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बजरंगबली और नेपाली डालडा

फंटूश
फंटूश
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मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि यह कलियुग का कौन सा स्टेज है? कोई मेरी मदद करेगा?
मुझे एक पुराना गाना इसलिए याद आ रहा है, चूंकि इसमें कलियुग को बताने वाले सिचुएशन का जिक्र है। आपको कुछ टिप्स मिल सकता है। गाना की लाइन के अनुसार भगवान राम, सीता मइया से कह रहे हैं-… ऐसा कलियुग आएगा, हंस चुगेगा दाना तिनका, कौआ मोती खाएगा।
मैं समझता हूं कि यह बहुत साफ नहीं है। बिटविन दि लाइंस है। अरे, कलियुग तो है ही। स्टेज का पता करना है। इसका पता नहीं चल रहा है। समय-काल के एक जानकार जोड़-जाड़कर बताने लगे-हम भटयुग को पार करने के करीब हैं।
चलिए, स्टेज जो भी हो, सिचुएशन यही है कि आजकल हमलोग बजरंगबली को नेपाली डालडा से बना लड्डू खिला रहे हैं। बूंदिया, बूंदिया जैसा दिखे, इसलिए उसमें कपड़ा रंगने वाला रंग मिला रहे हैं। अभी यह बात सामने आनी बाकी है कि चीनी और बेसन में कौन ज्यादा मिलावटी है? बजरंगबली को लड्डू पसंद है। उनकी पसंद को दूसरे भगवान भी खूब झेल रहे हैं। भई, मुझको माफ करेंगे। धर्म-कर्म का मामला है। पंचमेवा, पंचामृत और मोदक जैसे पवित्र देव-भोग पदार्थों और इससे जुड़ी अनगिनत धारणाओं को जीने वाले इस देश में इससे ज्यादा बोलने- लिखने क्या, सोचने की भी हिम्मत नहीं हो रही है। महामृत्युंजय जाप के आम उपयोग  का जमाना है। बजरंगबली को मिलावटी लड्डू खिलाने की हिम्मत रखने वाले ऐसे तमाम लोग इस जाप से अपना पाप काटते रहते हैं। मंदिर के बगल में बैठकर ऐसे लड्डू व मिठाई बेचना कम हिम्मत की बात है? मैं तो ऐसे लोगों की ताकत का भी फैन हूं। अरे, जिनका बजरंगबली कुछ नहीं कर पा रहे हैं, उनको भला आदमी …!
मुझको याद है पिछले साल दीपावली के दौरान कुछ छापामारी हुई थी। बड़े-बड़े मिठाईबाज पकड़े गए थे। मीठा जहर के कारोबारी। ये हम आदमियों को मिठाई के नाम पर पता नहीं क्या-क्या खिलाते रहे हैं? आदमी, आदमी को कुछ भी कर सकता है, कुछ भी बोल, खिला-पिला सकता है। आदमी खा-पी भी सकता है। यह आदमियों के आपस का मामला है। लेकिन आदमी, भगवान को …! बताइए न, यह कलियुग का कौन सा स्टेज है भाई?
मेरी राय में यह मसला खून व चरित्र में मिलावट का है। मुझको तो अक्सर यह संदेह होता है कि आदमी, असली है? नकली पुलिस, नकली सीबीआइ, नकली विजिलेंस अफसर, नकली आइएएस …, वाकई नकली आदमी कुछ भी कर सकता है। वह अपनी खातिर, अपने फायदे में वैसे आदमियों की जमात तैयार कर रहा है, जिसका खून, दिल, लीवर-किडनी, चरित्र …, सबकुछ नकली हो। वह इसमें कामयाब भी है। बिहार मिलावट के कारोबारियों की दया पर निर्भर है। इनको रोकने वाले कहां हैं? कर क्या रहे हैं?
बिहार के खाते में कई बड़े शराब कांड दर्ज हैं। होली के मौके पर जहरीली शराब से मौत शर्तिया है। शराब को तीखा बनाने के लिए उसमें नौसादर (अमोनियम क्लोराइड), नाइट्रिक एसिड तक मिला दी जाती है। पुरानी बैट्री का इस्तेमाल होता है। यूरिया का यूज आम है। महुआ वाली शराब में एल्ड्रीन तक मिलाया जाता है।
अरे, यहां तो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक को नकली मिनरल वाटर परोस दिया गया था। बेशक, नकली दवा-दारू तो तत्काल असर दिखाता है। यहां लगभग हर चीज धीमा जहर का पर्याय है। कोल्ड ड्रिंक, केक, जीरा, घी, मिर्च पाउडर, मसाला, शहद, तीसी तेल, बिस्कुट, मिक्सचर, पावरोटी, एनर्जी फूड, सौंफ, हार्लिक्स, सूजी, साबूदाना, मैगी, कुल्फी, पान मसाला, बेसन, सत्तू, तिलकुट, डिब्बा बंद खाद्य सामग्री …, आखिर मिलावट से बचा क्या है? मीठापुर जाइए। पनीर का दाम बता देगा कि यह कितना असली है? सब्जियां रंगी जाती हैं। नकली दवा का बाकायदा सिंडीकेट है। पेट्रोल-डीजल में मिलावट है। दूध में मिलावट है।
आज कितनों को ड्राप्सी याद है? यह आरजुमोना मैक्सीकाना नामक अपमिश्रण था। तो क्या सरसों तेल में मिलावट के कारोबार को सरकार ने पूरी तरह नियंत्रित कर लिया है? मिलावट रोकने के जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं? कितनों को खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम 1954 की जानकारी है? अपमिश्रण रोकने का संजाल है? यह ठीक से काम कर रहा है? जांच करने वाली प्रयोगशाला असरदार है? पर्याप्त संख्या में खाद्य निरीक्षक हैं? बिहार राज्य खाद्य एवं आपूर्ति निगम, उपभोक्ता संरक्षण कानून …, कितना असली है? कुछ ध्यान में आया कि यह कलियुग का कौन सा स्टेज है?

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