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नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण की पूर्व संध्या पर कई बातें बड़े मार्के की रहीं। जदयू और भाजपा के नेता बच्चों की तरह फिर उलझ गए। वरीय भाजपाई सुशील कुमार मोदी ने मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के लिए शर्त तय की, तो जदयू के प्रो.रामकिशोर सिंह ने सुशील मोदी के लिए। सुशील मोदी ने कहा कि अगर सही में जीतनराम मांझी रिमोट से चलने वाले सीएम नहीं हैं, तो नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होकर दिखाएं। मांझी, समारोह में जा रहे हैं। रामकिशोर ने नीतीश कुमार के खिलाफ सुशील मोदी को बोलने की जो शर्त तय की है, अब उसे सुनिए-पहले मोदी जी, अपने पद (नेता, भाजपा विधानमंडल दल) पर अठारह महीने के लिए किसी महादलित को बैठाएं, तब नीतीश के खिलाफ बोलें।
मैं नहीं जानता कि अब मोदी जी क्या करेंगे, कहेंगे? हां, मैं यह जरूर जानता हूं कि इस बचकानी लड़ाई के दिन गए। अब शब्दों की जुगाली या निहायत सतही आरोप-प्रत्यारोप भर से काम नहीं चलेगा, जैसे कि पूरे लोकसभा चुनाव को गुजार दिया गया। ये चलते भी रहे, तो खास मतलब नहीं रहेगा। मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी गंभीर बात उठा दी है। उन्होंने नरेंद्र मोदी से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का कहा है। जदयू के सत्ता व संगठन, दोनों के शीर्ष ने साफ कर दिया है कि नए संदर्भ में केंद्र व राज्य के बेहतर संबंध के लिए किस स्थिति की दरकार है? इसकी कौन-कौन सी शर्त (मांग), बाकायदा एजेंडा है और यह सबकुछ कितना गंभीर है? मेरी राय में यह सब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के एजेंडों की मुनादी है। जदयू अपने स्तर से वैसा माहौल बना रहा है, जहां थोड़ी भी चूक राजग के लिए बड़ी मुश्किल साबित हो। वैसे भी नरेंद्र मोदी सरकार से बिहार को बड़ी उम्मीदें हैं। खुद भाजपाइयों ने इसे जगाया। अब इसके पूरा होने की बारी है। जदयू, भाजपा के वायदे को उसकी परख की कसौटी बनाने की कोशिश में है। जीतनराम और नीतीश कुमार ने इसे खुलेआम भी कर दिया है। नीतीश ने तो यहां तक कहा है कि हम किसी भी सूरत में विशेष दर्जा की अपनी लड़ाई को जीतेंगे।
बेशक, यह बात माननी पड़ेगी कि जदयू, विशेष दर्जा के मसले को बिहार का अरमान और खुद को इसका वाहक बनाने में कामयाब सा है। यह जदयू का पुराना एजेंडा है। दूसरी बात है कि लोकसभा चुनाव में यह जदयू को बुलंदी देने के काबिल नहीं बना। यह फिर से आगे बढ़ेगा। मौका, भाजपा का ही दिया हुआ है। नरेंद्र मोदी तक ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान विशेष दर्जा, विशेष पैकेज, विशेष ध्यान तक का भरोसा दिया था। भाजपा भी चाहती है कि लोकसभा का टेम्पो विधानसभा में भी बरकरार रहे, गैर भाजपा दलों का बिहार से सफाया हो जाए। इस पृष्ठभूमि में देखने वाली बात होगी कि विशेष दर्जा का होता क्या है?
मैंने, इधर कई चीजों को बहुत बदला हुआ देखा है। नीतीश कुमार का अंदाज बदल गया। वे ऐसे मामूली मसलों को एजेंडा बनने की गुंजाइश नहीं छोड़ रहे हैं कि नरेंद्र मोदी को बधाई नहीं दी; शपथ ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री नहीं गए। यानी, बस विरोध के लिए विरोध नहीं। गंभीर लड़ाई होनी है।
बिहार के लिए यह बड़ा खराब संयोग रहा है कि दिल्ली में उसी पार्टी की सरकार रहती है, जिसका धुर विरोधी बिहार में शासन करता है। अभी तक का अनुभव इस प्रकार का रहा है। बिहार से जुड़ा केंद्रीय मंत्री यहां आता है, विभागीय योजना की समीक्षा करता है, भाषण देता है, घोषणाएं करता है, मीडिया से मुखातिब होता है और काम नहीं होने के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार बता दिल्ली चला जाता है। बिहार से गईं योजनाएं दिल्ली में पड़ी रहती हैं। जरूरत या हक के हिसाब पैसे नहीं मिलते हैं। अपेक्षित विकास नहीं होने के लिए निश्चित रूप से राज्य सरकार भी जिम्मेदार रही है। मैं समझता हूं अब ऐसा नहीं हो पाएगा। बिहार में जिम्मेदार सरकार है। उसे कोई सतही तरीके से शायद ही आरोपित कर सकता है। भाजपा भी इसी हैसियत में है।
मैं समझता हूं यह सब बिहार के लिए बड़ी अच्छी बात है। ड्राइंगरूम पॉलिटिक्स करने वाले कांग्रेसी और उसके मंत्रियों की समस्या थी कि वे केंद्र सरकार के कार्यकलापों को गांव-घर तक नहीं पहुंचा सके। यह प्रचारित नहीं कर पाए कि बिहार के विकास में वाकई किसका, कितना योगदान है? नमो मंत्रिमंडल के सदस्य ऐसा नहीं होने देंगे। अगर सबकुछ अभी जैसा चलता रहा, तो राजनीति के केंद्र में विकास होगा। अपने अच्छे कामों को सबको दिखाने की होड़ रहेगी। और यही बिहार की बुनियादी दरकार है। एक बड़ी उम्मीद या अपेक्षा केंद्रीय मंत्रिमंडल में बिहार की हिस्सेदारी की भी है। बिहार से जीतने वाले सांसद, देश चलाते रहे हैं।
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