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पालिटिक्स में कालनेमि …

फंटूश
फंटूश
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बड़ा दिलचस्प सीन है। देखिये। आजकल आदमी, भगवान के साथ राक्षस का नाम ले रहा है; उसको भी जप जा रहा है। चंड-मुंड, मधु-कैटभ, शुंभ-निशुंभ जैसी बेजोड़ जोड़ी के साथ ध्रूमलोचन, महिषासुर, बास्कल, हनु, महाहनु, अरुण, रक्तबीज, दुर्गम, चिक्षुर, उदायुध जैसे सिंगल पीस तक। भाई लोगों की पूरी सीरीज है। भले मोड नवरात्र का है, मां दुर्गा की उपासना हो रही है लेकिन जुबान पर भाई लोग आ जा रहे हैं। ये आरती में भी हैं।
दुर्गा सप्तशती में ढेर सारे भाई लोग हैं। मां दुर्गा के साथ महिषासुर की भी पूजा करनी है। तभी पूजा पूर्ण मानी जाती है। यही पूजा का विधान है। माता दी (वैष्णव देवी) तभी मनोकामना पूरी करती हैं, जब उनके बाद कालभैरव को पूजा जाता है।
खैर, उस दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सुन रहा था। मेरी राय में उन्होंने नवरात्र में भाई लोगों की याद (जाप) को हल्का टर्न दिया है। उन्होंने कहा है कि कुछ लोग कालनेमि की तरह घूम रहे हैं। … बेसब्री का वायरस फैला रहे हैं। मैं समझता हूं कि वायरस, भाई लोगों (राक्षस) का लेटेस्ट व नैनो (लघु) रूप है। बेसब्री, राक्षसी प्रवृत्ति के बहुत नजदीक है। तामसी भाव को मजबूत जमीन देने वाली मानसिक स्थिति।
बड़ी लम्बी दास्तान है। फिलहाल कालनेमि जी को जानिए। जनाब रामायणकालीन हैं। मुख्यमंत्री को सुनते हुए बचपन में पढ़े तारका, सुरसा, मारीच, खर-दूषण …, कई नाम, उनके कारनामे व कई-कई प्रसंग याद आए। मेरी पत्नी ने भी कई भाई लोगों के नाम गिनाए हैं और उसका दावा है कि ये महाभारतकाल के हैं।
मैं थोड़ा कन्फ्यूज्ड हूं। कुछ नाम को लेकर अब भी घर में बहस चल रही है। उनका कालखंड तय नहीं हो पा रहा है। भई, मैं तो यह मानता हूं कि उनका कालखंड नहीं है। वे तो भगवान के साथ हमेशा से जिंदा हैं। अब भी हैं। मैं देख रहा हूं कि चाहे चंड-मुंड, शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ हो या महिषासुर …, इनका पूरा खानदान मस्त है। चाहे कालनेमि हो या मारीच ये सुविधा, अपने फायदे व मौके के हिसाब से हर वेष मजे में धारण किए हुए हैं। आजकल ये पूरी तरह आदमी दिखते हैं। आम आदमी के यज्ञभाग को बस अपना मान पूर्णता में भोग रहे हैं। हां, एक फर्क है-अब ये सीधे आदमी का कच्चा मांस नहीं खाते हैं, बल्कि अपने कांटीनेंटल डिश के लिए आदमी को तिल-तिलकर मारते हैं। आज भी रक्तबीज का एक बूंद खून रक्तबीज जैसे बलवान को बखूबी पैदा कर रहा है। रक्तबीज मर नहीं रहा है। संपूर्णता में भक्षण की ताकत या रणनीति किसी के पास नहीं है।
मैं तो मानता हूं कि भाई लोगों ने मां दुर्गा को भी भरमा दिया है। इनमें कुछ दोनों टाइम दुर्गा सप्तशती के सभी तेरह अध्याय पढ़ रहे हैं। सोने की थाली में दीप सजा झूमकर आरती गाते हैं। पिस्ता, बादाम, काजू के सहारे अन्न छोड़े हुए हैं। पारण, वैष्णव देवी या मां विंध्यवासिनी के दरबार में करेंगे। ये बीच-बीच में महामृत्युंजय जाप कराते रहते हैं। शनिदेव, भैरव या अन्य अनिष्टïकारक देवताओं को हमेशा खुश किए रहते हैं।
मैं देख रहा हूं-इनके सहस्त्र बंधु-बांधव हैं। ये स्टेज पर भी दिखते हैं और ब्लाक आफिस में भी। इन्होंने भ्रष्टïाचार की रैंकिंग में देश को कायदे का स्थान दिलाया हुआ है। आदमी को भरमाना इनके बांए हाथ का खेल है। ये रूप बदल-बदलकर जोर-जोर से खूब बोलते हैं। आदमी इनकी बातों में आ भी जाता है। इनके लिए कायदा-कानून नहीं है।
बहरहाल, दुर्गा मां से छोटी सी प्रार्थना है-मां, आप इस चराचर जगत को धारण करने वाली हैं। चाहे ऐश्वर्य हो, क्षुधा या कोई बीमारी …, सबमें आपको ही व्याप्त बताया गया है। फिर यह कालनेमि या रक्तबीज कैसे आराम से टहल रहा है? यह तो वह सबकुछ कर रहा है, जिसकी मनाही आपने नैसर्गिक न्याय के तहत की हुई है। मां देखो, शुंभ-निशुंभ अट्टïहास कर रहे हैं। वो शायद मेरी, आदमी की मूर्खता पर हंस रहे हैं। आदमी यूं ही बकबक करते मर जाएगा। वे मौज में रहेंगे?
… और अंत में
कुछ दशक पहले का डायलाग : मेरे पास मां है।
अभी का डायलाग : मेरे पास सासु मां है।

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