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अफसर करते क्या हैं?

फंटूश
फंटूश
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एक तरह की कई खबरें एकसाथ आईं हैं। डीएम, अपने-अपने जिलों में आधा कटठा जमीन नहीं खोज पाए। 218 करोड़ रुपए दिल्ली लौट गए। ये आंगनबाड़ी केंद्र बनाने के लिए थे। इन रुपयों को लाने में कितनी मशक्कत हुई होगी? केंद्र बन जाते तो …! एक खबर यह भी है। इस बार का वित्तीय वर्ष चार महीने बाद खत्म हो जाएगा। 120 दिन में योजना मद की 51 प्रतिशत राशि खर्च करनी है। आठ महीने में बस 49 प्रतिशत राशि खर्च हुई है। चार महीने में 51 फीसद रुपये खर्च किए जाने हैं? यह कितना मुनासिब है? अब इस खबर को देखिए। भूमिहीन महादलित परिवारों को घर बनाने के लिए तीन-तीन डिसमिल जमीन खरीद कर देनी थी। जमीन नहीं खरीदी जा रही है। रुपये सरेंडर हो रहे हैं। क्या दिक्कत है, जब जीतन राम मांझी (मंत्री) ने कह दिया है कि जमीन खरीदने में कीमत या रुपया बाधा नहीं बनेगी? इसको भी-जाली प्रमाणपत्र पर नियुक्त 100 से अधिक शिक्षक पकड़े गए हैं। इनको हटा दिया गया है। अच्छा काम हुआ है। इनको हटना ही था। लेकिन बहाल करने वालों पर कोई कार्रवाई …? मैं देख रहा हूं आरा और गया शराब कांड के बाद अपनी पुलिस कुछ ज्यादा सक्रिय है। उसने दो दिन में कार्रवाई का रिकार्ड बनाया है। 100 से अधिक अवैध शराब भ_ी ध्वस्त की गई है। 304 लोग पकड़े गए। 43,455 लीटर अवैध शराब जब्त हुई। चार पिस्टल व 57 गोलियां बरामद की गईं। सूमो, बलेरो और पिकअप वैन जब्त किए गए हैं। बड़ी अच्छी बात है। लेकिन इससे यह भी पता चला है कि अवैध शराब का संजाल कहां-कहां तक फैला हुआ है; यह कैसे बिकता रहता है? यह काम रूटीन तरीके से नहीं हो सकता है? जो बरामदगी है, वह उत्पाद विभाग के अफसरों को कठघरे में खड़ा नहीं करती है? उन पर कार्रवाई का मामला नहीं बनता है? ऐसा अक्सर होता है। कभी बरामदगी को रखकर उनके खिलाफ कुछ हुआ है? आखिर इस बड़ी बरामदगी का मतलब क्या है? एक और खबर है। यहां के विश्वविद्यालय और अंगीभूत कालेज अपनी मर्जी से चल रहे हैं? सरकार का आदेश इनके लिए कुछ नहीं है। सरकार ने कहा था कि इन शैक्षिक संस्थानों में इंटरनल क्वालिटी इंश्योरेंस सेल गठित हो। इस आदेश के साढ़े तीन महीने गुजर चुके हैं। शायद ही कहीं सेल का गठन हुआ है। सबसे हद तो यह है कि कालेजों ने सेल के बारे में सरकार को जानकारी देना भी मुनासिब नहीं समझा है। ऐसा तब है, जबकि शिक्षा विभाग नियमित तौर पर कालेज के प्राचार्यों के साथ बैठक कर रहा है। क्या इन विश्वविद्यालय व कालेजों को चलाने वाले सरकार को बस रुपये बांटने वाला खजांची मानते हैं? यह खबर डराती है। डाक्टर, 15-16 जनवरी को काम नहीं करेंगे। हड़ताल पर रहेंगे। डाक्टरों की मानें तो वे अफसरशाही से नाखुश हैं। अफसरों के चलते उनकी वाजिब मांगें नहीं मानी जा रही हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के 5500 करोड़ रुपये में से अब तक आधा पैसा भी खर्च नहीं हुआ है। रणवीर नंदन भाजपा के नेता हैं। इनको सुनिए। ये कह रहे हैं-जहरीली शराब कांड के लिए अफसर जिम्मेदार हैं। अफसर अपने कारनामों से सरकार को बदनाम कर रहे हैं। रणवीर जी पूरा विवरण सुनाते हैं कि कैसे अफसरों के चलते बाजार में जान लेने वाली शराब पहुंच गया? रणवीर जी उस पार्टी से हैं, जो सरकार चला रही है। वही जानें कि उनकी बातें कितनी सही हैं मगर लोगों ने इसे जिम्मेदार बयान माना है। ठीक उसी तरह जैसे सुशील कुमार मोदी (उपमुख्यमंत्री) ने कहा है कि गुजरात में बस कागज पर शराबबंदी है। वहां मजे में शराब उपलब्ध है। गंगा प्रसाद भी भाजपा के वरीय नेता हैं। उनकी जुबान से खबर आई है-खाद्यान्न व्यावसायियों को लाइसेंस लेने में रिश्वत देनी पड़ रही है। ऐसी खबरों की फेहरिश्त बड़ी लम्बी है। यह सब क्या है? क्यों है? कौन जिम्मेदार है? आखिर, अफसर करते क्या हैं? मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह चुके हैं कि उनके दूसरे कार्यकाल में जनता की सरकार से अपेक्षाएं अचानक बढ़ गईं हैं। यह बिल्कुल स्वाभाविक है। जनता, जनता है। सरकार, सरकार है। खैर, क्या प्रदेश के लोकसेवक चुनौती के इस बड़े मोर्चे को फतह करने को तैयार हैं? उन्होंने अपनी कौन सी आदत बदल ली है? मैं पूछता हूं कि कितने अफसर (लोकसेवक) मुख्यमंत्री की इस भावना से ईमानदार सरोकार रखते हैं कि मनुष्य की भरपूर क्षमता के अनुसार जितना भी संभव होगा, करूंगा। इसमें कोई कोताही नहीं होगी। तो क्या बिहार को संभालना, संवारना मुख्यमंत्री और कुछ लोगों की ही जिम्मेदारी है? अपनी जिम्मेदारी से बिदकने से बड़ी बेईमानी कुछ होती है? क्यों प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल-पटना मेडिकल कालेज अस्पताल अदालतघाट हादसा के बाद की परिस्थितियों को संभालने लायक नहीं बन पाता है? अफसरों के कदम मुख्यमंत्री की रफ्तार से मिल पा रहे हैं? जनता दरबार और मुख्यमंत्री की यात्राओं के दौरान जनता के पाले से आई शिकायतों का क्या मतलब है? चलिए, छोडि़ए। अब जरा इन खबरों को भी देखिए। बिजली बोर्ड के इंजीनियरों का वेतन कम किया गया है। ग्रामीण कार्य विभाग ने 1140 ठेकेदारों को काम नहीं देने की बात तय की है। इन लोगों ने समय पर ठीक काम नहीं किया है। दर्जन भर बैंक फिर ब्लैकलिस्टेड किए गए हैं। पहले 14 बैंकों के साथ यही सलूक हुआ था। 11 मीटर से अधिक ऊंचाई की इमारतों के निर्माण को रोक दिया गया है। इनसे राहत मिलती हैं। उम्मीद जगती हैं। सख्ती बेहद जरूरी है। मेरी राय में तो यह और सख्त होनी चाहिए। इतनी कि मनमर्जी चलाने वालों की हिम्मत टूट जाए। कोई और उपाय बचा भी नहीं है।

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