Menu
blogid : 53 postid : 211

सरकार क्या करेगी!

फंटूश
फंटूश
  • 248 Posts
  • 399 Comments

मैं, आदमी होने के नाते आदमी और उसकी आदमियत पर बहुत चकित हूं। उस दिन दिवाली थी। मैंने देखा-कुछ आदमी अपनी छतों पर खड़े होकर यह देख रहे थे रात दस बजे के बाद कहां-कहां, कितने पटाखे फूट रहे हैं? कुछ आदमी रात बारह बजे पटाखे फोड़ खुद को शासन को चुनौती देने की शेर-दिल हैसियत में मान रहे थे। उनके चेहरे का यह गर्वीला भाव तेज और चौतरफा फैली रौशनी में और चमक रहा था कि आखिर कोई हमारा क्या बिगाड़ लेगा? 
बेशक, इन आदमियों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। अपने यहां लोकतंत्र है। लोकतंत्र में सत्ता (शासक) और जनता के संबंध कई मोड में परिभाषित हैं। कई तरह की बात है। भाव हैं। जरा निरपेक्ष (बेहतर शब्द उदासीन) भाव देखिये-कोई नृप होए हमें क्या हानि? दो और सिचुएशन हैं-जस राजा, तस प्रजा और जस प्रजा, तस राजा। इस लाइन पर लंबा शोध हो सकता है कि अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था में किस तरह का भाव है? बड़ा लजीज नतीजा निकलेगा?
अपने यहां का आदमी कुछ ज्यादा आजाद है। उसको कोई कुछ नहीं कर सकता है। सरकार क्या करेगी? सरकार सड़क बना सकती है। बना रही है। बेली रोड के राजाबाजार वाले हिस्से को देखिये। यह नमूना, आदमी और उसकी आदमियत के कमोबेश हर पक्ष का गवाह है। यहां पतली सड़क थी। सरकार ने चौड़ी की। यह फैलकर दोगुनी हो गयी। मगर अब भी यूज में पहले जितनी सड़क है। बाकी हिस्सा आदमी की पार्किंग के रूप में इस्तेमाल होता है। आदमी की प्रवृति है-वश चले तो गाड़ी लेकर दुकान में घुस जायें और गाड़ी से ही बेडरूम में लौटें। यहां स्थायी जाम हटाने के नाम पर सब्जी बाजार हटा। यह जेडी वीमेंस कालेज की बगल में शिफ्ट हुआ। अब दोनों जगह सब्जी बाजार है। जाम है। सरकार क्या करेगी?
ट्रैफिक जाम है। कोई सरक नहीं रहा है। आदमी हार्न बजा रहा है। प्रेशर हार्न। पहले आदमी की गाड़ी की हेडलाइट के आधे भाग को काला रंग से पोत दिया जाता था। अब रात में आदमी की गाड़ी के सामने पडऩे पर आदमी को एकाध मिनट तक कुछ नहीं सूझता है। सरकार क्या कर लेगी?
मैं अभी दशहरा में गंगा जी गया  था। देखा, आदमी गंगा जी को पूज कर उसे गंदा कर रहा है। और फिर उनको पूज रहा है। सरकार क्या करेगी?
आदमी, मकान बनाने में पचास-साठ लाख रुपये फूंक देता है लेकिन दो हाथ का पाइप लगाकर घर के नाले को मुहल्ले के ड्रेनेज सिस्टम से नहीं जोड़ता है। सरकार क्या करेगी?
घर में जीरो वाट के जलते बल्ब पर हंगामा मचाने वाला आदमी, मुहल्ले की दिन में भी जलती स्ट्रीट लाइट के बारे में सरकार को कोसने से ज्यादा कुछ नहीं करता है। पटना के कमोबेश हर रूट पर मिनट-मिनट पर टेम्पो है। मगर आदमी ड्राइवर के साथ उसकी सीट पर धक्का-मुक्की का मजा खोना नहीं चाहता है। सरकार क्या करेगी?
आदमी, कहीं भी रीलैक्स हो जाता है। उसमें शर्म-हया नहीं है। अपने शहर में ट्रैफिक संभालने वाला आदमी अपनी पोस्ट पर डंडा रखता है। आदमी, चालीस लाख की गाड़ी पर सवार है मगर बुद्धि से पैदल है। दानापुर सैनिक छावनी एरिया से गुजरते आदमी का अनुशासन देखिये। और यही आदमी छावनी में प्रवेश करने पहले या छावनी क्षेत्र से बाहर जाने के बाद …! तो क्या आदमी बिना लात के …! सरकार क्या करेगी?
आदमी के पाले में सबसे आसान काम दूसरों को कोसना या उसकी आलोचना है। आदमी को बस अपना अधिकार याद है। आदमी ने अपने कर्तव्य की देखरेख का जिम्मा दूसरों को सौंपा हुआ है। सरकार क्या करेगी?
शादी-ब्याह का दिन आ रहा है। देखियेगा, कैसे घर के बच्चों के साथ बूढ़ा आदमी रात में एक-डेढ़ बजे बैंड बाजा की धुन पर थिरकेगा- … ये देश है वीर जवानों का। इन वीर जवानों (आदमी) का कोई कुछ नहीं कर सकता है। सरकार क्या करेगी?
सिविक सेंस, शब्दों तक सीमित है। इसका तब इस्तेमाल होता है, जब आदमी को दूसरे आदमी को कोसना होता है। सरकार क्या कर लेगी? आदमी, बस अपने घर में कचड़ा नहीं रखता है। यह आदमी के घर के सामने की सड़क पर चलेगा। सरकार क्या करेगी?
ऐसी बात नहीं है कि आदमी में अच्छाई की प्रवृति नहीं है। आखिर छठ में सड़कें अचानक चकाचक कैसे हो जाती हैं? कहां से यह आत्मभूति आती है, जो आदमियों के घर की सामने की सड़कों को बाकायदा पानी से धो डालती है? यह भावना आम दिनों में क्यों मरी हुई रहती है? हे छठी मईया, हम आदमियों की बेहतर सोचने, करने वाली बुद्धि को हमेशा के लिए सक्रिय कीजिये। हमें मेंटोस खाने की जरूरत न पड़े। हमारे दिमाग की बत्ती हमेशा जलती रहे।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh