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चौबे जी का लंदन ड्रीम्स

फंटूश
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एकसाथ ढेर सारे सिचुएशन हैं। स्टार्ट लेने में दिक्कत हो रही है। खैर, इनको किश्तों में शेयर करता हूं।
अपने चौबे जी (अश्विनी कुमार चौबे, स्वास्थ्य मंत्री) को सुनने से उत्साह जोरदार उछाल मारता है। जोश, नया आकाश तलाशता है। बाहें फड़कने लगती हैं। हेल्थ प्वाइंट आफ व्यू से लीवर-किडनी टकराने लगती है। बीपी व पल्स रेट होशियारी से संभालनी पड़ती है। सपना देखते रहने की स्थापित धारणा को नई ताकत मिलती है। अब मैंने भी मान लिया है कि कुछ भी हो, बड़े सपने जरूर देखने चाहिए। सपनों का मर जाना …, इस पर कलाम साहब (डा.एपीजे अब्दुल कलाम) का लंबा-चौड़ा दर्शन है। चौबे जी की नजरों से सपने देखने का अपना रोमांच है। यह बड़ा मजेदार है।
उस दिन विधानसभा में कुछ सदस्यों को सुन रहा था। वे हकीकत से सपनों को मारने पर आमादा दिखे। चौबे जी सपनों को जिंदा करने की महान कोशिश कर रहे थे। उन्होंने कई सवालों के जवाब के लिए समय मांगा। सपनों को पूरा करने के लिए समय तो चाहिए न! अब यह शिवजी राय (विधायक) का प्राब्लम है कि उनके इलाके की सच्चाई, चौबे जी के सपने से तत्काल मेल नहीं खा रही है। उनको धीरज रखना होगा कि फेनहारा (पूर्वी चंपारण) के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर एक दिन डाक्टर जरूर आएंगे। यहां का ताला जरूर खुलेगा। राय साहब इसे सपने में भी देख सकते हैं।
मेरी राय में यह मुनासिब बात नहीं है। चौबे जी, लंदन से लंदन ड्रीम्स के साथ लौटे हैं और भाई लोग उनको फेनहरा के पीएचसी में फंसा रहे हैं। चौबे जी लंदन की सैटेलाइट एंबुलेंस सेवा को बिहार में चलाने की बात कह रहे हैं और भाई लोग उनसे पटना मेडिकल कालेज अस्पताल में जूनियर डाक्टरों की अचानक हुई हड़ताल और रिकार्ड समय में इसके खत्म होने के कारण के बारे में पूछ रहे हैं। चौबे जी यहां के प्राइमरी हेल्थ केयर को लंदन की तर्ज पर विकसित करने की बात कह रहे हैं और भाई लोग उनसे गर्दनीबाग अस्पताल का निरीक्षण करवा रहे हैं। हां, इस अस्पताल में चौबे जी अपने सपने को दरकते हुए जरूर देखे होंगे। (चौबे जी मरीज के साथ पहुंचे थे। यहां डाक्टर नहीं थे)। हालांकि इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि सपने देखना छोड़ दिया जाए। चौबे जी यही काम कर रहे हैं। क्या बुरा कर रहे हैं?
ये उनके लंदन ड्रीम्स के एकाध और पहलू हैं। जनाब फरमाते हैं-इंग्लैंड में 90 प्रतिशत मरीजों का इलाज जेनरल प्रैक्टिशनर करते हैं। दस प्रतिशत केस ही बड़े सरकारी अस्पतालों को रेफर होते हैं। अपने यहां भी होगा जी। सब ठीक हो जाएगा जी! भई, बड़ा सपना है। बड़ा टास्क है। टाइम तो लगेगा।
चौबे जी के सपनों की कद्र की जानी चाहिए। उसको को-आपरेट किया जाना चाहिए। देखिए, यह कितना सुंदर सपना है-ब्रेन ड्रेन को ब्रेन गेन में बदलना है। ठेठ में इसका अर्थ है-प्रतिभा पलायन को रोकना और प्रतिभाओं की आवक बढ़ाना। इस एंगल पर इतना बड़ा सपना कभी किसी ने देखा है? बिहार में इसकी बड़ी दरकार है।
मैं अभी कोटा (राजस्थान) गया था। ब्रेन ड्रेन की बुनियाद को नजदीक से देखा। वहां के कोचिंग सेंटर में पढऩे वाले पचास-पचपन प्रतिशत बच्चे बिहार के हैं। इनमें कितने बिहार लौटेंगे? कम्पीट करने वाले तो आने से रहे? चौबे जी इन सबका इस्तेमाल बिहार में चाहते हैं। क्या बुरा कर रहे हैं? उनके सपनों की लम्बी फेहरिश्त है। नगर विकास मंत्री बने, तो पटना को पेरिस बनाने की बात उछली; कचड़ा से बिजली बनने की लाइन पर काम हुआ; मकानों में भूकंपरोधी संयंत्र लगाने की चर्चा चली; मंत्र से जल एवं पर्यावरण को शुद्ध कर देने की बात हुई …, मैं समझता हूं कि चौबे जी के सपनों को सर्वदलीय सहयोग मिलना चाहिए।
बहरहाल, चौबे जी से एक बात कहनी है-सर जी, आपको ब्रेन गेन के बारे में बहुत चिंतित होने की जरूरत नहीं है। अपने यहां ढेर सारे ब्रेन हैं। हम तो यहां के कुछ डाक्टरों को लंदन को सप्लाई कर सकते हैं। ये दुनिया को नए-नए शोध से वाकिफ कराते रहेंगे। ये बता सकते हैं कि पुरुष भी बच्चे को जन्म दे सकते हैं। समस्तीपुर में यही नायाब ब्रेन दिखा है। डाक्टर ने पुरुषों की बच्चादानी निकाल दी है। महोदय, हम गेन क्या, दूसरों को ब्रेन सप्लाई करने की स्थिति में हैं।

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