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बेचारा पति

फंटूश
फंटूश
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यह पतियों के लिए बड़ा टफ सिचुएशन है। मैं, एक पति होने के नाते बहुत घबराया हुआ हूं। मेरी समझ से ऐसे मौके पर हर पति बस कांपता है। यह पतियों की दुनिया का सर्वमान्य नियम है।
अपने लोकतंत्र ने बिहार में पतियों के नए-नए टाइप लांच किए हैं। एमपी, एसपी, पीपी …, पतियों के नए-नए नाम और चेहरे सामने आए हैं। एमपी, यानी मुखिया पति; एसपी का अर्थ है-सरपंच पति और पीपी, पार्षद पति कहलाता है। मैं देख रहा हूं कि इधर पति और पत्नी के बीच में ढेर सारा नया सिचुएशन आया है; कई-कई लोग आ रहे हैं। लोकतंत्र आया है; पंचायतें, ग्राम कचहरी, जिला परिषद और इसकी बैठकें बीच में आईं हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ऐसे पतियों को पत्नियों की इन बैठकों में न जाने की हिदायत दी है। उनके अनुसार जो पति ऐसा करेगा, उस पर कार्रवाई होगी।
मैं यह भी देख रहा हूं कि पति, पहली बार लोकतंत्र में मुद्दा बना है। यह पतियों के लिए सौभाग्य की बात है। थैंक्स टू लालू प्रसाद जी। उन्होंने बेचारे पतियों की पीड़ा समझी है। विरोध के लिए विरोध की राजनीति को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने नीतीश जी की चेतावनी का विरोध किया है। लालू जी चाहते हैं कि बैठक में पत्नी के साथ पति भी रहें।
एक पुरानी बात याद आ रही है। राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी थीं। उनको सचिवालय के चैम्बर में ज्वाइन कराने लालू प्रसाद आए थे। एक पत्रकार ने लालू जी की मौजूदगी पर आश्चर्य व्यक्त किया था-आप यहां …? असल में पत्रकार लालू जी से यह जानना चाहता था कि अब आपकी यहां क्या जरूरत है? आप क्यों और किस हैसियत से यहां आए हैं? लालू प्रसाद का जवाब था-हर पति, अपनी पत्नी का पीए होता है। राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री रहते लालू, शैडो सीएम (छाया मुख्यमंत्री) की बदनामी झेलते रहे।
मेरी राय में लालू जी अपने इसी सुखद अनुभव और मौज की जिंदगी के टिप्स को दूसरों के लिए विस्तारित करना चाहते हैं। पतियों की जमात, कम से कम लालू जी की इस समझ और इस मोर्चे पर उनकी तरफदारी के लिए हमेशा उनका अहसानमंद रहेगा।
यह बिल्कुल स्वाभाविक है। लोकतांत्रिक भारत के पति बड़े गुणवान हैं। उनको सेटिंग-गेटिंग आती है। पत्नियां यह खुराफात नहीं समझतीं हैं। पति, किसी को भी डरा सकता है। पत्नी, पति के सिवाय शायद ही किसी पर भड़कती है। पति, घूस-लूट आदि दुनियावी विधानों पर बेधड़क और बिना संकोच के बात कर सकता है। पत्नियां, संकोची होती हैं। उनको पतियों वाली वे कलाएं नहीं आती हैं, जो दुनियादारी के लिए जरूरी हैं। इसलिए भी पतियों को पत्नियों के साथ रहना जरूरी है। पति और पत्नी, दोनों मिलकर ही सहूलियत वाला लोकतंत्र चला सकते हैं। लालू जी पुराने लोकतंत्रवादी हैं, इसलिए भी पति-पत्नी एकजुटता व हरदम इक_े मौजूदगी की तरफदारी कर रहे हैं। कुछ और बातें हैं। कुछ लोगों के लिए लोकतंत्र का असली मजा पत्नी के पीछे-पीछे घूमने है। पत्नी, हमेशा पति को अपनी नजरों में रखना चाहती है। पंचायत की बैठक इसका भी रसीला मौका हो सकती है। बैठक में दोनों की मौजूदगी चेक एंड बैलेंस का सिचुएशन बनाएगी।
लालू-टिप्स के ढेर सारे फायदे हैं। पुरुष प्रधान समाज की यह परंपरागत समझ भी बखूबी कायम रहेगी कि महिलाएं (पत्नियां), पुरुषों (पतियों) के बराबर नहीं हैं? या तो वे देवी हैं या फिर दासी। यह भी कि इक्कीसवीं सदी की दौर में सभी स्तरों पर उन्हें आजमाने के बावजूद वाकई उनको अंगुली पकड़कर चलाने, आगे बढ़ाने की जरूरत है? महिला सशक्तीकरण, पंचायतों के आधे पद …, ठेंगे पर। वाह- वाह क्या समझ है?
भई, अपनी-अपनी राय है। शब्द हैं। तर्क हैं। मेरी राय में तो हर टाइप के पति का बेसिक या फिर टर्म ऑफ रेफरेंस एक ही है। पति, बस पति होता है। वह बेचारा होता है। बेचारा पति।

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