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आह गणतंत्र, वाह गणतंत्र

फंटूश
फंटूश
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अब मैंने भी मान लिया है कि गणतंत्र यानी कि लोकतंत्र, वाकई हमारे महान् भारत भूमि पर पैदा हुआ है। हमने ही इस मजेदार तंत्र से दुनिया को वाकिफ कराया है। हम लगातार इस काम में जुटे हुए हैं। इस पर हमारी खानदानी रायल्टी है।
बेशक, गणतंत्र यानी कि लोकतंत्र बड़ा रसीला होता है। देखते ही मुंह में पानी आ जाता है। आदमी यानी कि गण के लिए इसमें ढेर सारी सुविधाएं हैं। यह कहें कि यह पूरी तरह रा -मैटेरियल है, जो जैसे चाहे अपने हिसाब से कुछ भी बना-पका ले, चाभ ले, घोंट जाए। यह बड़ा सुपाच्य है। कई बार तो डकार भी नहीं आती है।
मैं देख रहा हूं इसमें गण की पूर्ण आजादी की पूरी गुंजाइश है। यह दुनिया की इकलौती सुनहरी व्यवस्था है, जो गण को अपने हिसाब से आजाद होने, या फिर आजाद रहने का भरपूर मौका देती है। मेरी राय में हम भारतीयों जैसी आजादी दुनिया के किसी भी मुल्क में नहीं है। हम पूरी तरह आजाद हैं, मुकम्मल आजाद। तरह-तरह की आजादी है। सड़क पर कहीं भी, कभी भी फ्रेश होने से लेकर खाकी वर्दी में रंगदारी मांगने तक की आजादी। एक-एक गण, एक-एक तंत्र खूब आजाद है। 
हमने अड़तालीस घंटे पहले अपने गणतंत्र ने 63 साल पूरे किये हैं। आजादी की इतनी लम्बी उम्र, और उसमें भी लगातार डेवलपमेंट आपने कहीं देखी है? भई, मैंने तो नहीं देखी है। सबके अपने-अपने गण हैं, अपने-अपने तंत्र हैं।
मैंने अपने गणतंत्र के 64 वें सेलीब्रेशन के बमुश्किल हफ्ते भर के दौरान कई तरह के गण देखे हैं। उन सबकी अपनी-अपनी आजादी देखी है। आपसे शेयर करता हूं।
मैंने राहुल बाबा की जुबान पर दिग्गज कांग्रेसियों को रोते देखा है। अब आप तय करो कि ये किस तरह के आंसू हैं? करो भई, आखिर आप भी आजाद हो। 26 जनवरी को एक गण ने मुर्गा पार्टी दी। वाकई, यह डिफरेंट टाइप दिखने की आजादी है। राष्टï्रीय पर्व के दिन मुर्गा पार्टी …, यह किस कैटोगरी की आजादी है?
अबकी गणतंत्र दिवस के दौरान मैंने पहली बार जाना कि हंसमुख चेहरे वाले नितिन गडकरी साब को धमकी देना भी आता है। उन्होंने आयकर विभाग को खुलेआम धमकाया है कि हमारी सरकार बनने दो, बता दूंगा। तब सोनिया गांधी और पी.चिदम्बरम बचाने नहीं आयेंगे। अब भाजपाइयों को भी लगने लगा है कि गणतंत्र में सीबीआइ के बाद आयकर विभाग भी केंद्र सरकार की हथियार बना दी गई है, जिसके जरिए राजनीतिक दुश्मनी साधी जाती है। यही बात राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद भी चारा घोटाला के दौरान कहा करते थे। तब राजग की सरकार थी। लालू की किसी ने नहीं सुनी। अपने यहां बस बोलने की आजादी है, सुनने की नहीं है।
सभी बस बोल रहे हैं। अपना गणतांत्रिक देश बोलता रह गया और अमेरिका ने हेडली को अपने हिसाब से सजा दे दी। अभी अपने शिंदे साब ने देश को हिन्दू आतंकवाद से वाकिफ कराया है। उनके और उनकी सरकार के खिलाफ भाजपाइयों ने देश भर में अपना आंदोलन चलाया है। दोनों अपने-अपने ढंग से अपनी-अपनी आजादी दिखा रहे हैं। 
आजकल बिहार के सरकारी स्कूलों मेें बवाल मचा हुआ है। यहां पोशाक व साइकिल के अलावा स्कालरशिप के पैसे बंट रहे हैं। सरकार का नियम है कि जिसकी स्कूल में उपस्थिति 75 प्रतिशत या इससे अधिक की होगी, उसी को पैसे मिलेंगे। गण लोगों ने इसे अपनी आजादी पर हमला माना हुआ है। वे इसका गुस्सा स्कूल के कुर्सी-बेंच पर उतार रहे हैं। गणतंत्र की खासियत है कि कहीं का गुस्सा कहीं और उतरता है। यह अपने किस्म की आजादी है।
अभी एक डीआईजी साब शराब कारोबारी से दस करोड़ रंगदारी मांगने के चक्कर में धरे गए हैं। यह एक पुलिस वाले की आजादी है। नेता, सिर्फ वायदा करने को आजाद हैं। जयपुर में जुटे विद्वत गणों में से एक ने भ्रष्टïाचार की बाकायदा जाति बता दी।
खैर, मुझे इस बार के गणतंत्र में घरों से ज्यादा एसएमएस में तिरंगा दिखा है। मैं देख रहा हूं कुछ गणों के लिए गणतंत्र के जलसे का उल्लास जलेबी के लिए कतार में खड़ा होने व मजेदार छुट्टïी तक सीमित हो रहा है।
मैं गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर एक बैठकी का हिस्सेदार था। देश को सुधारने की बहस इस मुकाम तक नहीं पहुंची कि आखिर यह काम करेगा कौन? सबने बस अपने-अपने हिस्से की समस्याएं गिनाईं और सुधार की अपेक्षा सामने वाले से की। यह अपने तरह की आजादी है। सबसे मजेदार कि भाई लोगों ने यह भी मान लिया कि वे देश की दशा को दुरुस्त करने की नैतिक ताकत नहीं रखते हैं। लेकिन वे बहस करने और अपने संकट के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराने को जरूर आजाद हैं। जस प्रजा, तस राजा का सिचुएशन है। सबको बस अपने अधिकार याद हैं, कर्तव्य नहीं।
अपने गणतंत्र की उम्र के साथ आफ दि रिकार्ड और आन दि रिकार्ड का चलन कुछ ज्यादा बढ़ा है। एक ही आदमी दोनों तरह के रिकार्ड को बजाने के लिए आजाद है। वह एक ही समय में दो अलग-अलग सुर मजे में निकालता है। यह आजादी कुछ ज्यादा दिलचस्प है। यह कितने दिन टिकेगी?

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