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गिरगिट के रंग

फंटूश
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संजय सिंह, जदयू की खास जुबान हैं। पार्टी की भाषा में प्रवक्ता हैं। अब संजय की जुबान से जदयू की भाषा सुनिए-एनके सिंह (राज्यसभा सदस्य) गिरगिट से भी तेज गति से रंग बदलते हैं।

मेरे लिए यह नया ज्ञान है। मैं अभी तक यही जानता था कि रंग बदलने का पेटेंट या कॉपीराइट सिर्फ गिरगिट के पास है। थैंक्स टू संजय सिंह। उन्होंने मेरा ज्ञान बढ़ाया है। रंग बदलने में आदमी (नेता) को गिरगिट से भी तेज बताया है। मेरी राय में इस पर मजे का शोध हो सकता है कि आदमी ने गिरगिट से या गिरगिट ने आदमी से, यानी किसने-किससे रंग बदलने की कला सीखी है? मेरी गारंटी है कि इस शोध का नतीजा, नेता की आदमी से बिल्कुल अलग प्रजाति का खुलासा भी होगा। मैं शुरू से मानता रहा हूं कि नेता, हूबहू आदमी नहीं होता है।

हां, तो बात रंग बदलने में गिरगिट के एकाधिकार के खत्म होने की चल  रही थी। एनके सिंह के रंग बदलते, यानी उनके जदयू से भाजपा में जाते ही रंग बदलने की यह पूरी प्रक्रिया एकदम से शुरू हो गई। इस पर भरपूर बहस हो सकती है कि पहले किसने अपना रंग बदला? खैर, एनके और जदयू, दोनों के रंग पूरी तरह बदल गए। एनके को जदयू सत्ता केंद्रित पार्टी और भाजपा को बस गाली देने वाला संगठन लगा। उनकी आंखों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का वह चेहरा गोल (लापता) हो गया, जो उन्होंने अपने हाथों से अपनी पुस्तक द न्यू बिहार में गढ़ा था। जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी का रंग देखिए। वे एनके सिंह की रंगबदली का जवाब दे रहे हैं-एनके बस नीतीशनॉमिक्स के ही चलने की बात कहते थे। अब खुद मोदीनॉमिक्स पढऩे लगे हैं। आप उनकी किताब पढ़ लो। ऐसे रंग बदलता है? त्यागी जी गलत हैं?

भाजपा का रंग देखिए। वे नीतीशनॉमिक्स के रचयिता को सीने से लगा चुके हैं। संजय सिंह शाप देने की मुद्रा में आ गए-गाय की हत्या करने वाला, सुरापान करने वाला तथा जिसका व्रत भंग हो गया है, उसके लिए प्रायश्चित का विधान है। मगर जो व्यक्ति किए हुए को नहीं मानता है, उसके लिए प्रायश्चित का कोई विधान नहीं है। और खुद संजय सिंह की रंगबदली …, लंबी बहस हो सकती है। यह रंगों को लेकर नया ज्ञान है। नया रंग चढ़ाते समय नेता को अपना पुराना रंग याद नहीं रहता है।

मैं देख रहा हूं कि रंग और उसकी बदली जदयू, एनके सिंह या भाजपा भर की बात नहीं है। लोजपा का नया रंग देखिए। लोजपा (रोहित सिंह) ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से सवाल पूछा है-रीतलाल यादव किस स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी हैं, जो आप उनके घर चले गए? यही सवाल जदयू का है। लोजपा के खुद से दूर होने पर लालू अपनी रंगत खूब दिखा चुके हैं। नए रंग में लालू, लोजपा के बाहुबलियों के लिए स्वतंत्रता सेनानी शब्द का इस्तेमाल करते हैं। लालू के इस व्यंग के रंग के छीटें अब उनके चेहरे पर भी पड़े हैं।

तरह-तरह के रंग हैं। एक रंग के कई-कई रंग हैं। हर रंग का अपना मौका है। तर्क है। सुबह का रंग दोपहर तक बदल जा रहा है। मैं भाजपा के वरीय नेता हरेंद्र पांडेय की एक तुकबंदी पढ़ रहा था-पालकी ढोने को कार्यकर्ता हैं लाचार, दूल्हा हो घर का या बाहरी या फिर लाओ उधार। यह अचानक हुए ज्ञान का रंग है। जरा, चिंतन का रंग देखिए। वरीय नेता शिवानंद तिवारी की जुबान से उनके कई दिनों के गहन चिंतन का परिणाम सुनिए-मैं अपने दोनों प्राचीन सहयोगियों (लालू प्रसाद, नीतीश कुमार) से भविष्य में संबंध नहीं रखूंगा। अभी किसी पार्टी में जाऊंगा। चुनावी महासंग्राम में तटस्थ, तमाशबीन नहीं रह सकता हूं। आम आदमी पार्टी के तीन नेताओं का प्रचार करूंगा। यह किसी भी सूरत में खाली नहीं बैठने का रंग है। फिर, चुनाव तो महापर्व है।

मैं यह भी देख रहा हूं कि आंसू अपने रंग में हैं। नए रंग में वरीय भाजपाई जसवंत सिंह के आंसू ने रंग दिखाए। सासाराम में पूर्व उपप्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम की पौत्री मेधावी कीर्ति की आंसू के अलग रंग हैं। यह अपने हिसाब से खुशी व चहकने का रंग है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के परिवार जितने स्टार प्रचारक देश के शायद ही किसी राजनीतिक परिवार में हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने फेसबुक पर नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ खूब कविताएं लिखीं हैं। सुशील कुमार मोदी भी अब कविता में जवाब दे रहे हैं। मोदी ने नीतीश पर घोस्ट राइटिंग कराने का आरोप किया है। जदयू का सवाल है-सुशील मोदी क्या खुद कविता लिखते हैं? यह हर हाल में खुद को ही रंगीन रखने का रंग है।

और यह व्यस्तता का रंग है। पूनम सिन्हा (शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी) के अनुसार उनकी बेटी सोनाक्षी, फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त होने के चलते अपने पापा (शत्रुघ्न सिन्हा) के लिए चुनाव प्रचार करने नहीं आएंगी। यह फुर्सत का रंग है। कुछ लोग दो दिन लगातार शत्रुघ्न सिन्हा को काला झंडा में जुटे रहे। कुछ लोग उनको पीटने में लगे रहे।

अबकी चुनाव में कार्यकताओं के लिए हताशा का रंग है। टिकट बंटवारे का जो तरीका सामने आया है, उसमें कार्यकर्ताओं को अपने लिए कायदे का भविष्य नहीं दिख रहा है।

बहरहाल, अब वोटरों के रंग की परख है। दिखेगा कि वह किस मात्रा में बूथ तक आया? चुनाव आयोग अपनी औपचारिकता का रंग दिखा चुका है। विधान परिषद के लिए गिरे वोटों की मात्रा बहुत खुशी नहीं देती है। यह बेहतरी की उम्मीद का रंग है।

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