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नेता की कसम और परेशानी

फंटूश
फंटूश
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मैं, नागमणि (पूर्व मंत्री) को सुन रहा था। आप भी सुनिए-मैं अब 59 साल का हो गया हूं। राकांपा मेरा आखिरी दल है। मैं इसको छोड़कर अब कहीं नहीं जाऊंगा। यहीं जीना-मरना होगा। मैं दल-बदलू नहीं हूं। मैंने अपने स्वार्थ में कभी पार्टी नहीं बदली। मैं हमेशा जनहित में दल छोडऩे को मजबूर हुआ हूं।
नागमणि को सुनते हुए कई बातें ध्यान में आती हैं। वस्तुत: यह नेता का ज्ञान है। पब्लिक को भी काम आ सकता है, इसलिए आपसे शेयर करता हूं। नेता को 59 साल के बाद उछलकूद बंद कर देना चाहिए। मैं नहीं जानता कि नागमणि जी के इस ज्ञान के पीछे कौन सा ज्ञान है मगर मुझको लगता है कि इस उम्र के बाद नेता का शरीर उसकी उछलकूद में बहुत मर्यादित ढंग से साथ नहीं देता होगा। मैं यह भी समझता हूं कि इस उम्र या इसके बाद नेता की उछलकूद का बहुत स्कोप भी नहीं रहता होगा।
चलिए, जो भी हो नागमणि ने राकांपा में ही रहने की कसम खा ली है। उनको धन्यवाद। उन्होंने उछलकूद और इससे जुड़े कन्फ्यूजन के एक लम्बे दौर को विराम दिया है। कुछ दिन पहले उनके राकांपा में जाने की चर्चा चल रही थी। मेरे एक सहयोगी ने बड़ी उत्सुकता से पूछा कि आजकल वे हैं कहां? कुछ पार्टियों के नाम सामने आए। एकाध तो बाजी लगाने को तैयार हो गया। खोजबीन के आखिर में स्पष्ट हुआ कि नहीं-नहीं अभी वे कांग्रेस में ही हैं। उनके बाद उनकी पत्नी (सुचित्रा सिन्हा) के बारे में इस लाइन पर बात हो रही है।
उनकी बातों से एक और ज्ञान होता है। यह कुछ इस प्रकार है। 59 साल के बाद नेता को जनहित से बहुत मतलब नहीं होता है। इससे पहले वह जनहित का अपना कोटा पूरा कर चुका होता है। बेचारा, जनता के लिए लगातार इतने काम करता है कि …? मेरी राय में शायद इसीलिए नागमणि ने राकांपा को अपना आखिरी पड़ाव बनाया है। उनके यहीं जीने- मरने के दावे से यह बात परिलक्षित होती है कि अब उनके सामने जनहित का ऐसा कोई मौका नहीं आएगा, जो उनको राकांपा को छोड़ देने पर मजबूर करेगा। हम नागमणि के दल-बदल के हवाले इस बात पर लम्बी बहस कर सकते हैं कि उन्होंने आज तक जनहित से कौन-कौन से काम किए हैं; उनके हर बार दल बदलने से कैसे यहां के लोगों के चेहरे पर मुस्कान फैलती ही गई है? खैर, उनकी कसम को सलाम। कामना की जानी चाहिए कि यह पूरी होगी।
मैं यह भी देख रहा हूं कि अपना नेता जनहित में कसम खाने और तोडऩे भर का काम नहीं करता है, वह जनहित में परेशान भी होता है। उसकी परेशानी बिल्कुल उसकी कसम की तरह है। नागमणि जी का ज्ञान है कि नेता, जनहित में कसम तोड़ता है और रामविलास पासवान के ज्ञान के अनुसार नेता, जनहित में परेशान होता है। कुछ नेताओं की कुछ परेशानियां  देखिए। सबकुछ साफ हो जाएगा। नेता, अपने को नहीं देखता है। वह दूसरे नेता को देखने में परेशान रहता है। और उसकी यह दृष्टि जनहित वाली होती है। नेता को अपनी, अपनी पार्टी से अधिक चिंता या परेशानी दूसरी पार्टी को लेकर होती है। जनहित में परेशानी की एक स्थिति होती है। नेता जब फुर्सत में होता है, तब ऐसा होता है। देखिए। रामविलास पासवान को अपनी लोजपा, फिर राजद से अपने गठबंधन से ज्यादा चिंता (परेशानी) जदयू और भाजपा के संबंध को लेकर है। नेता, दूसरे नेता का मन जान लेने और उनको सलाह देने में खूब परेशान होता है। रामविलास आजकल लगातार कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा और कांग्रेस से रिश्तों को लेकर भारी द्वंद्व में हैं। रामविलास की नजरें नीतीश कुमार के राजनीतिक कार्यकलाप के उन तमाम तमाम पहलुओं को देख ले रहीं हैं, जितना खुद नीतीश भी नहीं देख पाते होंगे।
इसी तरह की परेशानी तारिक अनवर की भी है। जनाब जानते हैं कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट करने से भाजपा को फायदा नहीं होना है। और उनकी सलाह है कि ऐसे में नीतीश, भाजपा के साथ अपनी स्थिति स्पष्ट करें।
नेता की एक बड़ी परेशानी दूसरे नेता से अपनी सलाह मनवाने की है। नेता चाहता है कि दूसरे नेता उसकी सलाह मान लें। यह सलाह सीन और सिचुएशन के अनुसार बदलती रहती है।

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