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बाप रे बाप …, थैंक गाड

फंटूश
फंटूश
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मैं भी पटना में मची अफरातफरी का हिस्सेदार था। उस मनौती का भागीदार था, जिसमें खौफ के पसीने को पोंछने और कांपते -थरथराते शरीर को नार्मल करने के दौरान भगवान का चेहरा साफ -साफ दिखता है। अपनों को छूने, उनसे बात करने का रोमांच, बहुत दिन बाद बहुत जिया। बाप रे बाप से थैंक गाड का सफर …, अब जिंदगी का बखूबी हिस्सा है। आदमी के बारे में मेरा ज्ञान अचानक बहुत बढ़ा है। मैं बदहवास आदमी के कई-कई चेहरों को देख रहा था। देख रहा था कि कैसे खुद को मारने का भरपूर इंतजाम करने के बाद आदमी अपने बचाव में सीधे भगवान की शरण में जाता है। वस्तुत: वह अपने कारनामों को छुपाने की कोशिश करता है। छुपा पाता है? वह तो मर जाता है। एकसाथ ढेर सारी बातें याद आ रही हैं। पिछले महीने की नौ तारीख को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि गुजरात की भूकंप आया तो पटना में पांच लाख से अधिक लोग मर जायेंगे। ऐसा मकानों के गिरने से होगा। राहत पहुंचाना भी मुश्किल है। मुख्यमंत्री गलत बोल रहे हैं? रविवार को नौबत ऐसी थी कि हम बचने को भागे भी कहां? मुख्यमंत्री, राजधानी के बेतरतीब फैलाव पर बिफरे हुए हैं। वे कानून बनाने की बात कह रहे हैं। मगर कानून क्या कर लेगा? जिन मसलों पर कानून हैं, वे पूरी तरह लागू हैं? आदमी ठान ले तो कानून क्या करेगा? आदमी मान रहा है? क्या गलियों में अपार्टमेंट बनाने वाले बिल्डर पब्लिक को जबरिया फ्लैग एलाट करते हैं? भूमि पूजन होते ही सभी फ्लैट कैसे बुक हो जाते हैं? यह कैसी मानसिकता है कि बिना खतरों को किनारा देने वाली व्यवस्था को जाने कोई अपना फ्लैट बुक कराता है? पब्लिक 40-45 लाख रुपये के अपार्टमेंट के किचेन का टाइल्स तो निहार लेती है, घर पहुंचाने वाला रास्ता नहीं देखती है। क्यों? क्या कानून में ऐसी भी कोई व्यवस्था होनी चाहिये? अरे, जो आदमी सिर आपका, सुरक्षा आपकी, आधारित हेलमेट की दरकार को नहीं मानती है, उसके लिए कोई कानून क्या खाकर कुछ कर लेगा? पटना हाईकोर्ट यह कहते- कहते लगभग शांत सा हो गया कि शहर भयावह भीड़ में तब्दील है। नोट के बूते नक्शा पास कराने की बात साबित हो चुकी है। यह सब तब है, जबकि बिहार के भूकंप के खतरनाक जोन में है। देश के भूकंपीय मानचित्र पर दरभंगा जोन पांच में आता है। इसमें सुपौल, सहरसा, अररिया समेत आठ जिले भी हैं। यह वही जोन है, जिसमें गुजरात का भुज है। यहां भूकंप से तबाही की बड़ी लम्बी दास्तान है। 23 अगस्त 1833 से लेकर 18 सितम्बर 2011 तक। सर्वाधिक तबाही 15 जनवरी 1934 को आये भूकंप ने मचायी थी। तब 10700 लोग मारे गये थे। मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मोतिहारी और मुंगेर में सबसे अधिक लोग मरे थे। जो शहर, जो प्रदेश भूकंप के मामले में इतना खतरनाक है, वहां ऐसी व्यवस्था; इतनी लापरवाही? अपने को बचाने तक का संकट? ये आदमी को हो क्या गया है? वह क्या कर रहा है? अपनी गलतियों के लिए कब तक भगवान और सरकार को जिम्मेदार बताते रहेगा? मुझे एक और बात अखरी। पहली बार साबूत तौर पर पता चला कि हम किसी बड़ी आपदा के मौके पर सबको सतर्क करने की स्थिति में भी नहीं हैं। राजधानी में सायरन लगा है। आपने सुना? भई, मैंने तो नहीं सुना? अधिकांश सायरन खराब हैं।

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