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यह बस चौबीस घंटा पहले का सीन है। गंगा ब्रिज ओपी (हाजीपुर) के बिल्कुल पास करीब एक हजार लोग लूटपाट कर रहे हैं। पुलिस, सूबे की लाइफलाइन (महात्मा गांधी सेतु) की ट्रैफिक नार्मल कर रही है। यहां एक टैंकर पलटा हुआ है। पब्लिक उससे सरसों तेल लूट रही है। कुछ के हाथ में कटोरा है, कई अपनी बाल्टी भर लेना चाहते हैं। अधिक लूटने की कोशिश में कुछ लोग आपस में मारपीट कर रहे हैं। बहुत सारे लोग तेल से भींग गए हैं। पटना से हाजीपुर जाने के दौरान गंगा नदी पार करते इस टैंकर से तेल गिरना शुरू हो गया था।
मेरी राय में यह आदमी की मुफ्तखोरी का चरम भाव है। आदमी का यह मिजाज हर स्तर पर खुलेआम है। बिजली चोरी, बेटिकट यात्रा, सरकारी माल पर मौज से लेकर आदमी इस कहावत को बखूबी चरितार्थ कर रहा है कि लोभी के देश में ठग भूखा नहीं मरता है।
उस दिन मोदी जी (सुशील कुमार मोदी, उपमुख्यमंत्री ) को सुन रहा था। वे नान बैंकिंग कंपनियों के मसले पर अपने अफसरों के साथ बैठे थे। मीटिंग में यह बात सामने आई कि अब भी ढेर सारे लोग इन कंपनियों से ठगे जा रहे हैं। मोदी जी क्या कर लेंगे? अरे, कोई भी क्या खाकर इन आदमियों का क्या कर लेगा? जब आदमी ही …!
अभी पटना हाईकोर्ट ने आदमी को आदमी होने की सलाह दी है। कोर्ट की यह सलाह साफ-सफाई को लेकर है। कोर्ट ने कहा है कि आदमी इस बारे में अपना मिजाज बदले। वह सबकुछ सरकार के भरोसे नहीं छोड़े। अपना भी दायित्व समझे। आदमी, अपनी इस प्रवृति से मुक्त हो कि घर का कचरा सड़क पर फेंक देने से अपना घर साफ हो जाता है।
आदमी मानेगा? सुधर जाएगा? आदमी, आदमी हो पाएगा? क्या आदमी ने अपने को आदमी बनाने का जिम्मा किसी और को सौंप रखा है? आदमी को अपना कर्तव्य याद है? वह अपने अधिकार से आगे बढ़ता है?
आदमी ने तो गंगा मईया को पूजकर उसको गंदा करने का अधिकार पाया हुआ है। आदमी पहले गंगा को पूजता है, फिर उसे गंदा करता है और फिर पूजता है।
आदमी की राजधानी में आदमी की ट्रैफिक देख लीजिए। राजधानी में बसने वाला आदमी सभ्य, सुसंस्कृत माना है। यहां का आदमी सभ्यता की चलताऊ परिभाषा में पूरी तरह फिट है। बड़ी सी गाड़ी, बड़ा सा फ्लैट, असरदार पालिसी, रसूख लेकिन दिमाग, मिजाज …? डाकबंगला चौराहा पर लोकनायक भवन के पास बड़ी गाडिय़ां खड़ी रहती हैं। गाड़ी का आकार-प्रकार उसकी मालिक की हैसियत का गवाह होता है। पुलिस वाले डर जाते हैं। मनु महाराज (सीनियर एसपी) एक दिन कुछ मोटरसाइकिल व गाडिय़ां उठवाते हैं और आदमी के शहर में यह संदेश फैलता है कि राजधानी में ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त हो गई। बिहार रेजीमेंटल सेंटर (दानापुर) में गाडिय़ों की स्पीड देखिए। यहां आदमी का दूसरा रूप नजर आता है। यह बताता है कि आदमी डंडा से डरता है। डंडा से ही मानता है। यही आदमी है? सेना के इस इलाके में गाडिय़ों की स्पीड पंद्रह-बीस किलोमीटर से अधिक नहीं होती है। मगर घर से दफ्तर तक पहुंचने में सड़क पर आदमी के कई-कई रूप नजर आते हैं।
आदमी अपने घर में जीरो वाट का बल्ब जलने पर भड़क जाता है। और अपने मुहल्ले की स्ट्रीट लाइट को दिन में जलते हुए देखकर मजे में सरकार को बस कोसता है। अगर कायदे से मापी की जाए, तो राजधानी की आधी सड़क पर आदमी का अतिक्रमण है। आदमी नाला पर घर बना लेता है। वाकई आदमी, आदमी है। वह पैदा होते ही अपने बच्चे को डाक्टर-इंजीनियर बना देना चाहता है। आदमी से सरकार बनती है। आदमी, जस प्रजा तस राजा का सिचुएशन बनाए हुए है। आदमी का सरकार क्या कर लेगी? कोर्ट क्या लेगा?
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