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राज्यपाल, यही होता है?

फंटूश
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मेरी राय में अपने महान भारत के संविधान के बारे में बच्चों का ज्ञान और बढऩे वाला है। वे राज्यपाल के बारे में संवैधानिक व्यवस्था को संशोधित कर पढ़ सकते हैं-राज्यपाल केंद्र की दलीय सरकार का प्रतिनिधि होता है। उसे यह पद राजनीतिक पुनर्वास के रूप में मिलता है। मंत्रिमंडल या ऐसी अन्य उचित जगह नहीं मिलने पर ये लोग इस पद पर आते हैं। और ये लोग …!

मैं देख रहा हूं कि बच्चों को यह सब साबित करने के उदाहरणों की कमी नहीं है। अपना बिहार भी सबकुछ बता देने लायक हो गया है। बच्चे देख रहे हैं कि राज्यपाल देबानंद कुंवर जा रहे हैं। डीवाई पाटिल आ रहे हैं। बच्चे, इस आवाजाही की वजहों से वाकिफ हो रहे हैं।

बच्चों ने देखा है कि पिछले पखवारे विधानसभा में उस पार्टी के लोगों ने देबानंद कुंवर को डर्टी-डर्टी बोला, जिसकी सरकार ने उनकी (राज्यपाल) नियुक्ति की है। बच्चों ने मोदी जी (सुशील कुमार मोदी, उपमुख्यमंत्री) को सुना है-देबानंद कुंवर पर जांच बैठनी चाहिए। बिहार में इनको करीब चार साल तक रखने के लिए कांग्रेस पार्टी को पब्लिक से माफी मांगनी चाहिए। बच्चों ने अखबारों में पढ़ा है, टीवी में देखा है-पटना हाईकोर्ट ने कुलपति व प्रतिकुलपतियों की नियुक्ति रद कर दी है। इसलिए कि नियुक्ति में राज्य सरकार से सलाह नहीं ली गई। उस दिन विधानसभा में शिक्षा मंत्री पीके शाही बोल रहे थे, बच्चे सुन रहे थे-जब दोबारा नियुक्ति हुई, तो फिर प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ। अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है। बच्चों ने इस मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विवशता खूब देखी है। अब भी कुछ देखने को बचा है?

खैर, बच्चे देखते रहे हैं कि केंद्र में सरकार बदलते राज्यपाल हटा दिए जाते हैं। बच्चों ने यह भी सुना है-हरियाणा के राज्यपाल बाबू परमानंद ने भाजपा के पक्ष में वोट करने की अपील की थी, अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाने की बात कही थी। बच्चों ने लालू प्रसाद को सुना है-भाजपा ने राज्यपाल पद का भगवाकरण कर दिया।

बच्चों ने राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी से लेकर विनोद चंद्र पांडेय तक से राज्य सरकार की लड़ाई के बारे में पढ़ा है। बच्चों ने पढ़ा है-सुंदर सिंह भंडारी (राज्यपाल) के जमाने में सत्तारूढ़ राजद, राजभवन को राजग का अघोषित अड्डïा बताता था। भारी फजीहत के बाद भंडारी जी को वापस लौटना पड़ा। राजद की नेतृत्वकारी कतार राज्यपाल विनोद चंद्र पांडेय को शारीरिक व मानसिक रूप से लाचार बताकर हटाने की मांग करती थी। राजभवन की इफ्तार पार्टी में लालू प्रसाद ने सबके सामने कह दिया था कि रिटायर या ज्यादा उम्र वालों को की पोस्ट नहीं देना चाहिए। बच्चों ने यह भी पढ़ा है कि तब राज्यपाल के को मनुवादी और शोषितों का शोषक बताया गया था। मिथिलेश कुमार, राज्यपाल के सचिव थे। उस दौरान भी कुलपति-प्रति कुलपतियों की नियुक्ति में जातीयता और रिश्वतखोरी के आरोप लगे थे। बच्चों ने पढ़ते हुए जाना है-राबड़ी सरकार ने कुमार का वेतन रोक दिया था। मंत्री, उनका आदेश नहीं मानते थे। बच्चों ने पढ़ा है-भंडारी जी के समय से राजभवन और सरकार के बीच अधिकारों को लेकर रस्साकसी बुलंदी पर थी। उनके कार्यकाल में राष्टï्रपति शासन लागू हुआ। राजपाट गंवाए राजद के लोगों ने भारी हंगामा किया; केंद्र सरकार व भंडारी के पुतले को पीटा; उसे तलवार से काटा जाना; स्वाहा कार्यक्रम …! बच्चों ने आहुति के ये शब्द जाने हैं-लंगड़ा भंडारी स्वाहा; भ्रष्टï भंडारी स्वाहा; भंडारी हाय-हाय। सत्ताधारी राजद ने बिहार विधान मंडल से राज्यपाल को वापस बुलाने का प्रस्ताव पारित करा दिया। लालू प्रसाद तब कहते थे कि जब राजग वोट में हार गया तो राजभवन को माध्यम बना अपना शासन चला रहा है। ये सब क्या है? क्यों है? कौन जिम्मेदार है?

मैं तो यह भी देख रहा हूं-बिहार में बड़े भी यह फर्क नहीं कर पाए हैं कि राजभवन तानाशाह है या उसने राज्य सरकार के एकछत्र राज भोगने के मिजाज को तोड़ा है? यह भी कि सरकार और राजभवन में कौन ज्यादा कानून पसंद है या फिर दोनों अपनी सुविधाओं से अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में मनमर्जी चलाते हैं? मगर देबानंद कुंवर का संदर्भ यहीं तक नहीं है। मैं गलत हूं? आपकी क्या राय है?

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