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राजनीति @ सर्वानुमति

फंटूश
फंटूश
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मैं बड़ा रोमांचित हूं। कुछ बातें बहुत अच्छी लगीं हैं। आपसे शेयर करता हूं।
उस दिन विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सुन रहा था। आप भी सुनिये -कृषि के विकास के लिए जो प्लान बनाया जा रहा है, उसमें सभी की राय शामिल रहनी चाहिए। सभी सदस्य सुझाव दें। हम सर्वानुमति से यह डाक्यूमेंट बनाना चाहते हैं। यह मामला केवल सरकार या विपक्ष से जुड़ा नहीं है। राज्य के हित की बात है। सरकारें आती-जाती रहतीं हैं। लेकिन कुछ चीजें स्थिर रहती हैं। इस मामले में सभी सदस्य दलगत भावना से ऊपर उठकर भाग लें।
उनकी बातों का असर भी हुआ। विपक्ष का टोन-टेम्पर बदला हुआ था। और यह सिर्फ कृषि तक सीमित नहीं है। बिहार विधानमंडल ने यह प्रस्ताव भी पारित किया है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी में खुले। केंद्र सरकार पहले पटना का नाम बता रही थी। अब गया का नाम सुझा रही है। मुख्यमंत्री, दिल्ली को पत्र भेजकर बता चुके हैं कि इस बारे में जन- भावना पर कुठाराघात नहीं होना चाहिये। विधानसभा, सर्वोच्च जनप्रतिनिधि सदन है।
मेरी राय में सौ वर्ष पूरा कर रहे बिहार के लिए यह सब सुखद संकेत है। वाकई, बिहार की जो बुनियादी दरकार है, वह पुरजोर राजनीतिक एकजुटता से ही संभव है। सतही राजनीति के दिन गये।
बिहार के पास राजनीतिक एकजुटता के कई सुखद अनुभव हैं। एकाध को देखिये। तब, सभी हतप्रभ थे। अचंभा की बात ही थी। दलीय झंडों, चेहरों का फर्क मिट गया था। बाढ़ राहत व धान-गेहूं की खरीद तक पर लंगड़ीमार राजनीति करने वालों के नारे एक हो गये थे। राबड़ी देवी की राजपाट से बेदखली को बिहार के विकास की इकलौती शर्त बताने वाली पार्टियां (खासकर राजग) भी राजद के साथ सदन से लेकर सड़क तक पर मोर्चा थामे रहीं। सबने मिलकर पूर्व मध्य रेलवे के हाजीपुर जोनल कार्यालय के मुतल्लिक अपनी एकजुट कवायद को बिहार की आजादी की दूसरी लड़ाई और बिहारीपन का अहसास जैसे शब्दों का मुलम्मा दिया और जीते भी। हालिया दशक का यह पहला मौका था, जिसने राजनीतिक एकजुटता के सुपरिणाम को खुलेआम किया।
मैं समझता हूं कि अभी भी इस प्रदेश को कई मसलों पर इसी तरह की एकजुटता या सर्वानुमति की जरूरत है। विशेष राज्य का दर्जा दिलाना सबसे बड़ा मसला है। बाढ़ से स्थायी त्राण के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिल चुका है। इसे मुकाम दिलाना होगा। किसानों को उनकी मेहनत (उत्पाद) की वाजिब कीमत दिलाने में दिल्ली की भागीदारी तय करानी ही होगी।
बेशक, संसदीय लोकतंत्र में सर्वानुमति की राजनीति मुश्किल है। थोड़ी अजीब बात लगती है। मगर राज्य और यहां की जनता के वैसे तमाम मुद्दों पर, जिनकी पूर्ति दिल्ली (केंद्र सरकार) से संभव है, पर सर्वानुमति या एका बनानी होगी।
जहां तक मैं समझता हूं इसमें किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिये। आखिर दिक्कत क्या है? अरे, इस बात से किसे इनकार होगा कि शुरू से बिहार के साथ नाइंसाफी होती रही है। आजादी के बाद तो बिहार को आंतरिक उपनिवेश बना दिया गया। खनिज बिहार के और कारखाने लगते रहे दूसरे राज्यों में। भाड़ा समानीकरण की नीति ने यहां की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। बिहार को बस रा मैटेरियल बनाकर रखा गया। उपेक्षा और अविकास के इस बैकलाग को पूरा करने के लिए मजबूत बिहार लाबी चाहिये। यह उन तमाम लोगों के लिए पाप धोने का लायक उपाय होगा, जो थे तो यहां के लोगों की बेहतरी के लिए जिम्मेदार किंतु अपनी संकुचित मानसिकता के तहत मजे की लंगड़ीमार राजनीति को अंजाम दिया, सतही वाहवाही लूटने की कोशिश में खुद आगे बढ़ते गये और बिहार पीछे छूटता गया।
क्या यह रहनुमाओं का कारनामा नहीं है कि चौहत्तर को अपना चेहरा बदलने का मौका बताने वाला बिहार, कई मामलों में घूमकर फिर उन्हीं स्थितियों में पहुंच गया था? क्यों भ्रष्टïाचार, जातीयता, अपराध का राजनीतिकरण कबूला गया? चौहत्तर से खासकर 2000 तक की बिहार की राजनीतिक यात्रा, नेताओं के व्यक्तिगत स्वार्थ, उनकी पदलोलुपता और इससे जुड़ी सरकार बनाने- गिराने की कहानी से कुछ ज्यादा रही है? कैसे और क्यों मर्यादा, त्याग, ईमानदारी, नैतिकता की अपनी-अपनी परिभाषाएं तय कर ली गईं? और क्या इन अपराधों के लिए पश्चाताप का कोई मौका नहीं होना चाहिये? 
मेरी समझ से सौ साल का हो रहा बिहार, इसके लिए एक बड़े मौके के रूप में आया है। इस अवसर का खास संकल्प यही होना चाहिये कि बिहारीपन, राजनीतिक पार्टियों का एजेंडा बनेगा।
अपने बिहार में क्या नहीं है? खाद्य प्रसंस्करण, पशुपालन, चीनी, लघु, कुटीर, हस्तकरघा उद्योग, पर्यटन …, सभी क्षेत्रों में असीम संभावनाएं हैं। मेहनती हाथ हैं। अच्छी माटी है। सुंदर जलवायु है। चाय की खेती सीमांचल को खुशहाली का चरम दे सकती है। खनिज तेल भी है। जमुई के मंजोश जैसे कई गांव हैं, जहां कोयला है। नदियों का जुड़ाव समृद्धि का वाहक बन सकती है। बिहार का पुनरुत्थान कोई नहीं रोक सकता है, अगर राजनीति, यहां के नेता …!

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