Menu
blogid : 53 postid : 261

जब समाज उतारू हो जाये …, सरकार क्या कर लेगी?

फंटूश
फंटूश
  • 248 Posts
  • 399 Comments

मैंने ऐसा प्रेम, समर्पण और एकजुटता नहीं देखी है। भाव-विभोर हो गया हूं। मेरी गारंटी है आप भी हो जायेंगे। देखिये। अहा, क्या सीन है! बाप-बेटा, दोनों मिलकर पुलिस पर रोड़े बरसा रहे हैं। भाई, बहन के लिए जेल जा रहा है। बेटी, मां के बदले परीक्षा देने का रिस्क ली हुई है। चाचा-भतीजा, दोनों चोरी करते-कराते पकड़े गये हैं। मामा, भांजे के साथ जमानत पर छूट रहा है। जीजा, साली के लिए कुछ भी करने पर उतारू है। इस पारिवारिक, सामाजिक गोलबंदी पर कोई भी मोहित हो जायेगा जी। मैं भी हूं। मुझे बचपन का एक बचकाना चुटकुला याद आ रहा है। बेटा, बाप से बोलकर ठाट से सो जाता है-पापा जी ठीक से तैयारी कर लो, कल गणित का पेपर है। मेरी राय में अब यह चुटकुला ढेर सारी सच्ची कहानियों के बेजोड़ प्लाट के रूप में विस्तारित है। मैट्रिक परीक्षा में ऐसे प्रेम व समर्पण का किरदार बनने का माद्दा रखने वाले एक-एक परीक्षार्थी अपने-आप में एक-एक लाजवाब प्लाट हैं। बेशक, सभी ऐसे नहीं हैं। मगर करे एक, भरे सभी की तर्ज पर बदनामी की छींटे कमोबेश सब जगह दिखते हैं। खैर, मैं इस लाईन से तनिक भी वास्ता नहीं रखता हूं। मैं दूसरी बात कह रहा हूं। मैं इस परीक्षा के संदर्भ में परिवार-समाज के अद्भुत प्रेम को देख रहा हूं, उसे नये सिरे से परिभाषित व विश्लेषित कर रहा हूं। और मेरी दोबारा गारंटी है कि बाप का बेटा-बेटी के प्रति, भाई का भाई के लिए, बेटी का मां के लिए, देवर का भाभी खातिर …, मैट्रिक की परीक्षा संबंधों के स्तर पर पुरजोर प्रेम का अप्रतिम उदाहरण है। सभी एक-दूसरे के लिए जेल जा रहे हैं, पुलिस के डंडे खा रहे हैं। एक जिले के एक परीक्षा केंद्र पर लड़कियों के चिट-पुर्जों की चेकिंग हुई, तो भाई लोगों ने बवाल कर दिया। लोग चोरी के लिए सीनाजोरी, चाहे यह जिस भी किस्म की हो, को अपना अधिकार मान चुके हैं। परीक्षा में चोरी न करने का गुस्सा रेलवे स्टेशन, चलती ट्रेन या फिर सड़कों पर उतर रहा है। परीक्षा केंद्र में तोडफ़ोड़, पुलिस से भिड़ंत …, जब-तब यह युद्ध ही लगता है। तेरह लाख से अधिक की परीक्षा कराना हंसी-खेल भी नहीं है। मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि ऐसा क्यों है? कौन जिम्मेदार है? दोष सिर्फ समाज का है? सरकार क्या कर लेगी? ढेर सारे सवाल हैं। और इनके जवाब विद्यालय चलो केंद्र, अंगना -अपना विद्यालय, बाल वर्ग दीदी, जननी, जगजननी, साक्षरता कर्मी, लोक शिक्षक, शिक्षा मित्र और तमाम विद्यालय …, यानी आदमी को सभ्य -सुशिक्षित करने के सभी आयामों के अस्तित्व के औचित्य को कठघरे में खड़ा देते हैं। मुझे तो कई मायनों में यह सब अराजक भीड़ के खतरे ही लगते हैं, जो न सिर्फ कानून-व्यवस्था को किनारा देता है, बल्कि कुछ स्तर पर तो व्यवस्था पर सीधी अंगुली भी उठाता है। क्या यह गलत बात है कि कदाचार की बुनियाद प्राथमिक विद्यालय के स्तर पर पड़ जाती है? प्राथमिक -मध्य विद्यालय पहले गेहूं वितरण केंद्र थे, अब यहां खिचड़ी बंटती है। शिक्षकों की कमी है। शिक्षा सुधार का एक बड़ा कालखंड, राजनीति का जरिया बना रह गया। चरवाहा विद्यालय गवाह हैं कि कैसे गरीबों के बच्चों को सपने दिखा उसे तोड़ दिया गया? ऐसे उच्च विद्यालय भी रहे हैं, जहां संस्कृत के शिक्षक विज्ञान पढ़ाते हैं और गणित वाले अंग्रेजी। कालेजों में शिक्षकों के आधे से अधिक पद रिक्त हैं। ऐसे में परीक्षा होगी तो …! बीते बीस-इक्कीस वर्ष में दो बार व्याख्याता नियुक्त हुए और दोनों नियुक्ति विवादास्पद रही। शिक्षक बनने की परीक्षा में भी चोरी होती है। लोकसेवक अपनी प्रोन्नति वाली विभागीय परीक्षा में चोरी करते हैं। मुझे माफ करेंगे, थोड़ा भटक गया था। बात मैट्रिक परीक्षा की हो रही थी। मेरी राय में कदाचार के बाद पैरवी की बारी आती है और इसी अराजकता का अगला चरण है-प्रमाणपत्रों का अवैध कारोबार। बिहार, इस मोर्चे पर भी बड़ा बदनाम रहा है। बड़ी लम्बी दास्तान है। हां, अब इसकी मात्रा में बहुत कमी आयी है। जहां तक मुझे याद आ रहा है परीक्षा में कदाचार, साठ के दशक की बात है। महामाया प्रसाद सिन्हा राजनीतिक कारणों से अपने जिगर के टुकड़ों के लिए परीक्षा में खुली छूट चाहते थे। राजपाट चलाने वाले इस मोर्चे पर जस राजा तस प्रजा की घोर बदनामी तब तक रखे रहे, जब तक पटना हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप न किया। अदालती आदेश पर जब परीक्षाओं में सख्ती हुई, तो विद्यालयों में पढ़ाई की स्थिति का खुलासा हुआ। सुधार की दर्जनों घोषणाएं हुईं। कितनी पूरी हुईं? बीच के वर्षों में कदाचार, सक्षम वर्ग की बपौती थी। बाद में पूरा समाजवाद हो गया। कालेजों की स्थिति और भी बुरी है। बेशक, इधर के वर्षों में बहुत कुछ बदला है। लेकिन अब भी बहुत कुछ होना बाकी है। बाप को देखना होगा कि वह अपने बेटे को क्या सिखा रहा है? समाज को सरकार की मदद करनी होगी। और सरकार …, उसको यह ख्याल रखना ही होगा कि बिहार में विश्वविख्यात नालंदा व विक्रमशिला विश्वविद्यालय था। वरना …!

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh