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अन्नागिरी : ब्रह्मचर्य बनाम अनशन, लालू व एलियन

फंटूश
फंटूश
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लालू, लालू हैं। उन्मुक्त, बिंदास। कभी भी, कुछ भी बोल-कर सकते हैं। रामदेव बाबा से उलझे। अभी अन्ना, अन्नागिरी को नया एंगिल दिया है। यह ब्रह्मचर्य और अनशन के संबंध पर शोध की बड़ी गुंजाइश है। मेरी गारंटी है-शोध, बेजोड़ होगा; लज्जतदार रिजल्ट आयेगा। जनाब, लोकसभा में बोल रहे थे। खूब बोले। खूब तालियां पाये। लोगों को हल्का करने में उन्हें महारथ है। खुद कहते हैं-मैं टेंशन नहीं लेता हूं। माथा फट जायेगा। खैर, गंभीर विषय -गंभीर माहौल में लालू, साथी सांसदों को हंसा गये। उनकी बातें अन्ना हजारे के अनशन पर संदेह सी जता रहीं थीं। कम से कम अन्ना ने इसे इसी रूप में लिया है। हां, तो लालू बोल रहे थे-… मैं अन्ना जी को प्रणाम करता हूं। वे आदरणीय हैं। उनसे हमलोगों को सीखना चाहिये। आखिर इतना बुजुर्ग आदमी इतना दिन तक अनशन पर कैसे रह सकता है? हमको जानना चाहिये कि आखिर उनमें इतनी शक्ति आती कहां से है? वे क्या पान करते हैं कि …? हमको इस बारे में जानना चाहिये, हमलोगों को बड़ा फायदा होगा। हमलोग तो एकाध दिन में ही …! अब अन्ना की सुनिये। वे लालू जी की बातों का जवाब दे रहे हैं-यह मेरे ब्रह्मचर्य की ताकत है। ब्रह्मचर्य की शक्ति वे क्या जाने, जिन्होंने …! बारह दिन की अन्नागिरी और इससे राष्ट्रव्यापी उबाल के बीच यह नया कोण है, जिस पर बहस शुरू हो चुकी है। ब्रह्मचर्य और अनशन के संबंध को जनता के स्तर पर जोड़ा जाने लगा है। मेरी राय में लालू जी और अन्ना, दोनों सही हैं। अभी की सुविधा वाली राजनीति में लालू प्रसाद का एक बुजुर्ग का बारह दिन के अनशन के प्रति आग्रह व उत्सुकता वाजिब है। सुविधा की राजनीति चरम पर है। और ऐसे में कोई अन्ना ही सत्याग्रह, इसके मर्म और इसके तरीके को बता, समझा सकता है। ईमानदार परिणाम, जो सामने है, को दिखा सकता है। चौहत्तर की ठगी के बाद में घर में घुसी पब्लिक को सड़क पर उतारना हंसी- खेल नहीं है। अन्ना भी अपनी जगह बिल्कुल ठीक हैं। जहां तक मैं समझता हूं ब्रह्मचर्य भी तो अपने- आप में जीवन के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ एक तरह का अनशन ही है। यानी, अनशन अन्ना के खून में है। उनकी आदत है। हमने अभी चेतावनी के पखवारा को पार किया है। सब एक-दूसरे को बस चेता रहे हैं। सब बस अपने अधिकार को लेकर दूसरे को चेता रहे हैं। किसी को अपना कर्तव्य याद नहीं है। नेता चेता रहे हैं। जनता चेता रही है। सांसद, संसद की सर्वोच्चता के हवाले बहुत कुछ चेता गये। सबको सुन रहा हूं। कपिल सिब्बल को सुना। अम्बिका सोनी को सुना। सब चेता रहे हैं। रामविलास पासवान आरक्षण के लिए चेता रहे हैं। एनजीओ को चेताया गया। भ्रष्टाचारियों को चेताया गया। एसी कमरों में बैठकर गरीबी हटाने के तरीकों को चेताया गया। आदमी, आदमी को चेता रहा है। आदमी ने आदमी को ठीक करने के लिए आदमी को लगाया, चेताया। आदमी का आदमी के लिए आदमी का प्रयोग सफल नहीं है। आदमी को सुधारने के लिए मशीन का इस्तेमाल हुआ है। यह प्रयोग भी नाकामयाबी के रास्ते पर है। तो क्या आदमी नहीं सुधर सकता है? यह ग्लोबल संकट है। अमेरिका में भी है। अमेरिका ने बताया है कि अब आदमी को ठीक करने के लिए एलियन आ रहे हैं। मेरी राय में यह मुनासिब हो सकता है। आदमी को सुधारने के लिए इस धरती की तमाम कोशिशें बेकार साबित हुईं हैं। इस धरती के आदमी से इस धरती का आदमी नहीं सुधर सकता है। फिर, अन्ना क्या करेंगे? लालू क्या बोलेंगे? ब्रह्मचर्य एवं अनशन का साम्य आदमी के लिए क्या और कितना मतलब रखेगा?

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