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आदमी और भैंस …

फंटूश
फंटूश
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एकसाथ कई खबरें आईं हैं। सभी बड़ी दिलचस्प हैं। एक से बढ़कर एक। मैं, महान भारत का नागरिक होने के नाते स्टार्टिंग प्राब्लम फेस कर रहा हूं। दरअसल, अपने देश की तरह मैं भी किन्हीं मसलों का लायक क्रम या प्राथमिकता तय करने में अक्सर कन्फ्यूज करता हूं। खैर, मैं बारी-बारी से इनको आपसे शेयर करता हूं।
पहली खबर गया की है। वहां के लोगों ने एक भैंस को अपना मंत्री मान लिया। तीन- चार संपेरे लाए गए। वे भैंस माने गए मंत्री जी के सामने बीन बजाने लगे। मेरी राय में यह विरोध की गांधीगिरी का लेटेस्ट वर्जन है। अभी तक यह जानकारी नहीं हुई है कि इस बीन-वादन का मंत्री जी पर असर हुआ है कि नहीं? गया के लोगों ने यही मानते हुए बीन बजवायी है कि यह बिल्कुल बेअसर रहेगा। कुछ भी कर लो, मंत्री जी नहीं मानने वाले, सुधरने वाले, कुछ सुनने-करने वाले। गया में यह पुरानी कहावत साकार हुई है कि भैंस के आगे बीन बजाए भैंस रहे पगुराए।
चलिए, सबने अपना-अपना काम किया। भैंस, पगुराता यानी कि अपना मुंह चलाता रहा, संपेरे बीन बजाते रहे और मंत्री जी ….? हां, बड़ी खबर यह बनी है कि गया के बाशिंदे दिमाग से काम लेते हैं। उन्होंने अपने दिमाग के बारे में स्थापित धारणा को पूरी तरह खारिज कर दिया है। गया के बारे में गंवई कहावत है-बिना पानी का नदी, बिना पेड़ का पहाड़ और …? गया वाले प्लीज नाराज न होंगे। आपका यह स्थल तो बुद्ध को बुद्धत्व प्रदान करने वाला है। मैं बस मजाक कर रहा था।
अब इस दूसरी खबर को देखिए। इसमें गया, पटना तक विस्तारित होता दिख रहा है। मंत्री जी सिटीजन चार्टर लागू कर रहे हैं। उनके इस एलान के अड़तालीस घंटे बाद ही यह खबर आई है कि पटना शहर के सैदपुर मुहल्ले की नहर में सरसों की खेती हो रही है।
बड़ा कंट्रास्ट है भाई। भैंस, सरसों को चरने यहां भी आ सकती है। अब मुझे यह तो पता नहीं कि यहां बीन बजेगा कि नहीं? यह खबर इस बात की गवाह है कि सिटीजन चार्टर की असलियत क्या है? जिन मंत्री जी का विभाग शहर में साफ-सफाई का मामूली प्रबंध नहीं कर सकता है, वह सिटीजन चार्टर लागूकरने की बात कह रहा है। राजधानी की दुरुस्त व्यवस्था के बारे में पटना हाईकोर्ट तक के आदेश शायद ही मायने रखते हैं। इस शहर की अपनी लीला है। हाईकोर्ट के वकीलों को ठीक से याद नहीं होगा कि उन्होंने कितनी मर्तबा साफ-सफाई के लिए कोर्ट से आदेश दिलवाया है? सैदपुर नाले की सफाई नहीं हो पाई थी। सिल्ट जमा होता गया। किसी भाई ने इसमें सरसों के बीज छींट दिए। फसल लहलहा गई। मंत्री जी इसे अपने विभाग की संपत्ति मान सकते हैं। वे कुछ और काम भी कर सकते हैं। उनके दायरे वाले इलाके में ढेर सारे तालाब हैं। राजधानी पटना के एक-एक मुहल्ले में कई-कई तालाब हैं। इनका सदुपयोग किया जा सकता है। यहां बड़ी मछलियां तो नहीं मगर उनके बीज जरूर पैदा हो सकते हैं। इससे आमदनी बढ़ेगी। इंद्रधनुषी क्रांति में उनका विभाग भी अपना बखूबी योगदान करेगा। अब मैंने भी मान लिया है कि आदमी और भैंस में बहुत फर्क नहीं है। आदमी और भैंस, दोनों सरसों खाते हैं। बस तरीके अलग हैं।
ये वाली खबर तो और भी बेजोड़ है। मुझे लगता है कि अब मंच, नेता का लोड नहीं ले पा रहा है। कुछ ही दिन के अंतराल में लालू प्रसाद और रामविलास पासवान, दोनों के मंच धड़ाम हो गए। राजनीतिक गलियारे के कुछ खास लोग इस बात पर शोध में जुटे हैं कि राजनीति में मंच टूटना अपशकुन है या …? जब नतीजा आएगा, तब आएगा फिलहाल यह बात तो साबित है ही कि नेता की लोड से देश उलार है। मंच, नेता का लोड नहीं ले पा रहा है। जनता की तुलना में नेताओं की संख्या कुछ ज्यादा बढ़ी हुई है।
यह खबर तो देखिए। कमोबेश वही लोग कुलपति बन गए, जो हटाए गए थे। पटना हाईकोर्ट से उनको हटाए जाने के बाद से उनकी दोबारा नियुक्ति तक …, क्या-क्या न हुआ? किसी से कुछ छुपा है?  फिर ऐसा कैसे हो गया? अब क्या होगा? भई, मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है। आपको आ रहा है?

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