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घूसखोर का जज्बा

फंटूश
फंटूश
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मैं इधर घूसखोर के बारे में थोड़ा सकारात्मक हुआ हूं। बी पाजीटिव। उनके बारे में मेरी धारणा बदली है। मैं उनको आदमी से महान मानने लगा हूं।
मेरी राय में घूस लेने वाला आदमी यानी घूसखोर, घूस देने वाले आदमी से सभी अर्थों में बहुत अधिक महान है। सीनियर आइएएस एसएस वर्मा की संपत्ति जब्त हो रही है; लोकसेवा का अधिकार कानून लागू हो चुका है-यह सबकुछ जानते हुए घूसखोर नहीं मान रहा है। छह दिन में पांच घूसखोर पकड़े गये। यह घूस के प्रति उनका पैसन है; प्रतिबद्धता है; श्रद्धा है; समर्पण है; ईमानदारी है। आदमी में एकसाथ इतना गुण नहीं होता है। 
घूसखोर बड़े हिम्मत वाले होते हैं। घूस लेना हंसी-खेल नहीं है। अभी तो इसमें बहुत रिस्क है। बेचारा आदमी इतना रिस्क उठाने की हिम्मत नहीं करता है।
घूस लेने वाले आदमी के पास बड़ा दिमाग होता है। देखिये! ये सीओ साहब हैं। राजधानी पटना के ठीक बगल वाले ब्लाक में पोस्टेड हैं। जनाब का तरीका बेजोड़ है। नार्मल मसले को तत्काल विवाद में डाल देते हैं। एक नमूना :- जमीन के दाखिल- खारिज (म्यूटेशन) के मामलों में तब तक नोटिस करते रहते हैं, जब तक मुद्दे को बरगला देने वाला बखेड़ा खड़ा न हो जाये। स्वाभाविक तौर पर दोनों पक्ष के लोग उनके सामने हाथ बांधकर खड़े रहते हैं। नाप-तौल से रेट बढ़ता है। अपनी इस प्रक्रिया में सीओ साहब किसी की नहीं सुनते हैं। उनके पास सबको औकात में लाने की महारथ है। कापीराइट। उनके साथी- सहयोगी कई ऐसे लोग हैं, जिनकी चर्चा शासन के औचित्य को कठघरे में खड़ा करती है। उन्होंने अपने बूते कुछ प्राइवेट लोगों को सरकारी बना रखा है। वे बैठते तो हैं झीलनुमा कैंपस के टूटे कमरे में हैं, मगर …! मेरे एक परिचित बता रहे थे-इन्हीं जमात के अफसरों के चलते पटना में जमीन और फ्लैट का दाम बुलंदी पर पहुंच कर भी मेनटेन है।
मेरे सहयोगी लोग आजकल आफिस-आफिस घूम रहे हैं। दिलचस्प सीन है। भ्रष्टाचार के अनुभवों को खंगालना बड़ा रोमांच पैदा करता है- अएं ऐसा भी होता है? रोमांच की ताकत सिर्फ घूसखोर के पास है। आदमी के पास रोमांच पैदा करने की ताकत नहीं है।
घूसखोर अपने कर्तव्य के प्रति बड़े ईमानदार हैं। ये छुट्टियों के दिन भी आफिस पहुंच जाते हैं। आदमी ऐसा नहीं करता है। घूसखोर बड़ा फंड मैनेजर होता है। वृद्धावस्था पेंशन के रुपये से शेयर, फिर …, आदमी करोड़पति बनने के इतने तरीकों से वाकिफ नहीं है।
घूसखोर का अपनी कमाई से बड़ा लगाव होता है। वर्मा जी अपने ही घर को सरकार से किराये पर लेना चाहते थे। नहीं ले पाये। आदमी, लोक -लाज की सीमा में बंधा रहता है। घूसखोर, इस सीमा से बहुत दूर निकल जाता है। उन्मुक्त, बंधनमुक्त। घूसखोर, बच्चों की खिचड़ी के पैसे चुरा लेते हैं और कोढ़ मिटाने वाली दवा के भी। आदमी डरता है। उस दिन पटना कमिश्नर के दफ्तर में था। अधिकांश फरियादों में एक बात कामन सी थी-सर, बाबू काम नहीं कर रहा है। पैसा मांगता है। आदमी, आदमी से मान जाता है। घूसखोर, मशीन से भी नहीं मानता है।
एक घूसखोर ने अपनी पत्नी को घूस लेने को बोल दिया। बेचारी पकड़ी गयी। आदमी, ऐसा नहीं करता है। डाक से घूस भेजा जा रहा है। झारखंड के एक व्यक्ति ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल को डाक से एक लाख का चेक भेजा है। यह घूस नहीं, बल्कि घूसखोरी के प्रति आदमी का गुस्सा है।
सरयू प्रसाद आदमी है। बस्ती का किसान है। उसने अरविंद केजरीवाल के नाम नौ लाख का चेक दिया है। सरयू चाहता है कि केजरीवाल इस रुपये को आयकर विभाग को चुका कर जन-लोकपाल के मुद्दे पर सिविल सोसायटी की लड़ाई मजबूत करते रहें।
वाजिब सवाल है-आखिर यह देश किससे चल रहा है-सरयू प्रसाद से, वर्मा जी से या सीओ साहब से? मैंने पिछले हफ्ते भी एक सवाल उठाया था-क्या इस ग्रह (पृथ्वी) का आदमी, एलियन से दुरुस्त होगा? एलियन, दूसरे ग्रह के बाशिंदे हैं। अमेरिका इस पर शोध कर रहा है।

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