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हेडिंग तय करने में ही बहस हो गई। एक साथी ने कहा- जब नेता लिख रहे हैं, तो चालाकी शब्द की क्या जरूरत है? नेता के साथ चालाकी तो अंडरस्टूड है। मैं उनसे सहमत हूं। अब मुझको भी लगने लगा है कि धरती पर नेता के बाद चालाकी आई है। शायद नेता ने अपने हाथों से चालाकी को बड़ी चालाकी से धरती पर उतारा होगा। बरमेश्वर मुखिया को लेकर नेताओं की चालाकी सामने है। यह ढेर सारी है। मुखिया जी के जिंदा रहने से लेकर मरने तक, और इसके बाद भी। नेता ही बेहतर जानते हैं कि इस मोर्चे पर उनकी चालाकी की उम्र कितनी है; दायरा क्या है? नेता की चालाकी की खासियत होती है कि इसे कोई नहीं जान पाता है। उसकी चालाकी, बड़े-बड़े चालाक लोगों को बुद्धू बना देती है। अभी कुछ नेता बड़ी चालाकी से बरमेश्वर मुखिया के लिए आंसू बहा रहे हैं। वे बड़ी चालाकी से उत्पात को देख हैं, उसे बढ़ाने वाली बात कह-कर रहे हैं और इतनी ही चालाकी से पब्लिक को सत्य-अहिंसा का पाठ भी पढ़ा रहे हैं। नेता, उत्पाती के साथ खड़े होकर नारे लगा रहे हैं और फिर उत्पात को खारिज भी कर रहे हैं। कुछ नेता तो कुछ ज्यादा ईमानदार, अहिंसक व कर्तव्यनिष्ठ हो गए हैं। नेताओं ने बड़ी चालाकी से लोकतंत्र में उत्पात को विरोध का कारगर तरीका बनाया है। राजनीतिक व्यवस्था के सभी पक्षों को चालाकी से समझा दिया गया है कि उत्पात के बगैर आंदोलन सफल नहीं हो सकता है। उत्पात से सुर्खी मिलती है, जो मुकाम दिलाने की बड़ी ताकत होती है। विरोध का कोई भी मौका हो, दिन भर नेता और उत्पाती का कंधा मिला हुआ दिखता है और शाम में उत्पाती, उत्पाती रह जाता है और नेता, खालिस नेता। समाज का पथ प्रदर्शक, जनता का सेवक। नेता हमेशा बड़ी चालाकी से अपनी नेता वाली छवि को पेंट करने में बखूबी कामयाब रहता है। मेरी राय में यही चालाकी राजनीति के अपराधीकरण की बड़ी वजह रही है। यानी, नेता को नेता बनाने वाले अपराधियों ने जब यह देखा कि वह तो बस भागता ही फिरता है और उससे ताकत पाये हाथ तिरंगा फहराता है, पुलिस की सलामी लेता है, तो उसने (अपराधी) खुद को सीधे राजनीति में आजमाना शुरू कर दिया। समाज व व्यवस्था की कई-कई विसंगतियों के मोर्चे पर बतौर कारण नेताओं की चालाकी ही है। अभी बहुत नेता बड़ी चालाकी से बहुत पलट गए हैं। यह तय करना मुश्किल है कि रणवीर सेना या बरमेश्वर मुखिया के बारे में उनकी पिछली बातें उनकी चालाकी थीं या अभी वाली। मुझे नेताओं की चालाकी के बारे में एक नया ज्ञान यह हुआ है कि नेता कभी अपने ऊपर कुछ नहीं लेता है। वह हर स्तर पर खुद को पाक- साफ रखता है। नेता की एक अन्य चालाकी-वह बेहिचक कभी भी, कुछ भी बोल देता है और अपनी सहूलियत से इससे पलट भी जाता है। नेता, बड़ी चालाकी से रणवीर सेना के राजनीतिक संपर्क को जांचने के लिए अमीरदास आयोग बनाता है। और इसे अपनी सुविधा और चालाकी से खारिज भी कर देता है। नेता को मरने के बाद महान बनाने की चालाकी खूब आती है। नेता ने नेतागिरी के लिए किसी तय फार्मेट को नहीं रखने की चालाकी दिखाई है। नेतागिरी, देश-काल के हिसाब से बदलती रहती है। यह नेता की चालाकी ही है कि वह बारी-बारी से सबकी परीक्षा लेता है और अपने फायदे का रिजल्ट सुनाता है। नेता अपनी परीक्षा नहीं लेता है। अभी वह पुलिस-प्रशासन की परीक्षा ले रहा है। अपना रिजल्ट सुना रहा है। नेता, गोली चलाने के लिए हमेशा दूसरों के कंधे का सहारा लेता है। यह भी नेता की चालाकी है। नेता बहुत चालाकी से जेल से हाथी पर बैठकर लौटता है। नेता, जेल से जुड़ी लोक-लाज को धो देता है और खुद को समाज को दिशा देने वाला बताने में भी सफल रहता है। कौन जिम्मेदार है-नेता कि जनता? इस सवाल के ईमानदार जवाब पर ही समाज, देश, राज्य की बेहतरी टिकी है। वरना …!
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