- 248 Posts
- 399 Comments
मैं, जदयू के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी को सुन रहा हूं। जनाब, चारा घोटाला से जुड़ी कुछ पुरानी बातें खुलेआम कर रहे हैं। आप भी सुनिए, जानिए-मैं विधानसभा में सुशील कुमार मोदी को मारने दौड़ा था। नहीं पकड़ाए। भाग गए। … जब मैं लालू प्रसाद की सरकार में मंत्री था, तब मोदी ने विधानसभा में कह दिया था कि वे (मोदी) चारा घोटाला में मुकदमा करना नहीं चाहते थे। शिवानंद तिवारी ने जबरदस्ती मुकदमा कराया। मुझसे यह झूठ बर्दाश्त न हुआ। मैं उनको मारने दौड़ा। मोदी पेशेवर झूठे हैं।
अब मोदी जी बताएंगे कि तिवारी जी क्या बोल रहे हैं? यह सब क्या है? उनकी (मोदी जी) आदतन झूठ की असलियत क्या है? मोदी, क्या बोलेंगे? वे तो बोल चुके हैं। चारा घोटाला में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ शिवानंद तिवारी और ललन सिंह पर अंगुली उठा चुके हैं। फिर भी कुछ तो बोलेंगे ही। तब भी बोलेंगे, जबकि चारा घोटाला के एक याचिकाकर्ता और भाजपा के वरीय नेता सरयू राय उनकी बातों को बनावटी बता चुके हैं। उस शख्स (उमेश सिंह) की चुनौती के बाद भी बोलेंगे, जो लूट के जमाने में रुपया पहुंचाने को बदनाम हुआ था। नहीं बोलेंगे, तो हारे हुए माने जाएंगे। राजनीति में अपने हिसाब से कोई हारता है? मुझे पता नहीं, उस दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसको निशाने पर रखते हुए अपने लिए कह रहे थे-मैं थेथर नहीं हूं।
मैं देख रहा हूं-आजकल राजनीति में कुछ और विधाएं खूब चल रहीं हैं। कुछ बोलना है, तो बोल देना है। बस विरोध के लिए विरोध की राजनीति हो रही है। ऐसा सभी लोग कर रहे हैं। सवाल का जवाब आना ही है। तिवारी जी ने भी यही किया है। उन्होंने विस्तार से अपनी गरीबी बताई है। यह भी कि कैसे बेटी की शादी के लिए उनको अपना मकान बेचना पड़ा?
मुझे माफ करेंगे। थोड़ा भटक गया था। बात अपनी-अपनी सीबीआइ और अपनी-अपनी जांच की हो रही है। मैं समझता हूं कि नेता, सबसे बड़ा जांचकर्ता होता है। वह किसी मामले को खुद जांचता है। उसकी जांच उसी के हिसाब से होती है। उसकी अपनी-अपनी सीबीआइ है। अपनी-अपनी जांच रिपोर्ट है। उसके हिसाब से जांच रिपोर्ट न आई, तो इसमें शर्तिया गड़बड़ी है। कमोबेश यही समझ देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआइ के बारे में यह धारणा बना चुकी है कि वह केंद्र सरकार की हथियार है। बेशक, इसके अपने आधार भी हैं। इसको साबित करने वाले उदाहरण भी हैं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद, चारा घोटाला की शुरुआती जांच के दौरान यह बात खूब कहते थे। राजद, यही लाइन फिर पकड़ चुका है। मोदी जी भी लगभग यही बात कह रहे हैं।
मेरी राय में मोदी जी के चलते यह सिचुएशन दिलचस्प हो गया है। मोदी जी सीबीआइ के फैन रहे हैं। उनके विरोधी दल वाले जमाने को याद करें, तो सीबीआइ जांच की मांग का बाकायदा रिकार्ड है। लालू प्रसाद व राबड़ी देवी मजाक में कहती भी थीं-बात-बात में सीबीआइ। हद है। बहरहाल, लालू की सजा और जेल, खासकर भाजपाइयों की मनोकामना रही है। यह पूरी हो गई है। लेकिन अब अचानक मोदी जी को सीबीआइ की निष्पक्षता पर संदेह हो गया है। मोदी, सीबीआइ को केंद्र सरकार का हथियार कहने लगे हैं। वे लोगों को यह भी बताने लगे हैं कि सीबीआइ नीतीश कुमार, शिवानंद तिवारी व ललन सिंह सिंह के खिलाफ इसलिए कुछ नहीं करेगी, चूंकि ये सभी लोग अब कांग्रेस के साथ हैं। बेजोड़ प्लाट है, जबकि खुद सीबीआइ इसे खारिज कर चुकी है। खैर, देखें कौन-कितना और कब तक खेल पाता है; जीत पाता है? तिवारी जी ने इसी का जवाब दिया है।
इसे देखिए। यह लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की सीबीआइ है। राबड़ी सरकार ने ऐसे कुछ मामले सीबीआइ को सौंपे, जो वस्तुत: उसे परेशान करने के लिए थी। एक नमूना-एक कार से हवलदार हसनैन खां को ठोकर लग गई। अगमकुंआ (पटना) में प्राथमिकी हुई। मामला सीबीआइ को दे दिया गया। जांच में कार से ऐसा कोई सामान नहीं मिला, जिससे अपराधी का पता चलता। कार इलाहाबाद के लोकेश मिश्रा की है। उन्होंने इसकी चोरी की रिपोर्ट दर्ज करायी थी। केस बंद कर दिया गया। मैं समझता हूं राजनीतिक सवाल-जवाब चाहे जिसके नफा-नुकसान का हो, इसका हर स्तर एक जवाबदेह संस्था की विश्वसनीयता खत्म कर रहा है। वाकई सीबीआइ, दिल्ली की हथियार है? अगर हां, तो जिम्मेदार कौन है? कोई बताएगा?
Read Comments