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… फिर आदमी का क्या करें?

फंटूश
फंटूश
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आदमी, आदमी है। मशीन, मशीन है। आदमी, मशीन बनाता है। आदमी, आदमी नहीं बना पाता है। आदमी, आदमी नहीं बन पाता है। यही आदमी का दुर्भाग्य है। आजकल आदमी, आदमी से ज्यादा मशीन पर भरोसा कर रहा है। आदमी, आदमी को मशीन से सुधारने की कोशिश कर रहा है। आदमी से नहीं सुधरने वाला आदमी, मशीन से सुधर जायेगा? यह आदमी के लिए बड़ा सवाल है। मेरी राय में इस पर लाजवाब शोध हो सकता है। लज्जतदार नतीजे की गारंटी है। एक खबर पढ़ रहा था-जो आदमी इंदिरा आवास देने के लिए घूस लेगा, उसका नाम यू-ट्यूब पर आ जायेगा। यह मशीन (वीडियो) से घूसखोर आदमी को पकडऩे की योजना है। आदमी घूसखोर होता है। मशीन घूस नहीं लेता है। मशीन, ईमानदार होता है। इसलिए उसको बेईमान आदमी को पकडऩे का जिम्मा मिला है। इसके साइड इफेक्ट पर पूरी चर्चा फिर कभी। फिलहाल एक लाइन में यह कि बहुत जल्द यू-ट्यूब वाले बाप-बाप करेंगे। आदमी की आंख फेल कर गयी है। वह जमीन पर इंदिरा आवास को नहीं देख पा रही है। सो, इंदिरा आवास को देखने का जिम्मा मशीन (सेटेलाइट) को सौंपा जा रहा है। आदमी, ट्रक चलाता है। आदमी, ट्रक लेकर जहां-तहां निकल जाता है। कहीं भी, कुछ भी उतार-चढ़ा लेता है। आदमी, कहीं भी ट्रक से अनाज न उतार दे, इसके बदले रुपये न ले ले; अपना लोकेशन बताने में गलती न करे, इसलिए ट्रक में जीपीएस (ग्लोबल पोजीशिनिंग सिस्टम) लगना है। यह भी आदमी का आदमी पर नहीं, मशीन पर भरोसा है। आदमी, आदमी का अनाज पचा जाता है। आदमी इसे रोक नहीं पाता है। आदमी का अनाज आता है; आदमी, आदमी से कह देता है कि अनाज नहीं आया है। अब मशीन, आदमी को ऐसा नहीं करने देगी। मशीन (एसएमएस), आदमी को बतायेगी कि उसका अनाज आ गया है। आदमी, आदमी से भरपूर झूठ बोलता है। आदमी रहता कहीं और है, पता (लोकेशन) कहीं और का बताता है। आदमी, आदमी को बरगला देता है। आदमी ने आदमी के इस कारनामे से बचने के लिए मशीन (मोबाइल ट्रैकिंग) का सहारा लिया है। सीडीपीओ (आदमी) के लिए ऐसी व्यवस्था है। मैं नहीं जानता कि इस आइडिया का लेटेस्ट सिचुएशन क्या है? आइडिया था-सेटेलाइट की मदद से दियारा क्षेत्र में अपराधी पकड़े जायेंगे। सिचुएशन चाहे जो हो, आदमी के इस आइडिया से यह ज्ञान तो होता ही है कि आदमी की आंखें, आदमी का चेहरा नहीं देख पाती हैं। मैं तो यह मानता हूं कि आदमी को कुछ नहीं दिखता है। एक खबर थी- राजभवन में एमएलसी बनाने के लिए एक आदमी का आवेदन पहुंचा और वहां बैठे आदमी ने इसे आगे की कार्रवाई के लिए अनुशंसित भी कर दिया। बड़ी लम्बी दास्तान है। कितना सुनाऊं? वैसे भी आदमी, आदमी की शायद ही सुनता है। कुछ दिन पहले पटना नगर निगम ने अपना बकाया वसूलने के लिए किन्नरों की मदद ली थी। बड़ा दिलचस्प सीन था। असरदार भी। तब सवाल उभरा था कि नगर निगम में तैनात ‘मर्दों का क्या करें? वाजिब सवाल था। मशीन और आदमी के संदर्भ में भी यह पूछा जा सकता है कि इस आदमी का क्या करें?

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