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तंत्र साधना …

फंटूश
फंटूश
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मैं नहीं जानता कि लालू प्रसाद जी ने क्या साधा है? कितना साधा है? तंत्र साधना से उनकी ताकत कितनी बढ़ी है? यह उनके दुश्मनों के सर्वनाश के काबिल है कि नहीं? वे इसका इस्तेमाल करेंगे? कब करेंगे? किस पर करेंगे? वह तत्काल भस्म हो जायेगा या तड़प-तड़पकर मरेगा? जनाब, शाप देंगे या अभिमंत्रित जल छिड़केंगे? लोकतंत्र में तंत्र साधना और राजनीति में कोई वास्ता है या नहीं? अभी बहुत कुछ दिखना बाकी है। मगर मैं कुछ बातों को जरूर देख रहा हूं। मैं देख रहा हूं कि मधुबनी के बेला गांव में बौरायी भीड़ अनिल पासी और टुनटुन महतो की पत्नी को मार डालने पर आमादा है। दोनों घर में छुपी हुईं हैं। भीड़, घर को घेरे हुए है। तोडफ़ोड़ मची है। एक गुमटी में आग लगा दी गई है। भीड़, दोनों महिलाओं के बारे में कह रही है-ये डायन हैं। डोमी महतो के छह साल के बेटा को बलि देने के लिए छुपाकर रखे हुईं थीं। डोमी का बेटा मिल गया है। बेहोश है। उसका हाथ-पैर बंधा हुआ है। मैं कुछ ही घंटों में इस कहानी को बदलते हुए भी देख रहा हूं। डोमी की बेटी ही अपने भाई (छह साल का बच्चा) की बलि देना चाहती थी। मैं देख रहा हूं किसी तरह दोनों महिलाओं की जान बचती है। किंतु झिल्लाडुमरी (सरायगढ़, सुपौल) की राधा देवी नहीं बच पाती है। उसका इलाज भपटियाही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में चल रहा है। लोगों ने उसे डायन बताकर खूब पीटा है। उसे मैला भी पिलाया गया है। यह सब पिछले तीन दिन में हुआ है। इस दौरान मैं एकसाथ आदमी के कई-कई रूप से वाकिफ हुआ हूं। बाप रे बाप …, आदमी गजब का कंट्रास्ट है। अभी-अभी आदमी मातृशक्ति की आराधना से मुक्त हुआ है और फौरन मां को डायन बताकर पीटने लगा है। यह सब ठीक वही मिजाज है, जैसे गंगा को गंदा करने से पहले उसे पूजना। बेशक, पारलौकिक शक्तियां लोगों को रोमांचित करती रही हैं। पश्चिमी देशों में भी नीयर डेथ एक्सपेरिएंस (निकट मृत्यु अनुभव) पर शोध हो रहे हैं। ऐसे अनुभव रखने वालों (एंडीयर्स) की बातें सिरे से खारिज नहीं की जातीं हैं। धर्म व जादू की परिभाषा है। लेकिन बिहार में …! यह तो मध्ययुगीन बर्बरता है? भारत ऋषि -मुनियों का देश है। लेकिन बेजा फायदा ढोंगी उठा रहे हैं। आस्था और अंधविश्वास के महीन फर्क की आड़ में बहुत कुछ बहुत भयावह है। मैंने इस बार नवरात्र में ऐसे दृश्य खूब देखे हैं। बदहवास, बेसुध एक औरत। कंपाकंपा देने वाली लाल आंखें, बिखरे बाल, कपड़ों की परवाह नहीं। मैं देख रहा हूं वह ताबड़तोड़ सिर पटक रही है। सामने बैठा नशे में धुत्त बाबा अट्टïहास कर रहा है। जब बाबा झूमता है, तब विज्ञान- प्रगति-21 वीं सदी, यानी मानव विकास से ताल्लुक रखता सब कुछ कांपने लगता है; खारिज होता दिखता है। आस्था-अंधविश्वास का पूर्णतया घालमेल। बाबा जी औरत का भूत उतार रहे हैं। उसे पीट रहे हैं। औरत शांत हो जाती है। उसका भूत भाग गया है। घिन्हू ब्रह्मï मेला (संझौली, रोहतास), अस्कामिनी मंदिर (बिक्रमगंज, रोहतास), शाह रहमतुल्लाह साहब की दरगाह (ब्रह्मïपुर, बक्सर), लछवारधाम (गोपालगंज), मनोरा दरगाह (ओबरा, औरंगाबाद), महुआधाम (मध्य बिहार) …, यहां तो भूत भगाने के घोषित स्थल तक हैं। पटना में भी यह सब होता है। प्रशासन, ऐसे आयोजनों पर बिजली-पानी का प्रबंध करता है। पुलिस, यात्रियों की सुरक्षा को न्योछावर रहती है। ऐसे में मां को डायन बताकर मारने, बलात्कार करने, नंगा घुमाने, शौच, पेशाब पिलाने जैसी बातें बहुत आश्चर्य पैदा नहीं करती हैं। रोकथाम के लिए डायन प्रथा प्रतिषेध विधेयक 1999 है। लेकिन …! जागरूकता अभियान लापता है। लालू जी तंत्र साधना करके लौटे हैं। अपने पूजा-पाठ को वे धड़ल्ले से बिहार की बेहतरी के साथ जोड़ देते हैं। देखें, उनकी साधना बिहार को क्या देती है?

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