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एक मच्छर आदमी को …

फंटूश
फंटूश
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उस दिन विधान परिषद के सभापति (ताराकांत झा) को सुन रहा था। आप भी सुनिये, जानिये। जनाब सदन में पटना की गंदगी पर बवाल के दौरान रामचरित मानस का अयोध्याकांड सुना रहे हैं। प्रसंग है-श्री राम अपने अनुज और अयोध्या के सम्राट भरत से पूछते हैं-क्या तुम्हारे राज्य में प्रजाजन सुखी हैं? अब सभापति जी, नगर विकास मंत्री (डा.प्रेम कुमार) से मुखातिब हैं। उनसे पूछ रहे हैं-और आपके शहर के लोग कहां जायें, कहां जाकर रोयेंगे?आपके कार्यकलाप से राजधानी के लोग अप्रसन्न रहें, यह अच्छी स्थिति नहीं है।
अब सभापति जी कचरा गाथा को विस्तार दे रहे हैं। कचरा से जुड़ा अपना संस्मरण सुना रहे हैं-मेरे एक परिचित के यहां शादी थी। मैं उनके घर गया तो आसपास कूड़े का अंबार देखा। मैंने नगर निगम को खुद फोन किया। इंसपेक्टर स्तर के किसी अधिकारी ने फोन उठाया और कहा कि सर कूड़ा तत्काल हटवा दिया जा रहा है। मुझे ट्रैक्टर के रुपये 150 रुपये अपनी जेब से देने पड़े। मैं हतप्रभ रह गया। सभी हतप्रभ। मंत्री जी चुप।
एक और संस्मरण है। इसे भी सुनिये। ये टी.मीना कुमारी हैं। पटना हाईकोर्ट में न्यायाधीश हैं। कह रही हैं-मैं पिछले दिनों हथुआ मार्केट गयी थी। गंदगी देखकर हैरान हो गयी और मुझे मानना पड़ा कि याचिकाकर्ताओं की शिकायत गलत नहीं है। उनकी और न्यायाधीश विकास जैन की खंडपीठ ने पांच दिन में पटना को चकाचक करने का आदेश दिया है। उनकी राय में पटना गंदगीयुक्त शहर है। मेरी राय में यह राय गलत नहीं है।
शहर की सफाई की तारीख 14 दिसम्बर मुकर्रर है। पटना नगर निगम इस टारगेट को पूरा करेगा? शहर की चमक की अवधि क्या होगी? इससे भी बड़े कई सवाल हैं। आखिर ऐसी नौबत क्यों आयी? ऐसे में नगर निगम का क्या मतलब है? और सबसे बड़ा सवाल यह है क्या, साफ-सफाई बस सरकार या उसके तंत्रों की जिम्मेदारी है? आम लोगों के पास सिर्फ गंदगी फैलाने का अधिकार है?
ढेर सारे सवाल हैं। ये पहले और आखिरी भी नहीं हैं। मुझे कुछ पुरानी बातें याद आ रहीं हैं। लालू प्रसाद (तब के मुख्यमंत्री) विदेश से लौटे थे। उनको तब पटना काफी गंदा और अव्यवस्थित लगा। विदेशी चमक आंखों में बहुत गहरी उतरी थी। उन पर शहर की सफाई और इसे सुंदर बनाने की सनक सवार हुई। रात-रात भर जगकर उन्होंने अभियान चलवाया। हश्र? उन्हीं की पार्टी वाली सरकार के राजपाट में शहर की सुंदरता व सफाई को संभालने वाले निकाय मच्छर मारने तक की औकात नहीं रखे। 
और आज सभापति और न्यायाधीश अपना संस्मरण सुना रहे हैं। क्यों?
हल्का फ्लैशबैक …, सरदार बूटा सिंह ने राष्ट्रपति शासन में बिहार का राजपाट संभाला था। अफसरों के साथ पहली बैठक में उनका निर्देश था- राजधानी को मच्छरों से मुक्त कराइये। यह एक राज्यपाल, सत्ता शीर्ष का पहला आदेश हो सकता है? अगर हां, तो फिर इस काम से जुड़े विभाग, उसमें काम करने वाले मुलाजिमों का औचित्य क्या है?
मुझे याद आ रहा है कि अश्विनी कुमार चौबे कुछ दिन के लिए नगर विकास मंत्री बने थे। सदन में मच्छरों के प्रकोप का मसला गूंजा, तो सर जी ने मच्छरों के आकार -प्रकार, उनकी क्षमता, यानी सबकुछ बता दिया। लेकिन …! मुझे याद नहीं कि मैं कब से उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की जुबान से कचरा प्रबंधन की बात सुन रहा हूं?
मेरी राय में कचरा गाथा की उम्र बड़ी लम्बी है। शहर को साफ रखने के कई प्रयोग हो चुके हैं। निजी कम्पनियां भी आजमाई गईं। क्या हुआ? क्यों नहीं हुआ? कौन जिम्मेदार है? क्यों पटना नगर निगम के बारे में यह धारणा है-पटना नरक निगम। निगम की अपनी गाथा है। खुद कर्मचारियों को ठीक से याद नहीं होगा कि उन्होंने अब तक कितनी दफे हड़ताल की है? भूखे पेट काम हो सकता है? क्यों, टाइम पर वेतन नहीं मिलता है। बहुत सारे कर्मी वीआईपी ड्यूटी में रहते हैं। बढ़ती आबादी- इलाके  और कर्मचारियों की संख्या के अनुपात में मेल नहीं है। मार्च 1974 में नगर निगम के कार्यालय में आग लगी थी। कचरा गाथा का बड़ा पक्ष घोटाले से भी जुड़ता है। तरह-तरह के घपले। भाई लोगों ने होल्डिंग टैक्स फिक्स करा रखी है। निगम, अपना टैक्स  वसूलने में किन्नरों का सहारा ले चुका है। तो यह है आजाद भारत में मर्द जनता का हाल, रुतबा।
बेशक, महान भारत की जनता बहुत महान है। वह पहले गंगा मईया को पूजती है, फिर उसे गंदा करती है और फिर पूजा करती है। वह पचास- साठ लाख का घर बनाती है मगर दो-हजार रुपये का पाइप खरीद अपने घर की नाली को मुहल्ले के नाले से नहीं जोड़ती है। उसे अपने घर का खाली प्लाट सबसे बड़ा कूड़ेदान नजर आता है। हां, वह सरकार को खूब कोसती है। वह मच्छरों को पैदा करने के लिए प्रजनन केंद्र बनाती है और मच्छरों से खूब डरती भी है। शायद इसीलिए कि एक मच्छर आदमी को …!

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