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नेता की आदत …, जुबान

फंटूश
फंटूश
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दिलचस्प सीन है। बात है। देखिए और सुनिए। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद कह रहे हैं-बिल्ली, बाघ को ऑर्डर दे रही है कि चौबीस घंटा में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दो। यह ऑर्डर कभी पूरा होगा? लालू जी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिल्ली और केंद्र सरकार को बाघ बता रहे हैं। लालू आगे कहते हैं-नीतीश ने चालाकी की। छुट्टी के दिन (रविवार) बंद रखा। संडे को सबकुछ बंद रहता ही है। ये सब जोगाड़ के बाद भी जदयू का बंद सुपर फ्लॉप है।

मैं, उस दिन सुशील कुमार मोदी को सुन रहा था। सर जी कह रहे थे-बंद को सफल दिखाने के लिए रविवार का दिन चुना गया है। मोदी ने जदयू के इस तर्क को नकार दिया कि बंद की तारीख, परीक्षा के चलते बढ़ी है। उनका कहना था कि ऐसा था, तो परीक्षार्थियों को बंद से मुक्त रखा जा सकता था। शुक्र है कि किसी नेता की जुबान से यह डिमांड नहीं आई कि परीक्षार्थियों के लिए स्पेशल ट्रेन, बस, रिक्शा या फिर टेम्पो चले। जो परीक्षा देने जाएं, वो अपनी गर्दन में परीक्षार्थी हूं लिखी तख्ती टांगे रहें। उनकी सुरक्षा को पुलिस हो। जो हालात हैं, इस तरह की डिमांड में ज्यादा दिन नहीं है।

मेरे लिए यह नया ज्ञान है। नेता का अपना, और सिर्फ अपना पैमाना होता है। मैं देख रहा हूं-बंद के दिन के लिए भाजपा ने नया एंगिल निकाला। कहा कि बंद में जनता की भागीदारी नहीं थी। यह पॉलिटिकल स्टंट फ्लाप शो रहा। साफ है कि विशेष राज्य के मुद्दे पर मुख्यमंत्री, जनता का समर्थन खो चुके हैं।

नेताओं के समर्थन और विरोध के घोषित ध्रुव के चक्कर में बहुत कुछ फंसता है। मैंने तो कई बार यह देखा है कि किसी पार्टी की रैली शुरू भी नहीं हुई है और उसको विफल बताने वाले बयान आने लगते हैं। कई मौकों या मसलों के लिए नेताओं की बात बिल्कुल तय होती है। टाईप्ड सी। यह इतनी सुरक्षित गुंजाइश होती है कि नेता से बात किए बिना भी उसकी राय लिखी जा सकती है। बजट आया है। अगर यह राजग सरकार का है, तो राजद के किसी भी नेता के नाम से लिख दीजिए कि यह गरीब विरोधी है, वह खूब खुश हो जाएगा।

बहरहाल, अब मैंने भी मान लिया है कि नेताओं ने अपने-अपने हिसाब से सबकुछ बनाया हुआ है। उनका अपना-अपना बिहार है। अपनी-अपनी पब्लिक है। उनका अपने हिसाब से अपना सबकुछ हर हाल में कामयाब रहता है और दूसरों का सुपर फ्लॉप। यह बस लालू प्रसाद या भाजपा की जुबान नहीं है। सबकी यही आदत है।

मैं देख रहा हूं-इस आदत ने मुख्यमंत्री के इस आग्रह को बिल्कुल किनारे कर दिया है कि अरे, बेशक मेरा मजाक उड़ा लीजिए मगर बिहार के लिए, यहां के लोगों के लिए विशेष दर्जा की मांग पूरी कराने में एकसाथ आइए। एकजुट आंदोलन के मसले पर भी मजे की राजनीति हो चुकी है। सबके अपने-अपने तर्क हैं। ऐसे में बिहार, यहां के लोग …, कोई (नेता) बताएगा? यह भी कि आखिर बिहारी होने में दिक्कत क्या है? पार्टीलाइन, बिहारीपन से ज्यादा बड़ा है?

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