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रसगुल्ला और गोली

फंटूश
फंटूश
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अब मैंने भी मान लिया है कि अपने महान बिहार में ढेर सारे वीर जवान हैं। ये तरह-तरह के हैं। इनकी वीरता निराली है। अद्भुत है। खानदानी है। उनके अदम्य-अतुल्य साहस, और खासकर गोली चलाने के जज्बे को बंदा सलाम करता है।

मैं देख रहा हूं-उनकी वीरता, प्रेम रस और वीर रस का बेजोड़ काकटेल है। इसकी टाइमिंग है। सिचुएशन है। आजकल लगन (शादी का मौसम) में यह बुलंदी पर है।

मेरी राय में इन वीरों ने रसगुल्ला और गोली में गजब की समानता बनाई है। ये अपने बाहुबल से कुछ भी कर सकते हैं, कर रहे हैं। खैर, फिलहाल रसगुल्ला और गोली में समानता देखिए। आदमी, दोनों को खाता है। आदमी, दोनों को बनाता है। इन दोनों को आदमी, आदमी को खिलाता है। लगन में यह समानता कुछ इस तरह विस्तारित है-पहले आदमी, आदमी को रसगुल्ला खिलाता है। फिर गोली खिलाता है। असल में लगन में अपना बिहारी समाज अपने असली रंग में है। वीरों के साथ ये रंग बदल रहे हैं। फैल रहे हैं। जात, जब दारू में डूबती है और सामने लौंडा बदनाम हुआ दिखता है, तो वीरों की राइफल से गोली छूट ही जाती है।

मैंने इस वीरता में शहीद हुए लोगों की गिनती की है। सिर्फ इस हफ्ते पांच लोग मारे गए हैं। कई घायल हुए हैं। ये सभी बारात में गोली चलने या मारपीट में मारे गए हैं। कुछ भोजन-नाश्ते के बाद मारे गए, तो कुछ नाच या आर्केस्ट्रा देखते। छितरौली (मनेर) में नाच देखने के दौरान चली गोली में दिलीप कुमार सिंह की मौत हो गई। दूल्हा, उसका पूरा परिवार भाग गया। औरंगपुर (धनरूआ) आई बारात में कृष्णानंद प्रसाद मारे गए। संदलपुर (सिवान) में राजेश चौहान को चाकू से गोदकर मार डाला गया। गभीरार (सिवान) गांव की आर्केस्ट्रा ने राहुल कुमार की जान ले ली। ओमप्रकाश पासवान खुशनसीब थे, जो घायल होकर रह गए। वे नौबतपुर के सावरचक में चली गोली के शिकार हुए। चनकप (औरंगाबाद) गांव में बारातियों से मारपीट हो गई। दूल्हे के साथ बाराती भाग चले। यह जयमाल के बाद हुआ। दीदारगंज (पटना सिटी) के हीरानंद गांव में गोली लगने से शिवजी मेहता और राजू घायल हुए।

दरअसल, प्रदेश में ढेर सारी बंदूकें हैं। ऐसे ढेर सारे गांव हैं, जहां पेट काटकर बंदूक खरीदना कभी मजबूरी थी। बंदूकें अपनी सुरक्षा के लिए थीं। आजकल शांति है। इसीलिए ये बंदूकें इस्तेमाल में नहीं हैं। अब इनसे बारात में बेधड़क गोलियां चल रहीं हैं।

जहां तक मैं समझता हूं यहां के लोगों में गजब की ऐंठ है। उन पर  सामने वाले से बड़ा दिखने का जज्बा हमेशा सवार रहता है। इसके लिए वीर जवान कुछ भी कर गुजरते हैं। असल में फ्रस्ट्रेटेड मिजाज अपनी कुंठा निकालने का माकूल वक्त तलाशते रहता है, जो लगन में मिल जाता है। यह ठीक उसी तरह का मिजाज है, जैसे बकसरिया टोला (सुल्तानगंज, पटना सिटी) में पथरू महतो, सुधांशु को खैनी नहीं देने पर गोली मार देता है।

अब जरा इस रंग को देखिए! डेढ़-दो बजे रात में मुहल्ले में गूंजता है-हैलो चेक, 1, 2, 3 …, 3, 2, 1। कोई भी कांप जाएगा जी। वीर जवानों के साथ बूढ़े भांगड़ा या नागिन डांस के हिस्सेदार होते हैं। तब लगता है वाकई, यह देश वीर जवानों का है। बुढ़ऊ भी जवान हो जाते हैं। और यह कि आज मेरे यार की शादी है, लगता है पूरे संसार की शादी है …, बेशक पूरा इलाका नहीं चाहते हुए भी बारात में शामिल हो जाता है। जगकर, गुस्सा कर, बचाव का कोई उपाय नहीं कर पाने का कोफ्त कर।

यह भी एक रंग है। देखिए। यह समाज प्रेम या अंतरजातीय विवाह को मान्यता नहीं देता है और दहेज के पांच रुपये भी नहीं छोड़ता है। दूल्हे का सालाना रेट है। डिमांड-सप्लाई वाला थीम है। दहेज में दारू, पटाखा-सबका पैसा ले लिया जाता है। अपने खानदानी वीर जवानों ने दहेज प्रताडऩा व हत्या के मामले में अपना रिकार्ड बनाया हुआ है।

वीर जवान, कहीं भी शामियाना लगा देते हैं। बीच सड़क पर डांस करके पूरी ट्रैफिक को बारात का हिस्सा बना देते हैं। जरा इस दौरान आगे निकलने की कोशिश करके तो देखिए? इनकी वीरता दिखेगी। बड़ी लम्बी दास्तान है।

हां, ये वाला रंग जरूर ताकत देता है। यह महिला सशक्तीकरण का रंग है। शिवहर जिला के शीतलापट्टी गांव में दूल्हा शराब पिए था। लड़की ने शादी से इनकार कर दिया। महथिन मंदिर (बिहिया) में एक शादी इसलिए टूट गई चूंकि दूल्हा नोट नहीं गिन पा रहा था। अनपढ़ था।

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