी योगार्थी। दूसरे-तीसरे दिन से शिविर (पंडाल) के बाहर वे लोग अपनी मशीनों के साथ आ जमे, जो वजन बताने के लिए एक रुपया लेते हैं। भाई लोग फूं-फां करके शिविर से निकलते थे और तौलने वाली मशीन पर खड़े हो जाते थे। कितना घटा, कितना बढ़ा …, नाप-तौल के बीच शिविर समाप्त हो गया। तब इनकम टैक्स मोड़ की फल की दुकानों में कद्दू खूब लटका करते थे। कद्दू के जूस का प्रचलन घर-घर में था। अब ऐसा कुछ नहीं है। मैं भी बड़ी राहत महसूस करता हूं।
माफ करेंगे, थोड़ा भटक गया था। बात योग और इसके लेटेस्ट आसन की हो रही है। आज जूस पीते वक्त जिन लोगों ने भी बाबा को देखा होगा, मेरी गारंटी है कि उनको एकसाथ ढेर सारा ज्ञान हुआ होगा। भई, मुझे तो हुआ है।
हां, तो जनाब यह बहस आसन है। कुछ लोग बहस के लिए आसन जमाकर बैठे हुए हैं। अपने देश में ऐसे ढेर सारे लोग हैं। हर मौके पर वे अपने आसन के साथ अचानक स्टार्ट हो जाते हैं। उनकी पार्टी है, कवरेज पाते हैं, वे ट्यूटर पर हैं, उनका ब्लाग है। बाबा का अनशन टूटने के बाद बहस आसन इस लाईन पर मुड़ी है कि अब योग और उसकी ताकत पर कौन भरोसा करेगा? योग और बाबाओं से जुड़ी किंवदंती की बड़ी लम्बी भारतीय परंपरा है। इस पृष्ठभूमि में सवाल उछला हुआ है-योगाचार्य, बस नौ दिन में पस्त होगा? ऐसे योग से क्या फायदा है? बहस आसन की एक और लाइन- रामदेव बाबा योगी हैं? दो तरह के जवाब हैं। एक जमात हां बोलती है, दूसरी बाबा को कारोबारी बता रही है।
योग के साथ हठयोग और इसके लेटेस्ट एडिशन भी खूब खुले में हैं। मुझे पहली बार पता चला है कि इस देश में हठयोगियों की कितनी बड़ी तादाद है? कुछ हठयोगी देश चलाने वाली सरकार में बैठते हैं। कुछ कांग्रेस पार्टी में हैं। लालू प्रसाद का अपना हठयोग है, तो श्रीश्री रविशंकर का अपना। एक से बढ़कर एक हठी हैं। कुछ हठी का हठयोग स्विस बैंक तक विस्तारित है। अपने सचिवालय वाले हठी जी रोजाना हजार-पांच सौ पर ही मान जाते हैं।
अब जरा इस मुद्रा (आसन) को देखिये! एक चैनल ने मान लिया कि बाबा कोमा में जा रहे हैं। उसने अपने स्टूडियो में एक डाक्टर बिठा लिया। प्रोग्राम का नाम था- बाबा दो सौ जिंदा रहेंगे! मेरी राय में इसे फोन-इन आसन मानना श्रेयस्कर है।
अपने लालू प्रसाद जी ने नया आसन दिखाया, सुनाया-बाबा की स्थिति इसलिए बिगड़ी है, चूंकि उनके कारोबार की जांच हो रही है। ऐसे मौकों पर बीमारी का लालू जी के पास खासा अनुभव है। एक आसन भाजपाई दिखा गये। ये देश है वीर जवानों का …, की धुन पर झूमे-नाचे क्या, भ्रष्टाचार का मसला नाच- गाने तक फैल गया।
मैं, शरद यादव को सुन रहा था-ऐसे संदर्भ में व्यक्ति आगे आ जाता है, मुद्दा पीछे रह जाता है। उन्होंने वाजिब फरमाया है।
अन्ना (अन्ना हजारे) और बाबा की ताकत में कंपीटिशन हो रहा है। कुछ लोग कह रहे हैं-अन्ना, बाबा से ज्यादा मजबूत हैं। अन्ना ने भी तो अनशन किया था। एक चैनल पर एक डाक्टर इसमें भी खोंच लगा गया-इसमें योग का बड़ा योगदान है। योग के चलते बाबा की बाडी चार्ज है। अधिक खुराक मांग रही थी। अन्ना, योगाचार्य नहीं हैं।
चलिये, असली बात पर आते हैं। एक बात तो साबित हो गयी है कि सामान्य जन की तमाम समस्याओं के केंद्र में उसका पेट है। पेट भरा रहेगा, सब कुछ ठीक रहेगा। योग की बारी पेट के बाद आती है। योग ही सब कुछ नहीं है। मुझे लगता है कि बाबा भी अपनी राय बदलेंगे। वे सभी समस्याओं का समाधान योग में देखते हैं। ऐसी बात नहीं है। नये अनुभव से कुछ नये आसन डेवलप करेंगे। इसमें सबसे जरूरी है-एंटी करप्शन आसन। यह मूलत: दो तरह का होना चाहिये। एक, जिसके नियमित अभ्यास से घूस लेने का मन न करे और दूसरा घूस देने के मन को मार दे। यह संभव है? बाबा, बाबा हैं। सर्वज्ञ हैं, सर्वव्यापी हैं। कुछ भी कर सकते हैं। करते रहे हैं। बाबा के आसन से टाइम बचेगा। सरकार दूसरे बड़े काम करेगी।

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