Menu
blogid : 53 postid : 288

जब नेता चार्ज होता है …

फंटूश
फंटूश
  • 248 Posts
  • 399 Comments

अपने लालू जी यात्रा पर निकल रहे हैं। उन्होंने रूट तय कर लिया है-मोतिहारी टू गया। उनको सुनते, देखते हुए कई बातें ध्यान में आती हैं। आपसे शेयर करता हूं। एक यह कि जब नेता चार्ज होता है, तब क्या सब करता है? बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर नेता, चार्ज कब होता है? दूसरा, जब नेता फुर्सत में आता है, तब क्या -क्या करता है? लालू जी की यात्रा इन तमाम सिचुएशन की गवाही है। लालू जी फुर्सत में हैं; चार्ज हैं, इसलिए यात्रा पर निकल रहे हैं। अब तो मैंने भी मान लिया है कि यात्रा में बड़ी ताकत है। इससे ज्ञान होता है, बढ़ता है। ज्ञान की तड़प आदमी के खून में है। ज्ञान कई टाइप के होते हैं। मेरी राय में लालू जी ज्ञानवान होना चाहते हैं। इसीलिए भी यात्रा पर निकल रहे हैं। कांग्रेसी, ज्ञानवान होने में लालू जी से एक कदम आगे बढ़ चुके हैं। कांग्रेसी, अपनी यात्रा का एक टर्म पूरा कर चुके हैं। नेताओं की ज्ञान-यात्रा, जैसा कि वे खुद कहते भी हैं- रीयल इंडिया (बिहार) …, अन-टू दी लास्ट की तलाश के लिए होती है। यह यात्रा सदियों से इंटरनेशनल टाइप है। अपना देश-राज्य, अंतर्राष्टï्रीय ज्ञान-यात्रियों की मंजिल रहा है। ह्वïेनसांग, फाहियान तक आ गये। (मेरे मुन्ने का तर्क सुनिये-दोनों को अपने देश में अन-टू दी लास्ट नहीं मिला होगा।)। मुझे माफ करेंगे। थोड़ा बहक गया था। बात ज्ञान-यात्रा की हो रही थी। आद्य शंकराचार्य दिग्विजय अभियान (यात्रा) पर निकले थे। सनातन धर्म से अन-टू दी लास्ट को जोडऩे का महाअभियान। इसके अवरोधों को शास्त्रार्थ से पराभूत किया, पीठ बनाये। राहुल सांकृत्यायन तो घुमक्कड़ ही थे। भारत में घूमने से मन भरा, तो तिब्बत निकल गये। अब पता नहीं उनको अन-टू दी लास्ट मिला कि नहीं? महात्मा गांधी ने भी यात्रा व ज्ञान की महिमा पहचानी। वे इसी समझ से ट्रेन के थर्ड क्लास में घूमते रहे कि कामनर्स (इंडियन) को जानेंगे, अन -टू दी लास्ट को जीयेंगे। लालकृष्ण आडवाणी रथ पर बैठ पूरा देश घूम गये। उनका अन-टू दी लास्ट …! यात्रियों की यात्रा यहीं नहीं ठहरती है। अपनी-अपनी तलाश में बड़े-बड़े विद्वान, पत्रकार, समाजशास्त्री …, सभी आते रहे हैं। और बिहार तो खैर बेजोड़ रा-मैटेरियल है। कोई अपनी सुविधा से उसे कुछ भी बना सकता है। यहां की यात्रा नोबेल-बुकर पुरस्कार दिलवा सकती है। बिहार के बूते अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, राजनीतिशास्त्री-कुछ भी बना जा सकता है। बाहरी लोग भी अपनी बुलंदी खातिर यहां की यात्रा करते हैं। आइडियाबाज अपनी आइडिया गिराने बिहार की यात्रा करते हैं। कोई लिट्टïी-चोखा खाने आता है तो कोई चैता-कजरी-होली सुनने। तरह-तरह की यात्रा है। तरह-तरह के रथ घूमते हैं। चुनाव के दिनों में जातियां घूमती हैं। बाबू साहबों की यात्रा खत्म हुई, तो वैश्य समाज की यात्रा शुरू हो जाती है। कुछ दिन पहले अपने मोदी जी (सुशील कुमार मोदी) चेन्नई गये थे। बिहार को लैंड आफ मोक्ष बता, एक नई यात्रा की गुंजाइश परोसी थी। चंद्रशेखर (पूर्व प्रधानमंत्री) ने भारत यात्रा की। एक रोचक प्रसंग है। लौटने पर नेताजी (चंद्रशेखर) ने पत्नी (ऊदा देवी) को बताया-… देश में पानी के बड़ा संकट बा। ऊदा देवी-… रऊआ ई बात ऐहिजा (बलिया) ना बुझाईल, जे देश भर में घूम गईलीं! वाकई, सब कुछ तो दिख रहा है। लेकिन क्या यह तर्क चलेगा? मैं नहीं जानता कि लालू जी को अपनी यात्रा में कितना ज्ञान बढ़ेगा या फिर कांग्रेसियों का ज्ञान कितना बढ़ा है? एक बात जरूर है। अबकी लालू जी पश्चाताप के भाव में हैं। उन्होंने कहा है- मैं सभी जाति, बिरादरी के लोगों को साथ लेकर चलूंगा। … मैं उनकी भावनाओं को कभी ठेस नहीं पहुंचाउंगा। … मेरी सरकार के कृत्य से किसी जाति, समुदाय के लोगों को ठेस पहुंची है, तो अब ऐसा नहीं होगा। मैं इसको बर्दाश्त नहीं करूंगा। मेरी समझ से उनका यह मनोभाव, उनके ज्ञानवान होने में बड़ी मददगार होगा। मुझे इस मौके पर एक और नेता की यात्रा याद आ रही है। मैं एक बड़े नेताजी के काफिले में मटौढ़ा-दतमई (मसौढ़ी) गया था। वहां दर्जन भर लोग मारे गये थे। नेताजी, यात्रा पर थे। नई माडेल की गाडिय़ों का लंबा -चौड़ा काफिला, नारा- जयकारा, फूलमाला, बैंड बाजा, कलफदार कुरते, कार्यकत्र्ताओं-सुरक्षाकर्मियों की उन्मादी फौज, तफरीह सरीखी मस्ती, रास्ते में जुटे लोगों का मुस्कुराते हुए हाथ हिलाकर अभिवादन, मैनेजमेंट के नाम पर हजारों खर्च। गांव के थोड़ा पहले काफिला ठहरता है। मालाएं फेंक दी जातीं हैं। जयकारा पर पाबंदी। जबरिया चेहरे पर ओढ़ा गया गम। यह गांव की वह झोपड़ी है, जहां लाश पड़ी ही हुई है। कैमरों के चमकते फ्लैश, इलेक्ट्रोनिक मीडिया वालों के बीच इस बात के लिए झड़प कि ठीक से शूट नहीं करने दिया, पन्नों पर तेजी से चलती कलम, आठ-दस साल के बच्चों को ऐसे आदेश भी कि फोटो खींचने के लिए बाप की कटी गर्दन को हाथ में उठाओ; कि परिवार के बचे -खुचे लोग भी साथ में आ जायें, नेता जी का चेहरा ऐसा कि अब रोने लगेंगे, बच्चों को पुचकारा, महिलाओं को सांत्वना दी। थोड़ी ही देर बाद -गांव के स्कूल कहे जाने वाले ढहती कोठरी के चबूतरे पर लाउडस्पीकर पर उनकी आवाजें गूंजने लगतीं हैं। जोशीला भाषण-तालियों की गडग़ड़ाहट। वापसी में फिर वही मटरगश्ती। इस यात्रा में मैंने जाना था कि वाकई नेता, अभिनेता से बढ़कर होता है? मुझको यह भी ज्ञान हुआ कि क्यों, रुपये के लिए मरना जरूरी है और कैसे गांव तक सड़क बनवानी हो; बिजली- इंदिरा आवास पाना हो; तो नरसंहार का माध्यम बनिये। मगर अब क्या कोई लक्ष्मणपुर बाथे, सेनारी, बारा, नारायणपुर, शंकरबिगहा …, जाता भी है? क्यों नहीं जाता है? कांग्रेसी किसकी पोल खोल खोल रहे हैं? और लालू जी किसकी पोल खोलेंगे? उनको पंद्रह साल के राजपाट में अन-टू दी लास्ट नहीं मिला? क्यों नहीं मिला?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh