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मैं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सुन रहा हूं। वे एक चैनल के टाक शो में हैं। मुख्यमंत्री, भाजपा का नाम नहीं ले रहे हैं। हां, एंकर द्वारा पूछने पर भाजपाइयों के लिए जरूर कह रहे हैं-मुझसे मत डरिए। अपने-आप से डरिए। अकेले में अपने दिल से पूछिए। अगर अंतरात्मा है, तो उससे डरिए। नीतीश से जदयू और भाजपा के संबंध खत्म होने के असली जिम्मेदार के बारे में पूछा गया है। नीतीश, इसमें अपनी जवाबदेही को खारिज करते हैं। नाप-तौलकर बोले गए शालीन अंदाज वाले शब्द। ।
अब इन भाजपाई की सुनिए। ये बालेश्वर सिंह भारती हैं। जनाब भी मुख्यमंत्री को दिल में उतरकर उससे सवाल पूछने को कह रहे हैं। भारती जी के अनुसार मुख्यमंत्री को अपने दिल से यह सवाल पूछना चाहिए-अगर मेरे रेल मंत्रित्वकाल में रेल के डिब्बे में कारसेवक नहीं जलाए गए होते, तो गुजरात में दंगा नहीं होता। भारती जी अपनी जुबान से मुख्यमंत्री के दिल का जवाब भी बता रहे हैं- मैं, दंगा के लिए दोषी हूं। मुख्यमंत्री के लिए अपने दिल से पूछने वाला दूसरा भाजपाई सवाल है-मुझको (नीतीश) किसने मुख्यमंत्री बनाया? तीसरा सवाल-गठबंधन किसने तोड़ा?
मैं सुन रहा हूं-यही सवाल टाक शो का भी है। तीन महीने से यह सवाल लगातार जवान हुआ है। भाजपा, इसे अपने हिसाब से जनता का सवाल बनाना चाहती है। वह इसके लिए जगह-जगह विश्वासघात सम्मेलन कर रही है। इसमें गठबंधन को टूटने के लिए सीधे तौर पर नीतीश कुमार को जिम्मेदार बताया जा रहा है।
हां, तो टाक शो में इस सवाल पर मुख्यमंत्री का जवाब सुनिए। पहले वे कुछ बोलने से हिचकिचाते हैं। एंकर से कह रहे हैं-अब छोडि़ए भी, नहीं तो यह चर्चा लम्बी चल जाएगी कि क्या कहा गया था, और क्या हुआ? उनका आशय है-भाजपाइयों ने गठबंधन को चलाए रखने के लिए क्या वायदा किया था और सत्रह साल बाद क्या कर दिया? एंकर, मुख्यमंत्री से पूछ रहे हैं-किसने, क्या कहा था? नीतीश बोल रहे हैं-कहा था, नहीं होगा। सवाल-क्या कहा था, क्या नहीं हुआ? नीतीश-जो हुआ, नहीं होना था। नीतीश का इशारा, नरेंद्र मोदी को भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का था।
चलिए, इन दोनों दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का जो भी स्तर हो, इतना तय है कि अब भी नेताओं के पास दिल है। एक नेता, दूसरे नेता से दिल और अंतरात्मा की अपेक्षा कर रहा है; उसमें उतरने, डूबने को कह रहा है। यह बड़ा दिलचस्प है।
नीतीश कुमार को सुनते हुए राजनीति की कई खासियत सामने आती है। ज्ञानवद्र्धन होता है। कुछ लेटेस्ट ज्ञान इस प्रकार है। ‘टाक शोÓ में जदयू नेता पूर्णमासी राम का संदर्भ आता है। पूर्णमासी राम ने नीतीश कुमार को हिटलर कहा है। एंकर के पूछने पर नीतीश कुमार कहते हैं-पूर्णमासी राम महान शख्सियत हैं। जब पिंड छोड़ देंगे, तब जानूंगा। आते-जाते (पार्टी में) रहते हैं। जब आना होता है, तो मुझको विकास पुरुष कहते हैं और जब जाना होता है तो मुझको हिटलर बताते हैं।
मैं सुन रहा हूं-मुख्यमंत्री के पास अपने बड़े भाई लालू प्रसाद के बारे में ढेर सारा ज्ञान है। वे इसको शेयर कर रहे हैं-उनकी तो पूछिए मत। बहुत काबिल हैं। देख नहीं रहे हैं- बिहार को कहां से कहां पहुंचा दिया? आजकल बहुत परेशान हैं। मैंने उनको बोलने के लिए छोड़ दिया है।
मुख्यमंत्री, अपने पुराने सहयोगी सुशील कुमार मोदी को आजकल नए अवतार में देखने लगे हैं। नीतीश की जुबान से राजनीति का यह ज्ञान भी जानिए-हमारे साथ थे, तब तक सबकुछ ठीकठाक था। आजकल तो पता नहीं, क्या-क्या बोल रहे हैं? आश्चर्य है। असल में जो ट्रेनिंग पाए हैं, वही दिखा रहे हैं। कमाल के आदमी हैं। कुछ भी बोल देते हैं। एंकर, उनसे भाजपा (नरेंद्र मोदी) की वसुधैव कुटुम्बकम वाली धारणा (दावा) के बारे में पूछते हैं। मुख्यमंत्री-यह आचार- व्यवहार में नहीं है। होता तो अटल बिहारी वाजपेयी क्यों कहते कि राजधर्म का पालन कीजिए? याद रहे कि प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी ने गुजरात दंगा के समय यह बात कही थी।
बहरहाल, मैं समझता हूं कि यह सब बस नेताओं की आदत नहीं है। अभी की दौर में तो आदमी के लिए भी पूछा जा सकता है कि उनके पास दिल है? अगर दिल नहीं है, तो फिर अंतरात्मा की बात कहां से आती है? पलटीमारी, साफ शब्दों में कथनी-करनी में अंतर, हर स्तर पर है। डेंगू के हवाले अफसरों को देखिए। यह सबकुछ बिल्कुल साफ-साफ है। पटना हाईकोर्ट अब यह कहने लगा है कि आखिर वह क्या-क्या करे? और वह जो कर रहा है, क्या वही उसका काम है? उसने शहर को साफ रखने के बारे में यह हालिया टिप्पणी की है। आम शहरी को देखिए। उसका दिल स्वच्छ, सुंदर शहर का बाशिंदा कहलाने को तो कहता है मगर अपने स्तर से गंदगी फैलाने के दौरान उसकी अंतरात्मा कहां चली जाती है? कोई बताएगा? यह भी कि कौन अधिक महान है-नेता कि आदमी?
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