Menu
blogid : 53 postid : 301

सीबीआइ की बस …, अब क्या?

फंटूश
फंटूश
  • 248 Posts
  • 399 Comments

यह उतनी मामूली बात नहीं है, जितनी समझी गई है। देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआइ ने रणवीर सेना सुप्रीमो बरमेश्वर मुखिया हत्याकांड की जांच के सिलसिले में बिहार सरकार से अफसर मांगे हैं। उसे फौरन दो आइपीएस और कुछ इंस्पेक्टर चाहिए। मेरी राय में यह उसका बम (बस) बोलना है।
मुझको तनिक भी आश्चर्य नहीं है। मेरी समझ से यह होना ही था। मैं तो यह मानता हूं कि पहली बार सीबीआइ ने बड़ी ईमानदारी व मजबूती से अपनी जुबान खोली है; जांच के मोर्चे पर अपनी स्थिति, अपनी हैसियत खुलेआम की है। कौन जिम्मेदार है? और जब सीबीआइ यह सब बोलेगी, तब बचता क्या है? यह सब अराजक तत्वों, व्यवस्था तोडऩे वालों, गोलमाल की मानसिकता के लिए राहत की बात नहीं है?
मुझे, यह सब देखते-सुनते हुए कुछ पुराने संदर्भ याद आ रहे हैं। ये सीबीआइ के कातर अंदाज, भाव से ताल्लुक रखते हैं। यह तब की बात है, जब चारा घोटाला में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की जेल व जमानत का चक्कर शुरू हो चुका था। सीबीआइ, राजद का बड़ा एजेंडा थी। हर स्तर पर विरोध। राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं। उनके राजपाट में कई ऐसे मामले सीबीआइ को दिए गए, जिसका शायद ही औचित्य था। एक नमूना- पटना सिटी में एक कार चालक ने लापरवाही से हवलदार हसनैन खां को ठोकर मार दी। यह मामला 6 अक्टूबर 1994 का है। अगमकुआं थाने में प्राथमिकी हुई। बिहार सरकार ने इसकी जांच सीबीआइ को सौंप दी। जांच हुई। कार इलाहाबाद के लोकेश मिश्रा की थी। उन्होंने इसकी चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। सीबीआइ को जांच में ऐसी कोई बात नहीं मिली, जो इसे साजिश बताती। खैर, बात आई-गई हो गई।
यह उदाहरण इस बात की गवाही है कि सीबीआइ का कैसे-कैसे कारणों या किन- किन मसलों के लिए उपयोग होता रहा है? खासकर बिहार में सीबीआइ जांच को लेकर गजब का आग्रह रहा है। इन्हीं स्थितियों का असर मुकदमों के बोझ के रूप में इस एजेंसी पर पड़ा है और आज की तारीख में यह बुरी तरह हांफ रही है; अब बस- अब बस बोल रही है। उससे जांच करानी हो, तो अफसर मांग रही है। सीबीआइ की विश्वसनीयता, उसकी बेहतरी, उसकी सर्वोच्चता …, जिम्मेदार कर क्या रहे हैं?
बिहार का ही उदाहरण माने, तो यह सच्चाई बिल्कुल खुले में है कि यह एजेंसी क्यों और किस कदर इस कमतर हैसियत में पहुंचाई गई है? बिहार में यह बुरी तरह फंसी रही है। बहुत मौकों पर उसे समझ में ही नहीं आता है कि वह किस मामले को पहले जांचे और किसे छोड़े? दरअसल, चारा और अलकतरा घोटाले की जांच के चक्कर में उसके जिम्मे वाले कमोबेश तमाम मामले यूं ही पड़े रहे। घोटालेबाज खुश। साक्ष्यों को मिटाने की भी गुंजाइश। एजेंसी जांच में सुस्ती का आरोप तथा इससे जुड़ी बदनामी झेलने को मजबूर रही।  न्यायालय की फटकार अलावा। एजेंसी वजहें बताती रही-जांच की व्यापकता, कार्य बोझ की अधिकता, संसाधनों का अभाव मगर किसी ने समय रहते नहीं सुनी और आज लगभग सबकुछ सामने है। सीबीआइ यूं ही बम नहीं बोली है। चारा घोटाला की दौर में तो ब्यूरो के कई अधिकारी मानसिक तनाव या इससे संबंधित बीमारियों के शिकार हुए थे। 
सबसे बड़ा संकट संसाधन का है। जांच की अनुशंसा के बाद सरकारें इस एजेंसी को इसके ही हाल पर छोड़ देती हैं। हाल के वर्षों में इस एजेंसी को जांच की जितनी जिम्मेदारियां मिलीं हैं, उस अनुपात में उसके कार्यबल में बढ़ोतरी नहीं की गई। कई मायनों में तो केंद्र और राज्य सरकार, दोनों असहयोगी मालूम पड़ते हैं।
बेशक, ऐसे मौकों की कमी नहीं है, जब सीबीआइ ने जांच लेने से इंकार कर दिया। लेकिन सच्चाई यह भी है कि दबाव बनाकर उसके पाले में मुकदमे दिए गए और स्वाभाविक तौर पर एजेंसी ने वही किया, जिसकी उम्मीद थी। कृषि विभाग में हुई नियुक्तियां, विद्यालय शिक्षकों की अवैध नियुक्ति, पोषाहार घोटाला, आवास बोर्ड घोटाला, मस्टर रौल घोटाला …, ठहरी हुई जांच के नमूनों की कमी है? गोलमाल वाली मानसिकता गजब की विस्तारित हुई है लेकिन इसकी तुलना में जांच एजेंसी के संसाधन …? कोई मेल है?
एक और बड़ी बात है। एजेंसी को जिन आरोपी दिग्गजों के निपटना है, वे व्यवस्थागत सुविधा व गुंजाइश से पूरी तरह युक्त हैं। कानूनी दांवपेंच, तकनीकी पक्ष …, ये आरोपी एक-एक स्तर का अपने फायदे में पूरा उपयोग करते हैं। सीबीआइ यूं ही नहीं हांफ रही है?
उस पर रोजमर्रा के कार्यकलापों का भी दबाव है। यह अलावा है। उसे रिश्वत लेते अधिकारी को भी गिरफ्तार करना है और पेट्रोल पंप पर भी छापा मारना है। वह राजधानी एक्सप्रेस में भोजन-नाश्ते की गुणवत्ता जांचती है। दो लाख रुपए के चीनी घोटाले को पकड़ती है, तो पासपोर्ट कार्यालय पर भी उसे छापा मारना होता है। वाकई, वह क्या-क्या करेगी? अगर हत्याकांडों की जांच को जोड़ लिया जाए तो …, बिहार सरकार से अफसर मांगकर उसने गलती की है?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh