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बेजोड़ सीन है। कोई भी कुर्बान हो जाएगा जी। मैं तो संसदीय प्रणाली वाले महान लोकतांत्रिक भारत की महान जनता के नाते बाकायदा कुर्बान हो चुका हूं। मैं, साबिर लीला की बात कर रहा हूं।
मेरी राय में पॉलिटिक्स में टीआरपी के हिसाब से देखें, तो साबिर भाई (साबिर अली) हफ्ते भर से छाए हुए हैं। साबिर लीला, पॉलिटिक्स की बॉक्स आफिस पर हिट है। अभी रहेगी। अभी भाई जी, मुख्तार अब्बास नकवी पर मानहानि का मुकदमा करेंगे। उनकी बेगम, नकवी के घर के सामने धरना देंगी। अनशन हो सकता है। कहीं भी फरिया लेने की चुनौती है। अभी ढेर सारे स्टेप हैं। एक स्टेप के कई-कई स्टेप हैं। ठंड रखें, पिक्चर अभी बाकी है।
मैं देख रहा हूं-देश की राजनीतिक व्यवस्था में भूचाल सी नौबत दिखाई गई है। ऐसा सीन बनाया, दिखाया जा रहा है कि अब, यानी साबिर अली के बाद राजनीतिक शुद्धता, मुद्दा नहीं रहेगी। राजनीति पाक-साफ हो जाएगी। उन साबिर अली को अचानक अशुद्धता का पर्याय बना दिया गया है, जिनकी प्रत्यक्ष-परोक्ष मदद शुद्धिकरण अभियान के स्वयंभू किरदार बखूबी लेते रहे हैं। साबिर लीला में यह गारंटी भी दिखाई गई है कि सबकुछ शुद्ध- शुद्ध हो ही चला है।
मैं वशिष्ठ नारायण सिंह (प्रदेश अध्यक्ष, जदयू) को सुन रहा था। जनाब कह रहे थे-साबिर अली के बाद हम बेहद सतर्क हो गए हैं। पार्टी में ज्वाइनिंग के लिए सिस्टम बना दिया गया है। नई ज्वाइनिंग ठोंक-बजाकर होगी। जो आएंगे, उनके बैकग्राउंड के बारे में हमारी जिला इकाई पूरी छानबीन करेगी। यह साबिर लीला का एक दिलचस्प सीन है। तालियां बजने की भरपूर गुंजाइश है। वशिष्ठ नारायण यह भी कह रहे हैं कि उन लोगों को साबिर अली के बारे में इस तरह की जानकारी नहीं थी, जैसा कि भाजपाई दे रहे हैं। हम साबिर को समझने में भूल कर बैठे। उनको राज्यसभा भेज दिया। दिल्ली का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। बेशक, कोई भी कुर्बान हो जाएगा जी!
मैं यह भी देख रहा हूं कि आज साबिर, उनसे जुड़ी तमाम विवादास्पद बातें, अचानक सबके लिए नई हो गईं हैं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद कह रहे हैं-जैसी करनी, वैसी भरनी। आगे लालू, वशिष्ठ नारायण की तरह यह भी कह सकते हैं कि साबिर को राज्यसभा भेजने में लोजपा की मदद करते वक्त वे साबिर के बारे में यह सब नहीं जानते थे। शुक्र है कि अभी तक लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान या उनके पुत्र चिराग पासवान ने साबिर के बारे में कुछ नहीं कहा है। नए संदर्भ में कुछ भी कह सकते हैं।
मैंने देखा कि जिस दिन अपराह्न में भाजपा ने साबिर को बाहर का रास्ता दिखाया, उस दिन पूर्वाह्न तक पार्टी के कई बड़े नेता साबिर की तरफदारी कर थे। जैसे ही उनको पार्टी से बाहर करने की बात हुई, सबकी जुबान बदल गई। नए तर्क आ गए। सुशील कुमार मोदी को सुनिए-दोपहर तक स्थितियां दूसरी थीं। तब साबिर ने खुद जांच कराने की बात कही थी। अब जब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने साबिर अली के विषय में निर्णय ले लिया है, तो पूरी पार्टी इस निर्णय के साथ है। मोदी के अलावा डा.सीपी ठाकुर, राधामोहन सिंह आदि साबिर की तरफ रहे, तो रामेश्वर चौरसिया, हरेंद्र पांडेय, चंद्रमोहन राय विरोध करते रहे। डा.ठाकुर को बदले सुर में सुनिए-मैंने साबिर अली का स्वागत नहीं किया था। केवल इतना कहा था कि पार्टी का विस्तार हो रहा है और इसमें विभिन्न वर्गों के लोगों के आने से मजबूती आएगी।
मैं, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विनोद नारायण झा को एक चैनल पर लाइव सुन रहा था। वे लोकतंत्र और लोकतांत्रिक व्यवस्था को नहीं छोड़ रहे थे। अपनी हर बात में ये दोनों शब्द जोड़ दे रहे थे-मेरी पार्टी में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। उन्होंने साबिर को पार्टी में शामिल करने को लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा बताया और उनको बाहर किए जाने के मसले को भी।
कांग्रेस के प्रदेश मीडिया प्रभारी प्रेमचंद्र मिश्र ने भाजपा से पूछा है कि जब जदयू ने साबिर अली को खुद से जोड़ा, तब भाजपा क्यों चुप थी? क्या, तब साबिर दूसरे थे? साबिर भी यही बात कह रहे हैं। उनका भी यही सवाल है। वे कह रहे हैं-मैं जो था, वो हूं। फिर अचानक मुझमें कौन सा खोट दिख गया? कुख्यात आतंकी यासीन भटकल से संबंधों को ले नकवी द्वारा उठाई गई बातों के खिलाफ वे कोर्ट जा रहे हैं। उनको एकाएक भाजपा में शामिल तो नहीं करा लिया गया होगा? अगर नकवी ने ट्वीट नहीं किया होता तब …! तब क्या भाजपा के साबिर, दूसरे साबिर होते? यह साबिर लीला का ज्ञान है कि नेता की नजर और जुबान पार्टी व मौके के हिसाब से बदलती है।
चलिए, छोडि़ए। साबिर भाई की टीआरपी से बहुत सारे नेता ईष्र्या कर रहे हैं। करें। साबिर लीला से मुझे कई ज्ञान हुए हैं। ये लेटेस्ट हैं। पहला-अपना देश बहुत फुर्सत में है। दूसरा- वाकई, भारत लोकतंत्र की धरती है। यहां नेता को कभी भी, कुछ भी कहने-करने की परम स्वतंत्रता है। नेता, रंगबदली का दूसरा नाम है। नेता, मिनट-सेकेंड में बदलता है। नेता, पब्लिक को अपने हिसाब से समझाता है। और अपनी महान पब्लिक …?
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