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बच्चे तो बच्चे, बाप …

फंटूश
फंटूश
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मुझे माफ कर देंगे। असल में जमाना ही खराब है। सबकुछ उल्टा-पुल्टा है। बच्चे, बड़ों को बता रहे हैं। बच्चे, बड़ों को सीखा रहे हैं। बच्चे, बड़ों को समझा रहे हैं। लेकिन बड़े …!
मैं आपको एक बच्चे से मिलाता हूं। उसका नाम निवास कुमार है। वह खगडिय़ा का है। एसआर हाईस्कूल में पढ़ता है। उसने बचपन से गांव की झोपडिय़ों में लोगों के अरमानों को खाक होते देखा है। अगलगी, उसे कंपकंपा देती है। उसने फायरप्रूफ झोपड़ी डिजायन है। और बड़े  झोपडिय़ों में आग लगाते हैं।
यह दीक्षा भंडारी है। ललित बालिका विद्यापीठ (गणपतगंज, सुपौल) की छात्रा। बाढ़ से बहुत डरती है। उसका यंत्र जलस्तर बढऩे पर सायरन बजायेगा। बड़े बाढ़ का इंतजार करते हैं। कुछ बड़े बाढ़ को बुलाते हैं। बड़े, बांध लूटते हैं; राहत घोटाला करते हैं।
अमरेश (जिला स्कूल, मुजफ्फरपुर) को दिन में जलती स्ट्रीट लाइट और रात में बिजली की आवाजाही चिढ़ाती है। उसकी मशीन सूरज की रोशनी पड़ते स्ट्रीट लाइट को बंद कर देगी; सूरज डूबते ही यह चालू हो जायेगी। नीतू (शिवनंदन उच्च विद्यालय, मुरौल, मुजफ्फरपुर) ने आलू से बिजली पैदा करने की तकनीक विकसित की है। मगर बड़े पत्थर से बिजली पैदा करते हैं। बिजली चोरी, बड़ों की बड़ी पुरानी आदत है। अनिता (आर्य कन्या उच्च विद्यालय, खगडिय़ा) ने ऐसी नाव बनायी है, जो सड़क पर भी दौड़ेगी। बड़े, डीजल और टायर चुराने के महारथी हैं।
अपने यहां निवास, दीक्षा, नीतू, अमरेश, अनिता जैसे ढेर सारे बच्चे हैं। ये बच्चे उस बड़ी आबादी के प्रतिनिधि हैं, जो गांवों में बसती है और जो 21 वीं सदी में भी बुनियादी जरूरतों से बहुत दूर है। बच्चों ने आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है, को पुष्ट किया है। जिसने जो जरूरत महसूस की, उसने उसे समाज की दरकार मानी है। बच्चों को समाज की चिंता है; आदमी की फिक्र है। बड़ों को है? मुझे तो नहीं लगता है। आगे देखिये …!
बच्चे, बड़ों को ठंडा या नार्मल करने की बेजोड़ तरकीब हैं। कुछ भी ‘ऐबनार्मलÓ खुले में न आने पाये, इसलिए पत्नी, पति के कान में फुसफुसाती है-श्श्श्ऽऽ …, बच्चे देख रहे हैं, सुन रहे हैं। बच्चे, बच्चे हैं और बड़े …, बाप रे बाप!
बच्चे, शांति का प्रतीक हैं। बच्चे, शांति का संदेश देते हैं। बड़े विधानसभा में शोर मचाते हैं। बड़ों पर विधानसभा अध्यक्ष के इस आग्रह का असर नहीं होता है कि ‘माननीय सदस्यगण, बच्चे देख रहे हैं। यहां से क्या संदेश लेकर जायेंगे? क्या सोचेंगे?
बच्चे, पढऩा चाहते हैं। बड़े, उनसे नारे लगवाते हैं। बच्चे, बच्चे रहना चाहते हैं। बड़े, बच्चों को बड़ा बना रहे हैं। बड़े, बच्चों से पुतले पर पेशाब करवाते हैं। बड़ों ने बच्चों के लिए गानानुमा नारा बनाया है-… गाय चराने वालों, भैंस चराने वालों, सुअर चराने वालों, बकरी चराने वालों, शीशा चुनने वालों, कूड़ा चुनने वालों …, पढऩा-लिखना सीखो। बच्चे, बड़ों द्वारा बनाये गये नारे लगाते हैं- … जन्म दिया है तो शिक्षा दो, पढ़ो या मरो, गैया-बकरी चरती जाये मुनिया बेटी पढ़ती जाये, पढ़ते जायें लिखते जायें अक्षर को अपना हथियार बनायें, पढ़-लिखकर आगे बढऩा है जीवन में अपमान न सहना है। बड़े, बच्चों की खिचड़ी लूट रहे हैं। बड़े, बच्चों को शायद ही पढ़ाना चाहते हैं। बच्चे, बड़ों की मौजूदगी में सुअर, कुत्ता और आदमी में फर्क की मुश्किल पैदा करते हैं।
बड़े, बच्चों के लिए एयरकंडीशन कमरे में लजीज भोजन के बीच गंभीर बैठक करते हैं। एजेंडा बच्चे होते हैं। बड़े, भूखे-नंगे बच्चों को पढ़ाने की अंग्रेजीदां रणनीति बनाते हैं। ग्लेज्ड पेपर पर सुंदर छपाई के भरमाने वाले ब्योरे देते हैं। बड़े, संपूर्ण साक्षरता-उत्तर साक्षरता अभियान, सतत्ï शिक्षा कार्यक्रम जैसी योजनाओं में अपना फायदा देखते हैं। बड़े, बच्चों के नाम पर जोरदार भाषण देते हैं-… हमें मध्याह्नï भोजन के स्तर को वहां तक पहुंचाना है, जब हम बच्चों के साथ बैठकर खा सकें।
बच्चे, अक्सर अपने कटे, फटे, टूटे अंगों को बड़ों को दिखाते हैं। बड़े,  बच्चों से बंधुआगिरी कराते हैं। बड़े, बच्चों के बचपन बचाने का ठेका लेते हैं। बड़े, अपनी जवानी को मस्त करते हुए बुढ़ापे के इंतजाम में जुटे हैं। बच्चे, जिंदा रहना चाहते हैं। हत्यारी टोली उनको लाशों का संतुलन बनाने में इस्तेमाल करती है।
बड़े, बच्चों को देश का भविष्य बताते हैं। बड़े, उनका वर्तमान लूट रहे हैं। बच्चे, भगवान का रूप माने जाते हैं। बड़े, उनमें फर्क पैदा कर रहे हैं। एक बच्चा पैदा होने के तीन-चार साल बाद कान्वेंटी रट्टा मारता है। दूसरा बच्चा कर्पूरी डिवीजन का किरदार बनता है। बच्चे, तमाम बड़ों को सहूलियत से उपलब्ध हैं। नक्सली, बच्चों की फौज बना चुके हैं। बच्चे, घोटालों के माध्यम हैं। तरह -तरह के घोटाले हैं। बच्चे, बड़ों के सेट होने की गुंजाइश हैं। बच्चों की कीमत पर बड़े, बड़ी मौज में हैं।
बड़े, बच्चों के लिए गाना गाते हैं-… इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के। ऐसे में कौन बच्चा, इस सुर में अपना सुर मिलायेगा? कौन बच्चा, देश को संभालने की गारंटी देगा? बड़े, बच्चों को इस काबिल बना रहे हैं? फिर इस देश का भविष्य …? अब चलता हूं। मेरे बच्चे मेरा इंतजार कर रहे हैं।

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