Menu
blogid : 53 postid : 343

राजग-2 : भरोसा @ उम्मीद

फंटूश
फंटूश
  • 248 Posts
  • 399 Comments

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात करते, उनको सुनते हुए कई बातें ध्यान में आती हैं। मुझे उनकी यह बात बहुत अच्छी लगी कि जिस पर भरोसा होता है, उसी से उम्मीद की जाती है। भरोसे के पूरा होने का माहौल बना है। इसीलिए हमसे जनता की ढेरों अपेक्षाएं हैं।
यह भी मुनासिब है कि बिहार में कुछ भी कर दिया जाए, बहुत कम होगा। सबकुछ करना है। यहां लोगों को संतुष्ट करने लायक शायद ही कुछ हुआ। मुख्यमंत्री भी संतुष्ट नहीं हैं। आम पब्लिक की तरह कहते हैं-ये दिल मांगे मोर।
मेरी राय में यह आदमी की सहज प्रवृति है। सबकी अपनी-अपनी इच्छा है। आदमी की हैसियत के अनुसार इच्छाओं के स्तर व उसकी औकात में फर्क जरूर होता है। मगर यह बात सबकी इच्छा के साथ लागू है कि यह अनंत है। फिर, बिहार में तो बुनियादी स्तर पर ही बहुत कुछ होना बाकी है।
आजकल लोगों की इच्छाएं बुलंदी पर हैं। जनता, शासन के बदलाव की दौर से बाहर आ चुकी है। उसके सपने जमीन तलाश रहे हैं; उडऩे को पंख चाहिए। सरकार मानती है कि यह बड़ी चुनौती है। इस मोर्चे को फतह करने को वह कितना तैयार है?     
बेशक, नीतीश कुमार की मंशा पर संदेह नहीं किया जा सकता है। उनकी सरकार ने कारगर रास्ते तय किए हैं। अच्छे नतीजे सामने आए हैं, आ रहे हैं लेकिन अब भी ऐसे ढेर सारे छोटे-छोटे मोर्चे है, जिनको फतह कर बड़े मुकाम हासिल किए जा सकते हैं। वस्तुत: ये छोटी-छोटी बातें बड़े काम की हैं। छोटी- छोटी, इसलिए कि इनको पूरा करने के लिए संस्थागत व्यवस्था है, जिम्मेदार लोग हैं, सबके दायित्व निर्धारित हैं, जनता के खजाने से उन पर बड़ा खर्च होता है, उनकी मदद को कानून है, तरह-तरह की ताकत है। उनके पास सबकुछ है। मेरा, ऐसे लोगों से बस एक सवाल है-आखिर कितने लोग मुख्यमंत्री जी की इस भावना से सरोकार रखते हैं कि मनुष्य की भरपूर क्षमता के अनुसार जितना भी संभव होगा, करूंगा। इसमें कोई कोताही नहीं होगी। क्या बिहार को संभालना, संवारना कुछ लोगों की जिम्मेदारी है? अपनी जिम्मेदारी से किनारा-इससे बड़ी बेईमानी होती है?
मैं देख रहा हूं जब-तब लोकसेवक कठघरे में आ जाते हैं। राजनीतिक कार्यपालिका में बैठे कुछ लोगों पर अंगुलियां उठती हैं। क्यों? इनका क्या किया जाए? क्या उपाय है? क्या, जन अरमान के अचानक भड़के मोर्चे को जीतने के लिए यह सरकार कोई नई रणनीति तय की है? 
अदालतघाट हादसे का क्या सबक है? कौन, कितना सीखा है? ठीक है भगदड़ मची। भारी जुटान के मौके पर भीड़ को रेगुलेट करने की व्यवस्था करनी होगी। इस लाइन पर कुछ करना होगा। ऐसा होगा? मुख्यमंत्री कहते रहे हैं कि अगर राजधानी में विपदा आ जाए, तो हजारों लोग यूं ही मर जाएंगे। उनकी यह बात बेतरतीब बसे शहर और भूकंप को लेकर है। और यह भी इतनी ही सही बात है कि यहां बड़े हादसे के बाद की स्थिति को संभालने की ताकत नहीं है। फायर ब्रिगेड की व्यवस्था पर्याप्त है? सिविल डिफेंस को कोई जानता है? हम तो इस स्थिति में भी नहीं हैं कि हादसे के ऐन मौके पर यहां के बाशिंदों को अलर्ट कर सकें। पटना और पटना सिटी के इलाके में कई स्थान पर सायरन लगे हैं। अधिकांश खराब हैं। इसको बनाने में क्या लगता है? पटना मेडिकल कालेज अस्पताल क्यों जब-तब टें बोल देता है? नालंदा मेडिकल कालेज रूटीन इलाज में परेशान है। बाकी अस्पताल …? क्या यहां काम करने वालों को वेतन नहीं मिलता है?
भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टालरेंस की बात है। काम हुआ है। बिहार ने भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति को जब्त कर उसमें स्कूल खोलकर ऐतिहासिक काम किया है। यह हंसी खेल नहीं है। लेकिन यह भी देखना होगा कि सरकार को इस मामले में दुनिया भर में वाहवाही देने वाली संस्था-स्पेशल विजिलेंस यूनिट किस हाल में है? यह बड़े अरमान से शुरू हुआ था। अब पिछले एक वर्ष से यहां एक भी नया मामला दर्ज नहीं हुआ है। विजिलेंस ब्यूरो की हैसियत जीरो टालरेंस की नौबत लाने की है? अलग कैडर बनने की बात है। फिर नियुक्ति में देरी क्यों है?
मैं जानता हूं लोकायुक्त संस्थान डंपिंग यार्ड था। अब यह सशक्त हुआ है। इसकी ताकत कार्रवाई के स्तर पर कब खुले में आएगी? उसे हैसियत के अनुरूप ताकत व साधन चाहिए। जब इसे मिलना है, तो इसमें विलंब क्यों है? विशेष अदालतों की संख्या बढ़ानी जरूरी है।
मैं देख रहा हूं कि सरकार के खिलाफ मुकदमों में कमी नहीं आई है। सरकार मुकदमे हार भी रही है। अवमाननावाद के मामले हैं। बिहार विधानसभा की एक कमेटी की अनुशंसा है कि मुकदमा के जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई हो। ऐसा एक भी उदाहरण है? ऐसा करने में परेशानी क्या है?
क्यों बड़े और बुनियादी विभागों में शीर्षस्थ अधिकारी जल्दी-जल्दी बदले जाते हैं? जब तक कुछ समझे कि ट्रांसफर। ढेर सारे लोगों को पांच-छह महीनों पर एकसाथ वेतन मिलता है। हद है। ऐसे ढेर सारी बातें हैं। यह सब क्यों हो रहा है? कोई बताएगा?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh