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मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि कहां से शुरू करूं? असल में एकसाथ ढेर सारा ज्ञान हुआ है। द्वंद्व इस बात का है कि आपसे किसको पहले शेयर करूं?
ये नेता के अंदर की बात है, जो आदमी के लिए छलक कर बाहर आ गई है। नेता के अंदर की बात जानना, आदमी के लिए बड़ी बात है। नेता जो बाहर होता है, वह अंदर में बिल्कुल नहीं होता है। वह अंदर कुछ, बाहर कुछ और होता है। नेता जैसा दिखता है, वैसा होता नहीं है। नेता बोलता कुछ है, करता कुछ है। नेता जो करता है, उसको बोलता नहीं है। और जो बोलता है …!
हां तो बात, अंदर की बात की हो रही थी। बहस चली हुई है, सवाल पूछे जा रहे हैं कि कितने नेता इनर गारमेंट पहनते हैं; इसका कौन सा टाइप (अंडरवियर, लंगोट, कच्छा …) यूज करते हैं। अपना महान लोकतांत्रिक और बेहद फुर्सत वाला देश इस पर बेजोड़ शोध भी कर सकता है।
लालू प्रसाद के एक पुराने सहयोगी बता रहे थे कि लालू जी ने 1972 के बाद इनर गारमेंट पहनना छोड़ दिया है। इसके बारे में उनका अपना तर्क है। यह तार्किक भी है। हां, बेचारे इससे राजनीति को नहीं जोड़ पाए; इसे राजनीतिक मुलम्मा नहीं दे पाए। ऐसा हो भी सकता है। राजनीति में कुछ भी हो सकता है। नेता कुछ भी कर सकता है। कुछ भी बोल सकता है।
सुशील कुमार मोदी ने लालू जी को बूढ़ा बोल दिया। कोई भी भड़क जाएगा जी! लालू जी नेता हैं, बड़े नेता हैं। बताइए, उनको बूढ़ा बोल दिया। अरे, नेता कभी बूढ़ा होता है? राजनीति तो ताउम्र होती है। युवा संगठन का अध्यक्ष अड़तालीस- पचास साल का होता है। कुर्सी पर बैठकर कब्र में पांव लटकाने वाले नेताओं की अपने देश में कमी रही है?
भई, अब तक तो मैं यही जानता था कि महिलाओं की उम्र नहीं पूछी जाती है। मेरा नया ज्ञान यह है कि इस तरह की बात नेता से भी नहीं पूछनी चाहिए। नेता के लिए ऐसा बोलने की बात तो सोचनी भी नहीं है। और अगर पूछते हैं, तो नेता से कुश्ती लडऩे को तैयार भी रहिए। लालू जी ने ऐसे लोगों को गांधी मैदान में फरियाने की चुनौती दी है। उन्होंने कहा है कि लंगोट पहनकर आइए, पता चल जाएगा कि कौन बूढ़ा है?
मेरी राय में यह काम भी हो ही जाना चाहिए। अहा, क्या सीन होगा? लालू जी और मोदी जी गांधी मैदान में कुश्ती लड़ रहे हैं। और महात्मा गांधी, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह …! यह नया ज्ञान या नए सिचुएशन की भरपूर गुंजाइश होगी।
यह एक और नया ज्ञान है-नेता की चुनौती को नेता जरूर कबूलता है। दरअसल वह जानता है कि चुनौती देने वाला बस चुनौती देता है, कुछ करता नहीं है। इस चुनौती का जवाब देने के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं होती है। बस चुनौती के बदले चुनौती दे दी जाती है। एक अन्य ज्ञान-नेता की चुनौती किसी एक के लिए होती है और इसे कोई दूसरा-तीसरा-चौथा भी कबूल सकता है। देखिए। लालू जी की चुनौती वे लोग भी कबूल चुके हैं, जिन पर कभी लालू जी का विशेष कृपा रही है, जो उनके करीबी कहलाते थे। ये लोग लालू जी को बहुत नजदीक से जानते हैं। उनके हर दांव से वाकिफ हैं। लालू परेशान हो सकते हैं।
अब यह नई जानकारी जानिए। मैं, रमई राम जी (भू-राजस्व मंत्री) जी को सुन रहा था। आप भी सुनिए-लालू जी भैंस का दूध पीते हैं। इसलिए उनकी बुद्धि मोटी है। मैं गाय का दूध पीता हूं। यानी, अपने रमई बाबू की बुद्धि पतली है। शायद इसी दंभ में रमई बाबू ने लालू जी से दिमाग से लडऩे की बात कही है। बाप रे, जनाब कहां-कहां और कितनी बुद्धि अप्लाई करते हैं?
अपने श्याम रजक जी (खाद्य अपूर्ति मंत्री) नया ज्ञान दे रहे हैं-लालू जी वीर लोरिक लालू जी के अराध्य हैं। वीर लोरिक ने मितरजयी धोबी से मल्ल युद्ध की शिक्षा ली थी। दोनों के बीच गुरु और शिष्य का रिश्ता था। मुझे मल्ल युद्ध की शिक्षा पुरखों से विरासत में मिली है।
डा.भीम सिंह (ग्रामीण कार्य मंत्री) अपने को महाभारत का भीम बताने में नहीं हिचक रहे हैं। उन्होंने लालू जी से लडऩे के लिए महाभारत का पूरा सिचुएशन और सीन क्रिएट किया हुआ है-न्याय बनाम अन्याय का युद्ध। वे मैदान में लालू जी से लडऩे के पहले उनका चरण स्पर्श करेंगे और फिर उनसे लड़ेंगे। उस दौरान उनकी ईश्वर से प्रार्थना होगी-लालू जी के बुढ़ापे वाले शरीर को अधिक कष्ट न हो; चोट न लगे।
इन सब ज्ञान से एक और ज्ञान सामने आया है-नेता बड़ा फुर्सत में होता है। पुराना फंडा है-फुर्सत में ज्ञान बढ़ता है।
बहरहाल, यह सब हो क्या रहा है? अपने नेताओं को हो क्या गया है? अरे, राजनीति में अलग से कुश्ती की क्या दरकार है? राजनीति तो अपने-आप में कुश्ती है। नेता के दांव- पेंच के आगे कोई टिका है? नेता से बड़ा पहलवान कौन है?
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