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नेता का हार्स पावर

फंटूश
फंटूश
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मुझे बहुत सटीक शब्द या पंक्तियां नहीं मिल रहीं हैं। दरअसल, मैं नेता और जनता का फर्क बताना चाहता हूं। मेरा इरादा नेता को भी आदमी बताने का है। मगर …!
मैंने इसी हफ्ते दो खबरें पढ़ीं। दोनों, जनता और नेता की प्रतिनिधि-खबरें हैं। दोनों, एक-दूसरे को काटती हैं। दोनों बता देती हैं कि यह जनता है और ये वाला टाइप नेता का है।
पहली खबर इस प्रकार है। भरत बिंद ने अपनी जिंदगी भर की कमाई, जो 4 डिसमिल जमीन थी, सरकार को दान में दे दी। भरियार (चक्की, बक्सर) गांव के भरत मजदूर हैं। उनके गांव में जमीन नहीं मिलने के चलते आंगनबाड़ी केंद्र दूसरे गांव में जा रहा था। भरत को जैसे पता चला, उन्होंने अपनी जमीन दान कर दी। उनके रिश्तेदारों ने उनको गरीबी व बुढ़ौती का हवाला देते हुए खूब विरोध किया। भरत नहीं माने। वे महान भारत की महान जनता हैं। उनकी जमीन पर आंगनबाड़ी केंद्र बनना शुरू हो गया है। 
ये दूसरी वाली खबर है। अपने बगलगीर झारखंड में हार्स ट्रेडिंग के चलते राज्यसभा का चुनाव रद हो गया। भूखी जनता ने नेताओं को चुना और नेताओं ने ढेर सारे कड़कड़ाते नोट चुने। एक उम्मीदवार की भाई की गाड़ी से भी ढाई करोड़ मिले। मेरे बेटे ने बड़ी मासूमियत से पालिटिक्स में हार्स ट्रेडिंग के संदर्भ के बारे में पूछा। वह जानना चाहता था कि राजनीति, राज्यसभा चुनाव और नेता के बीच ये घोड़ा कहां से आ गया? चुनाव में घोड़ा की खरीद का क्या मतलब है?
बेशक, हार्स ट्रेडिंग अंग्रेजी का फ्रेज है। तो क्या, नेता घोड़ा होता है-मेरे बेटे की मासूमियत (सवाल) मुझे परेशान किये हुए है। मैं उसको नेता, घोड़ा और आदमी का फर्क समझाने में असमर्थ हूं। प्लीज, कोई मेरी मदद करेगा? मैंने घोड़ों को बिकते नहीं देखा है। मौका ही नहीं आया। जरूरत भी नहीं पड़ी। नेता को जरूर देखा है। इन घोड़ों और उनकी ताकत (पावर) देखिये। जनता कहां ठहरती है?
मेरी राय में नेता के लिए हार्स पावर का मतलब उसके हाजमा से है। नेता का हाजमा बड़ा दुरुस्त होता है। उसका हार्स पावर करोड़ों पचाने की ताकत रखता है। वह डकार भी नहीं लेता है। जनता का हाजमा बड़ा कमजोर होता है। बेचारी एकाध रोटी ज्यादा खा ले, तो पुदीन हरा या हाजमोला का सहारा लेना पड़ता है। जनता, एक लीवर का आदमी है। और नेता के पास …, इस पर कायदे का शोध हो सकता है।
जनता और नेता में कुछ और फर्क इस प्रकार है। जनता, आदमी है। नेता, आदमी नहीं है? जनता के लिए अंतरात्मा, अंतरात्मा होती है। नेता के लिए अंतरात्मा, आफर होती है। जब भी कुर्सी संकट में होती है, नेता को अंतरात्मा और इसकी आवाज याद आती है। अंतरात्मा की आवाज को सुनने वाले कान सिर्फ नेताओं के पास होते हैं। जनता के पास नार्मल कान होता है। नेता को निर्गुण तभी याद आता है, जब कुर्सी खतरे में होती है। नेता का भाषण होता है-आपलोग अंतरात्मा की आवाज पर वोट देंगे। जनता का जीवन ही निर्गुण है।
नेता, निहायत औपचारिक व  प्रतीकात्मक होता है। उसने राजनीति को एक फैन्सी/ फ्रेंडली मैच सी मनलगी बना रखी है। जनता के जिम्मे बस तालियां पीटने व जयकारा करने का काम है। जनता और नेताओं के आग्रह में भी बड़े फर्क हैं। नेता, पार्टी चाहे कोई हो, चुनाव लड़ेगा ही। नेता, कुर्सी के लिए समर्पित होता है। जनता की तुलना में नेताओं को अपने बाल-बच्चों की ज्यादा फिक्र होती है। नेता, तंदरुस्त हार्स पावर के चलते दुरुस्त बारगेनिंग करता है। जनता के लीवर में इतनी ताकत नहीं होती है। नेता बड़ा तार्किक होता है। वह कभी भी अपनी गलती नहीं कबूलता है। वह दूसरों के सिर ठीकरा फोडऩे का महारथी होता है। जनता, गलतियों में जीती और मर जाती है। व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, उत्कट अवसरवादिता, परिवारवाद, तिकड़म …, नेताओं के इन गुणों के आगे जनता, नहीं ठहरती है।
नेता, मिल-बांटकर खाने की तकनीक के मास्टर हैं। वे सबकुछ को बेहतरीन राजनीतिक मुलम्मा दे देते हैं। जनता के पास यह गुण नहीं है। नेता, दूसरों से अपना दिल मिलने, न मिलने के कारणों को भी देशहित से बखूबी जोड़ देते हैं। जनता का दिल-दिमाग इतना बड़ा नहीं होता है। नेता, जनता को जातीय घुट्टïी पिलाते हैं। जनता इसे  आराम से पी लेती है। नेता, अपनी सुविधा से हमेशा नये-नये चश्मे बनाता, पहनता है। जनता, जिंदगी में  एकाध बार ही अपने चश्मे का नम्बर बदल पाती है। 
नेता, हिटलर-गोबल्स खेलता है। नेता के खेल में पेट में दांत से लेकर भूत, कुत्ता, बंदर, छछूंदर, सांढ़ …, सबकुछ शामिल हो जाता है। नेता, अपनी सुविधा से शब्दावली गढ़ता है-विकास पुरुष, शिलापट्टï एक्सप्रेस, घोषणा मंत्री, सपनों के सौदागर …, जनता की शब्दावली फिक्स है-भूख, बेरोजगारी, जलालत, फरियाद का संकट।
और अंत में …
अपने कुंवारे बाबा एक बैठकी में एक पुराना संस्मरण सुना रहे थे। यह भी नेता और जनता के फर्क से ताल्लुक रखता है। तब, बाबा जनता ही थे। हां, नेतागिरी के रास्ते पर बढ़ चले थे। खैर, बाबा की सुनिये- सतहत्तर की बात है। कई कांग्रेसियों ने मुझे पकड़ लिया। एमएलए फ्लैट से कम्पाउंडर आया। मेरा एक बोतल खून ले लिया। नेताओं ने मुझको लालच दिया कि तुम्हारा नाम कल अखबार में छपेगा। हमलोग इस खून से इंदिरा गांधी को चि_ी लिखेंगे। मैंने नाम छपने की लालच में खून दे दिया। इंदिरा जी को खून से चि_ी लिखी भी गई (आधी रोटी खायेंगे, इंदिरा को वापस लायेंगे …)। लेकिन अखबार में मेरा नाम नहीं था। अखबार में उन्हीं लोगों का नाम था, जिन्होंने मुझसे बहला-फुसला कर खून लिया था। इन्होंने मेरे खून को अपना बता, बना दिया था।

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